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स्त्री

एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, मैं आपको कैसी लगती हूं? श्रीकृष्ण ने कहा, तुम मुझे नमक जैसी लगती हो। सत्यभामा इस तुलना को सुनकर क्षब्ध हो गईं। उन्होंने श्रीकृष्ण से शिकायती लहजे में कहा, तुलना...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 10 Mar 2017 01:49 AM
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एक बार सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा, मैं आपको कैसी लगती हूं? श्रीकृष्ण ने कहा, तुम मुझे नमक जैसी लगती हो। सत्यभामा इस तुलना को सुनकर क्षब्ध हो गईं। उन्होंने श्रीकृष्ण से शिकायती लहजे में कहा, तुलना भी की तो किस से, आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला। श्रीकृष्ण ने किसी प्रकार सत्यभामा को शांत किया।

कुछ दिन पश्चात श्रीकृष्ण ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम सत्यभामा से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया। सत्यभामा ने पहला कौर मुंह में डाला मगर यह क्या.. सब्जी में नमक ही नहीं था। कौर को मुंह से निकाल दिया। इसके बाद दूसरे व्यंजन से कौर लिया लेकिन यह क्या यह भी फीकी, खैर पानी की सहायता से किसी तरह उस कौर को खाया। अब तीसरा कौर कचौरी का मुंह में डाला, बस इसके बाद उनका धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने उसे थूक दिया।

तब तक सत्यभामा का पारा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। वे जोर से चीखीं, किसने बनाई है यह रसोइ? सत्यभामा की आवाज सुनकर श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा के पास आए और पूछा क्या हुआ देवी? कुछ गड़बड़ हो गई क्या? इतनी क्रोधित क्यों हो?

सत्यभामा ने कहा किसने कहा था आपको भोज का आयोजन करने को? इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है? किसी वस्तु में नमक नहीं है। एक कौर नहीं खाया गया। श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, तो क्या हुआ बिना नमक के ही खा लेतीं।

सत्यभामा फिर चीख कर बोलीं, अरे बिना नमक के कोई भी नमकीन वस्तु नहीं खाई जा सकती है क्या?
इसपर श्रीकृष्ण ने कहा, उस दिन क्यों गुस्सा हो गईं थीं जब मैंने तुम्हारी तुलना नमक से की थी। अब सत्यभामा को सारी बात समझ में आ गई की यह सारा वाकया उसे सबक सिखाने के लिए था, जिसपर उन्होंने तुरंत अपनी गर्दन झुका ली।

अर्थ: स्त्री जल की तरह होती है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है। स्त्री नमक की तरह होती है, जो अपना अस्तित्व मिटाकर भी अपने प्रेम-प्यार तथा आदर-सत्कार से परिवार को ऐसा बना देती है।

माला तो आप सबने देखी होगी। तरह-तरह के फूल पिरोये हुए... पर शायद ही कभी किसी ने अच्छी से अच्छी माला में गुम उस सूत्र को देखा होगा जिसने उन सुंदर-सुंदर फूलों को एक साथ बांध रखा है। लोग तारीफ़ तो उस माला की करते हैं जो दिखाई देती है, हालांकि तब उन्हें उस सूत की याद नहीं आती जो अगर टूट जाए तो सारे फूल इधर-उधर बिखर जाते है।

स्त्री उस सूत की तरह होती है, जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान-पहचान की मोहताज नहीं होती है... और शायद इसीलिए दुनिया राम के पहले सीता को और श्याम के पहले राधे को याद करती है। अपने को विलीन कर के पुरुषों को सम्पूर्ण करने की शक्ति भगवान ने स्त्रियों को ही दी है।

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