तमिलनाडु की राजनीति में नए खेल की शुरुआत
इस विडंबना की दूसरी मिसाल नहीं है। तमिलनाडु का बड़ा तबका जयललिता को ईश्वर बनाने लग गया, खासकर उनकी मृत्यु के बाद। लेकिन अब वही लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद खासे खुश दिखाई दे रहे हैं। कोर्ट ने...
इस विडंबना की दूसरी मिसाल नहीं है। तमिलनाडु का बड़ा तबका जयललिता को ईश्वर बनाने लग गया, खासकर उनकी मृत्यु के बाद। लेकिन अब वही लोग सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद खासे खुश दिखाई दे रहे हैं। कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में जयललिता व तीन अन्य को दोषमुक्त करने के हाईकोर्ट के आदेश को गलत बताया है। कारण बहुत साफ है- वे अन्नाद्रमुक की कमान अपने हाथ में ले चुकीं शशिकला के हाथों में राज्य की कमान नहीं सौंपना चाहते। शशिकला को भी अब इस कड़वे सच का एहसास हो चुका होगा कि उनके प्रति घृणा, दिख रहे प्यार से काफी ज्यादा है। जयललिता की मृत्यु के बाद आए इस फैसले ने न सिर्फ उनके दोषी होने पर मुहर है, बल्कि उनकी संपत्तियों से सौ करोड़ की वसूली का भी आदेश है।
ऐसा कोई तरीका नहीं है, जो बता सके कि शशिकला को कितने लोग पसंद नहीं करते, लेकिन धारणा और हवा में तैरते विचारों को पढ़ा जाए, तो आम आदमी, खासतौर से महिलाएं उनसे नफरत करती हैं। सोशल मीडिया ने भी इस सच को देर से स्वीकार किया कि शशिकला किस हद तक बुराई का दूसरा अवतार बन गई थीं। तीन दशक तक जयललिता की खास दोस्त और साये की तरह साथ रही शशिकला यह धारण नहीं तोड़ पाईं कि जयललिता की सारी मुश्किलों के पीछे उन्हीं का हाथ रहा है।
यह फैसला उस वक्त आया है, जब तमिलनाडु की राजनीति संक्रमण के दौर में है। भारी भरकम व्यक्तित्व वाली जयललिता के निधन और धुर विरोधी एमके करुणानिधि जैसे नेता के लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने से तमिलनाडु की राजनीति का आकाश अब खुला-खुला सा है। क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की नजर इसी पर है कि कौन इससे क्या हथिया पाता है? सबकी चाहत ‘द्रविड़ राजनीति’को किनारे लगाने की दिखती है। भाजपा संघ के सहयोग से संभावना के नए द्वार खुलते देख रही है, तो राज्य का विपक्ष राज्यपाल के जरिये केंद्र के खेल को संदेह की नजर से देख रहा है। फिलहाल तमिलनाडु का सबसे बड़ा संकट एक मजबूत और स्थिर सरकार का गठन है, जिसका खासा दारोमदार अन्नाद्रमुक के अगले कुछ दिन के कार्य-व्यवहार पर निर्भर है।
पार्टी पर कब्जे के लिए दो धाराओं शशिकला और पनीरसेल्वम का युद्ध पहले से जारी है। मृदुभाषी, आज्ञाकारी और सादगी पसंद पनीरसेल्वम ने ही सबसे पहले शशिकला के खिलाफ मोर्चा खोला। बड़ी सफाई से शशिकला के चंगुल से बाहर निकलते हुए उन्होंने खुद को जयललिता का सच्चा राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरी ओर, चीजों को इतने करीब आने के बाद हाथ से फिसलते देख डरी हुई शशिकला थीं, जिन्होंने समर्थक विधायकों को अपने कब्जे में रखने की हरसंभव कोशिश की। वह यह साबित करती रहीं कि जयललिता की अत्यंत करीबी दोस्त और सहयोगी होने के कारण वही उनकी असली व स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं। लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनकी हवाइयां उड़ा दी हैं, उनका प्लान ‘बी’ सामने आ गया है, जिसमें पार्टी उनके परिवार के नियंत्रण में रहे और ऐसा मुख्यमंत्री बने, जो उनके इशारों पर चले।
पनीरसेल्वम ज्यादा से ज्यादा विधायकों को अपने साथ करने में जुटे हैं। फिलहाल तो यह खासा मुश्किल दिखता है। अब यह उनके विवेक और क्षमता की परीक्षा है कि वह आने वाले दिनों में अगले चार साल के लिए स्थायी सरकार का भरोसा दिलाकर विधायकों को किस तरह अपने साथ कर पाते हैं। तीसरी सूरत भी बन सकती है, हालांकि यह राज्य के लिए अच्छा नहीं होगा। अब दोनों ही पक्ष- पनीरसेल्वम धड़ा और फैसला आने के बाद निर्वाचित शशिकला गुट के नेता इडापल्ली पलानीसामी अपने-अपने खूंटों पर अड़े रहकर, अपनी-अपनी जमीन खोदते रहें, तो राज्य को राष्ट्रपति शासन के दौर से भी गुजरना पड़ सकता है। ऐसे में अंतत: यह शायद दीर्घा में खामोशी के साथ बैठे द्रमुक के लिए फायदे का सौदा बन जाए। अन्नाद्रमुक के दोनों धड़े कम से कम ऐसा तो नहीं ही होने देना चाहेंगे। आय से अधिक संपत्ति के मामले में परदा भले ही गिर गया है, लेकिन तमिलनाडु में राजनीति के नए खेल की यह सिर्फ शुरुआत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)