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निष्पक्ष चुनाव का भरोसा न हो खंडित

ईवीएम विवाद एक बार फिर गरम हो उठा है। साल 1982 से जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, तब से इस पर विवादों की छींटे पड़ते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने बार-बार यह साफ किया है कि यह व्यवस्था सुरक्षित...

निष्पक्ष चुनाव का भरोसा न हो खंडित
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 16 Mar 2017 12:44 AM
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ईवीएम विवाद एक बार फिर गरम हो उठा है। साल 1982 से जब से ईवीएम का इस्तेमाल शुरू हुआ है, तब से इस पर विवादों की छींटे पड़ते रहे हैं। हालांकि चुनाव आयोग ने बार-बार यह साफ किया है कि यह व्यवस्था सुरक्षित और चाक-चौबंद है।

ईवीएम का निर्माण इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (परमाणु ऊर्जा विभाग का एक उद्यम) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (रक्षा विभाग के अधीन) करते हैं, और ये दोनों श्रेष्ठ क्षमता वाले रक्षा उपकरण बनाने में माहिर हैं। यहां मशीनी और इलेक्ट्रॉनिक, हर तरह से सुरक्षित ईवीएम तैयार किए जाते हैं। इसमें इस्तेमाल सॉफ्टवेयरभी ऐसे प्रोग्राम को समेटे होते हैं, जिनके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। दूसरी मशीन या सिस्टम के साथ इसे जोड़कर संचालित भी नहीं किया जा सकता। इसीलिए हैकिंग करके ईवीएम से डाटा चुराने या उसे बदलने का सवाल ही नहीं उठता। इसमें इस्तेमाल चिप का सॉफ्टवेयर इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) व भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) अपने-अपने यहां विकसित करते हैं।
कामकाज के लिहाज से भारतीय ईवीएम दो हिस्सों में बंटी होती है। एक मतदान का हिस्सा होता है और दूसरा नियंत्रण का। कोई भी वोट तभी रिकॉर्ड होता है, जब मतदान केंद्र पर पीठासीन पदाधिकारी मतदान यूनिट को कंट्रोल यूनिट के माध्यम से सक्रिय करता है। हालांकि पीठासीन पदाधिकारी ऐसा हर मतदान के 12 सेकंड के बाद ही कर सकता है। इसीलिए ईवीएम में एक मिनट में अधिक से अधिक पांच मत डाले जा सकते हैं। साल 2006 में इसमें सुरक्षा के अतिरिक्त उपाय भी किए गए थे, जैसे मतदान यूनिट और कंट्रोल यूनिट के बीच डायनेमिक कोड लगाना, एक रियल टाइम घड़ी का इस्तेमाल, डिस्प्ले स्क्रीन और हर बटन को दबाते ही समय व दिन की छपाई।

बावजूद इसके निर्वाचन आयोग भी अपने तईं सुरक्षा के तमाम कदम उठाता है। जैसे ईवीएम एक सुरक्षित कमरे में रखी जाती हैं, जिनकी सुरक्षा हथियारों से लैस पुलिसकर्मी करते हैं। सभी संबंधित पक्षों के सामने ही कमरे को खोला जाता है। चुनावों से पहले सभी ईवीएम की प्राथमिक जांच बीईएल और ईसीआईएल अधिकारी तमाम राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों के सामने करते हैं। फिर सभी के बीच मतदान की एक छद्म प्रक्रिया अपनाई जाती है और नतीजों का मिलान किया जाता है। इन सब प्रक्रियाओं को कैमरे में कैद किया जाता है। तमाम पक्षों के संतुष्ट होने के बाद ही ईवीएम को गुलाबी पेपर में सील किया जाता है, जो नासिक के सिक्योरिर्टी प्रिंटिंग प्रेस में बना होता है। इस सील पेपर पर सियासी दलों के प्रतिनिधि हस्ताक्षर करते हैं। अगर किसी मशीन की सील टूटी होती है, तो उसका चुनाव में इस्तेमाल नहीं होता।

