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गोपनीयता के खतरे

केंद्रीय सूचना आयुक्त ने कहा है कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे ने अदालत में जो बयान दिया था, उसे सार्वजनिक किया जाए। सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी राष्ट्रीय अभिलेखागार से मांगी गई...

गोपनीयता के खतरे
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 21 Feb 2017 12:15 AM
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केंद्रीय सूचना आयुक्त ने कहा है कि महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे ने अदालत में जो बयान दिया था, उसे सार्वजनिक किया जाए। सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी राष्ट्रीय अभिलेखागार से मांगी गई थी। अभिलेखागार ने जवाब में कहा कि वह ऐसी जानकारी अलग से नहीं दे सकता, जिसे यह जानकारी चाहिए, वह खुद अभिलेखागार में आकर इसे ढूंढ़ सकता है।

जानकारी मांगने वाले ने जब इसके लिए सूचना आयोग से संपर्क किया, तो आयोग ने अभिलेखागार से यह जानकारी उपलब्ध कराने को कहा। केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू ने कहा है कि लोगों को यह जानने का अधिकार है कि महात्मा गांधी के हत्यारे ने अपनी सफाई में अदालत में क्या कहा था? साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि नाथूराम गोडसे या उनकी विचारधारा के लोग महात्मा गांधी के दर्शन से असहमत हो सकते थे, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वे गांधी की हत्या करने की हद तक चले जाएं। राष्ट्रीय अभिलेखागार से यह भी कहा गया है कि वह इस संबंध में एक इंडेक्स तैयार करे और उसे अपनी वेबसाइट पर भी डाले, ताकि लोग जान सकें कि हत्या करने वाले ने अदालत में क्या कहा?

सूचना आयुक्त का यह आदेश तब आया है, जब इन दिनों सोशल मीडिया, खासकर फेसबुक और वाट्सएप पर नाथूराम गोडसे का एक ‘कबूलनामा’ जगह-जगह चलाया जा रहा है। यह ‘कबूलनामा’ बताता है कि महात्मा गांधी का हत्यारा उनका अनन्य भक्त था, लेकिन वैचारिक कारणों से वह गांधी की हत्या करने को ‘बाध्य’ हुआ। जाहिर है कि इस कथित ‘कबूलनामे’ की भाषा नाथूराम गोडसे के महिमा मंडन की है।

यह मामला बताता है कि जब हम इस या उस कारण से सच को सामने आने से रोकते हैं, तो कैसे झूठ उसका विकल्प बनकर ज्यादा बड़ा नुकसान पहुंचाता है। महात्मा गांधी की हत्या पूरी दुनिया को हिला देने वाली घटना थी और अब तक बीसियों किताबें लिखी जा चुकी हैं। बहुत सी किताबें ऐसे लोगों ने भी लिखी हैं, जिन्हें हम गांधी समर्थक कहते हैं। कई किताबें विदेशी लेखकों और पत्रकारों ने लिखी हैं, तो कुछ ऐसी किताबें भी हैं, जिनके लेखक नाथूराम गोडसे की विचारधारा के समर्थक हैं। पिछले दिनों नाथूराम गोडसे पर बना एक आत्मकथ्य नुमा नाटक भी काफी चर्चित हुआ था। दिलचस्प बात यह है कि गोडसे का जो कथित ‘कबूलनामा’ इन दिनों सोशल मीडिया पर चल रहा है, वह इनमें से किसी भी किताब में नहीं है। यह ठीक है कि सोशल मीडिया पर इस तरह के झूठ बहुत तेजी से चलते हैं, लेकिन जब सच कहीं उपलब्ध ही न हो, तो वे झूठ जंगल की आग की तरह फैलते हैं। सोशल मीडिया पर पर ऐसे ही कई झूठ सुभाष चंद्र बोस के बारे में भी चलते रहते हैं। अच्छी बात यह है कि सरकार अब बोस से जुड़ी गोपनीय फाइलों को धीरे-धीरे सामने ला रही है।

पर न जाने कितने और ऐसे मामले हैं, जिनकी फाइलें अब भी गोपनीय हैं। यह जरूरी है कि देश के पास गोपनीयता की खुलासे की एक नीति हो। एक समय-सीमा तय हो, जिसके बाद तमाम गोपनीय फाइलें सार्वजनिक कर दी जाएं। यह संभव नहीं कि हर मामले पर केंद्रीय सूचना आयोग कोई आदेश दे। सरकार पर निर्भरता का अर्थ यह भी हो सकता है कि कुछ चुनींदा किस्म के सच ही सामने आएं, बाकी और गहरे गाड़ दिए जाएं। इसलिए नीति ऐसी होनी चाहिए कि किसी दल विशेष के लिए उसके दुरुपयोग की आशंका ही न रहे। इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस युग में यह ज्यादा ही जरूरी है। ये ऐसे माध्यम हैं, जिनके जरिये जनमत को प्रभावित करने के लिए झूठ का बडे़ पैमाने पर प्रसारण किया जाता है।

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