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भारत-पाक रिश्ते की जाधव गांठ

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का फैसला हमारे देश के लिए सुकून लेकर आया है। इससे कुलभूषण जाधव को तत्काल फांसी दिए जाने की आशंका खत्म हो गई है। जाधव लंबे समय से पाकिस्तानी सेना की हिरासत में हैं, और...

भारत-पाक रिश्ते की जाधव गांठ
सलमान हैदर, पूर्व विदेश सचिवFri, 19 May 2017 10:16 PM
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का फैसला हमारे देश के लिए सुकून लेकर आया है। इससे कुलभूषण जाधव को तत्काल फांसी दिए जाने की आशंका खत्म हो गई है। जाधव लंबे समय से पाकिस्तानी सेना की हिरासत में हैं, और इस दौरान उनके खिलाफ कई तरह के आरोपों का जाल बुना गया है। उन पर जो आरोप लगाए गए हैं, और पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने जो कठोर सजा उन्हें सुनाई है, इन दोनों में कोई तालमेल नहीं दिखता। ऐसे में, जाहिर तौर पर यह मसला भारत और पाकिस्तान के बीच के तमाम मुद्दों पर भारी पड़ गया। इससे दोनों मुल्कों के द्विपक्षीय रिश्ते भी काफी निचले स्तर तक पहुंच गए। यह सही है कि अभी कुलभूषण जाधव-प्रसंग सीमा पर टकराव की वजह नहीं है, मगर यह एक ऐसा घटनाक्रम जरूर है, जिसके नतीजे गंभीर हो सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय अदालत द्वारा जाधव की फांसी पर रोक लगाने से हम भारतीय निश्चय ही संतुष्ट होंगे, मगर इस फैसले का सबसे बड़ा महत्व कुलभूषण के लिए है, जिनकी जिंदगी पर मंडरा रहा सबसे बड़ा खतरा फिलहाल टल गया है। मेरा मानना है कि कानूनी व राजनीतिक लड़ाई अपनी जगह हैं, पर अंतत: यह एक मानवीय मसला है और आखिरकार इसे इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। जाधव के लिए सवाल जीवन और मरण का है, और उनके मानव-अस्तित्व को कमतर नहीं आंका जा सकता। देश ने उनके लिए एक मुश्किल लड़ाई लड़ी है, जो उचित है और सही भी। आखिरकार सरकारें अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करती ही हैं। ऐसे में, मौजूदा सरकार की तारीफ की जानी चाहिए। 

भारत सरकार ने गंभीरता से इस मसले को उठाया और हर उस मुमकिन तरीके को आजमाया, जो इस मुश्किल काम की सफलता सुनिश्चित कर सके। इसके लिए उसने कुछ खास पहल भी की, जैसे पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से वरिष्ठ स्तर पर उस वक्त संपर्क साधा गया, जब दोनों देशों के बीच राजनयिक सक्रियता लगभग शिथिल पड़ी थी। उस प्रयास का भले ही कोई सार्थक नतीजा नहीं निकल सका, मगर भारत जुटा रहा और जाधव को मदद करने के दूसरे वैकल्पिक रास्ते तलाशता रहा। अंत में इस मसले को अंतरराष्ट्रीय अदालत में उठाने का फैसला लिया गया, क्योंकि यहां से आए फैसले को नजरअंदाज करना मुश्किल है। अभी हमारी खुशी की वजह यही है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जाधव को सुनाए गए फैसले पर रोक लगाते हुए पाकिस्तान को कहा है कि वह इस मामले में पूरी न्यायिक प्रक्रिया का पालन करे। इसका सीधा अर्थ है कि पाकिस्तान में जाधव को जिस प्रक्रिया के तहत फांसी की सजा सुनाई गई है, वह अधूरी थी और इस मसले में अंतिम फैसले पर पहुंचने से पहले कई दूसरे कानूनी काम किए जाने जरूरी थे।

