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दस द्वारे का पींजरा

मनुष्य के शरीर को एक पिंजड़े की तरह देखा गया है, जिसमें आत्मा का निवास होता है। कबीर का दोहा दस द्वारे का पींजरा तामे पंछी पौन/ रहिबे को है आचरज है, जाए तो अचरज कौन  बताता है कि शरीर में आत्मा का...

दस द्वारे का पींजरा
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Mar 2017 11:34 PM
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मनुष्य के शरीर को एक पिंजड़े की तरह देखा गया है, जिसमें आत्मा का निवास होता है। कबीर का दोहा दस द्वारे का पींजरा तामे पंछी पौन/ रहिबे को है आचरज है, जाए तो अचरज कौन  बताता है कि शरीर में आत्मा का पंछी किसी हवा के झोंके की तरह दोलायमान है। कोई तो बात है कि हमारे शास्त्रों ने बार-बार आत्मा के लिए पंछी का रूपक चुना है। उपनिषदों में द्वा सपर्णा सयुजा सखाया- एक डाल पर बैठी दो चिड़ियों द्वारा जीव और ब्रह्म की बात समझाई गई है।महाभारत  के रचयिता व्यास के पुत्र शुकदेव हैं। भागवत की कथा शुकदेव के मुख से इसलिए मधुर लगती है कि पके फल में सुग्गे का चोंच मारना फल के स्वादिष्ट होने का प्रमाण होता है। योगशास्त्र में योगी विहंगम योग को श्रेष्ठ ठहराते हैं, क्योंकि जैसे चिड़िया सरलता से एक से दूसरी डाल पर पहुंच जाती है, वैसे ही विहंगम योग परमात्मा तक सहज पहुुंचा सकता है। कला और संस्कृति की दुनिया में चिड़िया मायने रखती है। महर्षि अरविंद के लिए यह ‘ऊर्ध्व आरोहण’ का प्रतीक है। कवि पंत इसे प्रकृति के सौंदर्य से जोड़ते हैं- बांसों का झुरमुट/ हैं चहक रहीं चिड़िया टी-वी-टी-टुट।  बच्चन कहते हैं- अंतरिक्ष में आकुल आतुर/ कभी इधर उड़, कभी उधर उड़/ पंथ नीड़ का खोज रहा है, पिछड़ा पंछी एक अकेला। महाभारत  में पक्षी के साथ मनुष्य के दो संबंध हैं- बंध-संबंध व वध-संबंध। या तो पक्षी मनुष्य के प्रेम भाव को उभारता है या उसका भोज्य बन जाता है। मनुष्य की सीमाएं हैं। उसमें इंद्रियों के दस दरवाजे हैं। उसमें आत्मा के पंछी का फुदकना, पिंजड़े को घर समझना माया-मोह का ऐसा ताना-बाना है, जिसमें हम जिंदगी का तिलिस्म गढ़ते हैं।

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