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स्नैपचैट की सफलता के मायने

सबसे पहले एक स्वीकारोक्ति: मुझे कोई स्नैपचैट नहीं करता। मैं इसे लेकर हैरान नहीं, क्योंकि मेरे हमउम्र ज्यादातर लोग स्नैपचैट नहीं करते। यहां मैं अपनी उम्र नहीं बताऊंगा, हालांकि कई बार ऐसे मौके आते हैं,...

स्नैपचैट की सफलता के मायने
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 06 Mar 2017 12:44 AM
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सबसे पहले एक स्वीकारोक्ति: मुझे कोई स्नैपचैट नहीं करता। मैं इसे लेकर हैरान नहीं, क्योंकि मेरे हमउम्र ज्यादातर लोग स्नैपचैट नहीं करते। यहां मैं अपनी उम्र नहीं बताऊंगा, हालांकि कई बार ऐसे मौके आते हैं, जब मैं खुद को उतना ही उम्रदराज महसूस करता हूं, जितना कि मेतूशेलह (बाइबिल में वर्णित एक आदिगुरु, जो 969 वर्ष तक जीवित रहा था) और मैं एक ऐसे न्यूजरूम में काम करता हूं, जहां पर ज्यादातर ऐसे कमउम्र नौजवान हैं, जिन्होंने इस शख्स का जिक्र कभी नहीं सुना होगा।

बहरहाल, बुधवार को स्नैपचैट की मूल कंपनी स्नैप इंक ने आईपीओ के तहत 3.4 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य के शेयर बेचे। इससे कंपनी की कीमत 20 अरब डॉलर आंकी गई है। यह इसके लिए कतई बुरी स्थिति नहीं है, क्योंकि इसने पिछले वित्त वर्ष में 40.4 करोड़ डॉलर राजस्व कमाया और 51.5 करोड़ डॉलर का घाटा झेला था। लगभग इसी दौरान द इकोनॉमिस्ट  ने स्नैपचैट पर एक स्टोरी भी छापी थी, जो साफ सबूत था कि यह एप अब मुख्यधारा का हिस्सा बन चुका है।

स्नैप नए दौर की मीडिया कंपनी है और स्नैपचैट एक लोकप्रिय मैसेजिंग एप, यानी संदेशों के आदान-प्रदान का मंच। दिसंबर तक के आंकड़ों को मानें, तो इस पर रोजाना 15.8 करोड़ सक्रिय सदस्य लगभग 2.5 अरब स्नैप (यहां की पोस्ट को स्नैप कहते हैं) करते हैं। यानी हर व्यक्ति यहां औसतन 16 स्नैप करता है, जो एक अच्छी संख्या मानी जाएगी। इस कंपनी की शुरुआत 2011 में तीन लोगों ने की थी, जिनमें से दो अब अरबपतियों की जमात में शुमार हैं, जबकि इन तीनों में जो सबसे युवा सदस्य हैं और जिनके दिमाग की उपज स्नैपचैट है, उन तीसरे शख्स को कंपनी छोड़ने के बदले में 15.75 करोड़ डॉलर रकम चुकाईगई थी।

बहरहाल, कई मामलों में स्नैप एक ऐसी कंपनी है, जिसने 2010 के दशक की नब्ज बखूबी पकड़ ली थी। यही वजह है कि आज यह इस मुकाम पर है। इस पर आप जो कुछ भी स्नैप करते हैं, वह 24 घंटे बाद अपने आप खत्म हो जाता है; फिर चाहे वे शब्द हों, फोटोग्राफ या फिर वीडियो। इस एप की यही चंचलता 18 से 24 आयु-वर्ग के नौजवानों को लुभाती है, जिसे इफेमेरल्स यानी अस्थिर पीढ़ी कहना कहीं ज्यादा उचित होगा। यही पीढ़ी इस एप का प्रमुखता से इस्तेमाल करती है। आंकड़ों की मानें, तो करीब आधे स्नैपचैट उपयोगकर्ता इसी आयु-वर्ग के हैं। अमेरिका में तो यह आंकड़ा करीब 60 फीसदी का है। हालांकि दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में ही 18 से 24 आयु-वर्ग की सिर्फ नौ फीसदी आबादी फेसबुक का इस्तेमाल करती है।