ईवीएम में उम्मीदवारों के स्थान तय करने की प्रक्रिया भी चुनाव आयोग पर्यवेक्षक की उपस्थिति में उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधियों के सामने करता है। इस समय भी एक छद्म मतदान प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि कोई संदेह न रहे। इन तमाम उपायों से गुजरते हुए जब मतदान का असली दिन आता है, तब भी पीठासीन अधिकारी और उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधियों के सामने 100 छद्म वोट डालकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि ईवीएम पूरी तरह दुरुस्त हैं। चुनाव के बाद फिर इसी तरह कई सुरक्षा उपायों से गुजरते हुए ईवीएम स्ट्रांग रूम में पहुंचता है, जिसे मतगणना के दिन उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों और चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक के सामने खोला जाता है।

ईवीएम पर संदेह इसलिए भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि इसे अदालत से क्लीन चिट मिली हुई है। बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) व कर्नाटक हाईकोर्ट में दो अलग-अलग चुनाव याचिकाओं में ईवीएम पर सवाल खड़े किए गए थे। मगर कुछ तकनीशियनों व कंप्यूटर विशेषज्ञों से जिरह के बाद दोनों हाईकोर्ट न सिर्फ ईवीएम की सुरक्षा को लेकर संतुष्ट हुए, बल्कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह तक कहा कि ‘इलेक्ट्रॉनिक व कंप्यूटर प्रौद्योगिकी की यह अद्भुत उपलब्धि है।’ केरल हाईकोर्ट भी ईवीएम की तारीफ कर चुका है। बावजूद इसके वक्त-वक्त पर ईवीएम को लेकर विवाद खड़ा किया जाता है। यह विडंबना है कि कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने इस पर सवाल उठाए हैं, मगर जब इन्हीं मशीनों से उनके खाते में जीत आती है, तो वे अपनी गलतबयानी को स्वीकारते नहीं, चुप्पी साध लेते हैं।

मतदाता पावती रसीद यानी वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल (वीवीपीएटी) ईवीएम को चाक-चौबंद बनाने की दिशा में उठाया गया एक खास कदम है। इसका पहली बार इस्तेमाल चार सितंबर, 2013 को नगालैंड के नोकसेन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में हुआ था। बाद में मिजोरम और दिल्ली में भी इसका उपयोग किया गया। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 2019 के आम चुनाव में मतदाता पावती रसीद की पूर्ण व्यवस्था हो। चुनाव आयोग ने अदालत को आश्वस्त किया था कि वह तय समय-सीमा में पर्याप्त वीवीपीएटी मशीनें बना लेगा और इस दिशा में 20,000 मशीनों को बनाने के तत्काल आदेश भी जारी किए गए थे। मगर हकीकत यह है कि आज भी हम 20,000 मशीन की बात ही सुन रहे हैं, जबकि 2019 में हमें ऐसी 20 लाख मशीनों की जरूरत होगी और अब तक कम से कम दस लाख मशीनें तैयार हो जानी चाहिए थीं। चिंता की बात यह है कि यदि यही गति रही, तो कैसे चुनाव आयोग 2019 का वादा पूरा कर सकेगा?

सवाल यह है कि मौजूदा विवाद के बाद भविष्य की क्या तस्वीर बनेगी? चूंकि कई पार्टियां अदालत में चली गई हैं, इसलिए मुमकिन है कि अदालत उन तमाम मशीनों को सील करनेके आदेश दे, जिन पर संदेह है। इन ईवीएम को राजनीतिक दलों के सामने जांचा-परखा जा सकता है। दूसरी बात यह हो सकती है कि चूंकि वीवीपीएटी मशीनें अब पर्याप्त मात्रा में चुनाव आयोग के पास हो जानी चाहिए, इसलिए वह तमाम राज्यों में विधानसभा चुनावों में मतदाता पावती रसीद की शुरुआत करे।

इसके साथ ही चुनाव आयोग को उन तमाम दुष्प्रचारों का भी माकूल जवाब देना चाहिए, जो जंगल में आग की तरह भयानक तरीके से फैल रहे हैं। हालांकि आयोग जवाब देता है, मगर मीडिया उसे उतनी तवज्जो नहीं देता, जितनी कि वह विवादों या अफवाहों को दे रहा है। हमें याद रखना चाहिए कि चुनाव प्रणाली में लोगों का विश्वास और भरोसा सर्वोपरि है। इसे खंडित करने की अनुमति किसी को नहीं दी जानी चाहिए। लोगों व सियासी दलों को जहां सवाल करने का अधिकार है, तो वहीं चुनाव आयोग का भी कर्तव्य है कि वह संतोषजनक जवाब दे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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