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मन का उत्सव

उत्सव की आहट आ रही है। यह समय उत्सव की तैयारियों से ज्यादा यह सोचने का है कि आखिर क्यों हम हमेशा उत्सव के मोड में नहीं हो सकते? उत्सव हम खुद खड़े क्यों नहीं कर सकते? जो हमारे पुराने उत्सव हैं, उसे...

मन का उत्सव
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 10 Mar 2017 01:21 AM
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उत्सव की आहट आ रही है। यह समय उत्सव की तैयारियों से ज्यादा यह सोचने का है कि आखिर क्यों हम हमेशा उत्सव के मोड में नहीं हो सकते? उत्सव हम खुद खड़े क्यों नहीं कर सकते? जो हमारे पुराने उत्सव हैं, उसे मनाने की भी खानापूर्ति सी निभाई जाती है। रंग शरीर पर फेंके जा रहे हैं, पर मन रंगहीन ही रह गया।

बर्टेंड रसेल ने अपनी किताब द कॉन्क्वेस्ट ऑफ हैप्पीनेस में लिखते हैं कि उत्सव का मतलब है आंनद से भर उठना। आनंद कोई दुर्लभ चीज नहीं है। कई बार यह पके हुए फल की तरह हमारे मुंह में स्वयमेव आ गिरता है। फिर हम क्यों किसी खास मौसम या दिन की प्रतीक्षा करें? दरअसल, उत्सव हमारे लिए कुछ और नहीं, ऊर्जा का सही-सही निवेश है। जिस ऊर्जा को हम ऐसी भाग-दौड़ में खपा रहे हैं, जो अवसाद रचे, उसे थोड़ा ठहरने में, जीवन की जीवंतता के निर्माण में भी खपाना चाहिए। ऐसे ठहराव में, जो रंगों की फसल उगा सके।

वह मन का उत्सव समझने का ही भाव था कि कोरे कैनवास पर पिकासो रंगों की ऐसा भाषा रच देते, जिससे अपना ही नहीं, दूसरों का हृदय भी आनंद से भर उठता। चार्ली चैप्लिन दुख में भी आनंदित होने की कला में माहिर हो गए थे और फिर परदे पर इसे उकेरने में भी। आज आनंद की कमी का ही नतीजा है कि अवसाद जड़ें जमा रहा है। एनाटोमी ऑफ मीलेनकोली में रिचर्ड बाउन कहते हैं कि हम आनंदित होने में अगर सफल नहीं रहे, तो ऐसे स्वचालित यंत्रों में बदल जाएंगे, जिन्हें अवसाद भी हो। वह आगे कहते हैं कि हमें निरंतर नृत्य और गायन की खुराक चाहिए। ऐसी खुराक, जो हमारे शरीर और हमारी आत्मा, दोनों का पोषण करे।
 

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