यह एक ऐसी पीढ़ी है, जो अब काफी आगे निकल चुकी है। कभी इस एप पर अश्लील तस्वीरें काफी लोकप्रिय थीं, मगर अब अपने जीवन की जुड़ी तस्वीरें यहां ज्यादा दिखती हैं, जो आमतौर पर हंसी-मजाक वाली होती हैं या उत्तेजक या फिर दोनों तरह की। मुझे तो दिन-रात स्नैपचैट में लगे रहने वाले लोग टेलीविजन सितारों की सच्चाई याद दिलाते हैं, जो जीवन भर यही मानकर चलते हैं कि कैमरे हमेशा उनके सामने हैं।

ऊपर जिस इफेमेरल्स शब्द का मैंने जिक्र किया है, वह वनस्पति विज्ञान से लिया गया है। इसकी दो वजहें हैं- पहली, स्नैपचैट अपने चरित्र में क्षणभंगुर है। और दूसरी, ज्यादातर लोग इस आयु-वर्ग को मिलेनियल्स यानी सहस्त्राब्दी पीढ़ी कहते हैं, जो मेरी नजर में उचित नहीं है। मिलेनियल शब्द दरअसल उसके लिए इस्तेमाल होता है, जो साल 2000 में (या 2001/ 2002 तक) युवा बन चुका हो। जाहिर है, इस कारण आज अधिकाधिक स्नैपचैट करने वालों के लिए उम्र कहीं अधिक हो जाएगी।

आखिर इस अस्थिरता या स्नैपचैट से हमें चिंतित क्यों होना चाहिए, यह ज्यादातर उम्रदराज लोग नहीं समझते। मगर तथ्य यही है कि युवाओं में लोकप्रिय यह मंच मीडिया कंपनियों और विज्ञापनदाताओं के लिए अब अनछुआ नहीं रह गया है। स्नैपचैट पर विज्ञापन देने वाली कंपनियां बखूबी समझती हैं कि इसके लिए टिकाऊ विज्ञापन गढ़ने की जरूरत नहीं है। बाकी सबकी तरह वे भी एक बार देखने या फिर 24 घंटे के बाद खुद ब खुद खत्म हो जाते हैं।

कुछ मामलों में देखें, तो एक मैसेजिंग प्लेटफॉर्म से शुरू होकर मीडिया और विज्ञापन मंच तक का सफर तय करने वाली स्नैप की विकास-यात्रा फेसबुक की याद ताजा करती है। आज फेसबुक मोबाइल विज्ञापन व्यवसाय में सबसे आगे है और इस पर रोजाना 1.2 अरब लोग सक्रिय रहते हैं। स्नैप के शेयरों के दाम भी गुरुवार को, अपने पहले ही दिन 44 फीसदी तक बढे़, जो बताता है कि इससे निवेशकों की कितनी उम्मीदें बंधी हैं।

निश्चय ही अभी यह कयास लगाना जल्दबाजी होगी कि गूगल और फेसबुक की तरह स्नैप भी विज्ञापन व्यवसाय में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी साबित होगी। मगर यह तय है कि इसकी सफलता प्रतिद्वंद्वियों की नजरों में है। यही कारण है कि वाट्सएप (जो फेसबुक की अधीन है) ने हाल ही में स्टेटस लॉन्च किया है, जो ठीक वैसा ही काम करता है, जिस तरह स्नैपचैट। इसी तरह, पिछले साल फेसबुक के स्वामित्व वाली दूसरी कंपनी इंस्टाग्राम ने भी इंस्टाग्राम स्टोरीज को लॉन्च किया था, जो स्नैपचैट से मिलता-जुलता है। इसे दिलचस्प ही कहेंगे कि इंस्टाग्राम स्टोरीज की शुरुआत के बाद उपयोगकर्ताओं की संख्या के मामले में स्नैपचैट की रफ्तार थोड़ी कम हुई है।

बहरहाल, विज्ञानपदाताओं और कंटेंट गढ़ने वालों (इनमें पत्रकार भी शामिल हैं) के लिए स्नैपचैट की प्रसिद्धि और स्नैप आईपीओ की सफलता अल्पजीवी कंटेंट या तत्व की लोकप्रियता का ही एक और सबूत है। युवाओं को अपना पाठक या दर्शक बनाने की चाहत रखने वाली कंपनियों के पास अब इसे अपनाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उदाहरण सामने है, जब पिछले साल के अंत में द इकोनॉमिस्ट ने अपना वीकेंड एडिशन यानी साप्ताहांत संस्करण स्नैपचैट पर ही लॉन्च किया। 
 

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