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जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है...

जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं...। यह कहना था अमर शहीद भगत सिंह का। पांच साल की उम्र से ही भगत सिंह के हर कार्य में उनकी वीरता और निर्भीक होने का...

जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है...
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Mar 2017 03:09 AM
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जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं...। यह कहना था अमर शहीद भगत सिंह का।

पांच साल की उम्र से ही भगत सिंह के हर कार्य में उनकी वीरता और निर्भीक होने का अहसास होने लगा था। बाल्यकाल में एक बार एक खेत में भगत सिंह मिट्टी के ढेर पर छोटे-छोटे तिनके लगाए जा रहे थे। जब उनसे पिता ने पूछा कि तुम क्या कर रहे हो तो उन्होंने जवाब दिया कि मैं अपने देश को आजाद कराने के लिए बंदूकें बो रहा हूं। 

जलियांवाला बाग की घटना का भगत सिंह पर बड़ा प्रभाव पड़ा और उन्होंने उस बाग की मिट्टी लेकर देश पर बलिदान होने की शपथ ली। उस वक्त भगत सिंह की उम्र मात्र 12 साल थी।  
भगतसिंह को फांसी की सजा हुई तो इससे एक दिन पहले प्राणनाथ मेहता ने उन्हें एक पुस्तक दी 'लेनिन की जीवनी'। इस पुस्तक को पढ़ने में वह इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें याद तक नहीं रहा कि उन्हें फांसी होने वाली है।

जल्लाद जब उन्हें लेने जेल की कोठरी में आया तो किताब का एक पृष्ठ पढ़ना बाकी रह गया था। जल्लाद ने चलने को कहा तो भगत सिंह बाले, ठहरो, एक क्रांतिकारी की दूसरी क्रांतिकारी से मुलाकात हो रही है। भगत सिंह ने पुस्तक समाप्त की और फांसी के तख्त की ओर बढ़ चले। क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।

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