अंतरराष्ट्रीय अदालत में मामले को उठाकर भारत ने एक साहसिक कदम उठाया है। यह पाकिस्तान के साथ अपने तमाम मसलों को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाने और किसी बहुपक्षीय मंच की मदद न लेने की तय की गई प्राथमिकता से इतर कदम है। यानी भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाना कोई आसान विकल्प नहीं था। इससे यह संदेश भी जाता है कि जब बात अपने नागरिकों पर आती है, तो भारत नजरिये में लचीलापन ला सकता है और सामान्य परिपाटी से अलग फैसले ले सकता है। भारत के इस रुख की सराहना की जानी चाहिए। अगर अंतरराष्ट्रीय अदालत का फैसला कुछ और होता, तो जाहिर है कि पारंपरिक द्विपक्षीय बातचीत के रुख से अलग कदम उठाने के लिए सरकार की आलोचना होती। ऐसे में, यह समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाने का भारत का फैसला कितना जोखिम भरा था।

अब सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले का दीर्घावधि में क्या आशय है और क्या इससे कोई ऐसी मिसाल कायम होगी, जो शर्मिंदा करने वाली हो? मौजूदा उत्साह में इस नकारात्मक पहलू पर हमारा ध्यान कमोबेश नहीं जा रहा। वैसे इसकी बात अभी होनी भी नहीं चाहिए, क्योंकि महत्वपूर्ण मसला यह नहीं था कि पाकिस्तान को इससे किस हद तक फायदा होगा, बल्कि यह था कि एक बहुमूल्य भारतीय जीवन बचाने की हरसंभव कोशिश की जाए। अच्छी बात यह है कि हम इस लक्ष्य को पाने में सफल रहे। कुलभूषण के परिजनों की प्रार्थना करती भावपूर्ण तस्वीरें अपनी कहानी खुद बयां कर रही हैं।

इस पूरे प्रकरण का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि पाकिस्तान ने जाधव से मिलने की कोई अनुमति भारतीय दूतावास के अधिकारियों को नहीं दी। यह वियना कन्वेंशन का उल्लंघन था, जिसकी एक बार फिर पुष्टि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने कर दी है। बेशक अब भी कुलभूषण पाकिस्तान की ही हिरासत में हैं, मगर अब यह उम्मीद की जानी चाहिए कि पाकिस्तान हमारे अधिकारियों को जाधव से मिलने से नहीं रोक पाएगा। पाकिस्तान का इनकार दरअसल एक गलत फैसला था। इसी वजह से अंतरराष्ट्रीय अदालत ने उसे वियना कन्वेंशन के प्रस्तावों पर अमल करने का आदेश दिया और भारत के दावे को सही बताया।

वैसे, इस फैसले ने फांसी को लेकर विश्व जनमत में आए बदलाव की ओर भी संकेत किया है। न्यायिक प्रणाली में मौत को सबसे आखिरी सजा बताया गया है, मगर अब इसका पुरजोर विरोध हो रहा है, क्योंकि कुछ लोगों की नजरों में यह पुराने युग की बर्बर सजा में एक है। कुलभूषण मामले का अंतिम निष्कर्ष इस स्वर को और मजबूत बनाएगा। 

यह सही है कि अब यह मसला खत्म होने की ओर बढ़ चला है, पर जरूरत सुधार प्रक्रिया को मजबूत बनाने की भी है, ताकि भविष्य में जाधव जैसे लोग बेवजह खतरे में न आ जाएं। मेरा मानना है कि दोनों देश एक बेहतर संवाद स्थापित करें। संवाद के न रहने की कोई वजह समझ नहीं आती और इससे कई तरह के मतभेद भी उभर सकते हैं। लिहाजा बातचीत की प्रक्रिया को फिर से पटरी पर लाने की कोशिश होनी चाहिए। संवाद की कमजोर पड़ चुकी कड़ी को फिर से जोड़ना जरूरी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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