फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियनट्रंप ने बदल दी है भारतीय छात्रों की प्राथमिकता

ट्रंप ने बदल दी है भारतीय छात्रों की प्राथमिकता

पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों ने अब अपना ठिकाना बदल दिया है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही, अमेरिका में रह रहे विदेशी छात्र तेजी से कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए वीजा का...

ट्रंप ने बदल दी है भारतीय छात्रों की प्राथमिकता
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 12 Feb 2017 09:32 PM
ऐप पर पढ़ें

पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले छात्रों ने अब अपना ठिकाना बदल दिया है। डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही, अमेरिका में रह रहे विदेशी छात्र तेजी से कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जाने के लिए वीजा का आवेदन करने लगे हैं। ऐसे छात्रों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। अभी तक अमेरिका और इंग्लैंड की डिग्री अच्छी नौकरी की गारंटी मानी जाती थी, मगर अब यह रुझान बदल रहा है। 
साठ के दशक के पहले संपन्न परिवारों के भारतीय छात्र अधिकतर ब्रिटेन जाते थे, जहांं के विश्वविद्यालय बहुत ही प्रतिष्ठित थे। कुछ विश्वविद्यालयों में यह भी प्रावधान था कि छात्र कैंपस से बाहर जाकर पार्ट-टाइम नौकरी कर सकते थे, जिससे वे पढ़ाई का खर्च निकाल लेते थे। मगर धीरे-धीरे ब्रिटिश सरकार ने पार्ट-टाइम काम करके पढ़ने की इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया। फिर ब्रिटेन में यह धारणा भी बनने लगी कि ये लोग स्थानीय लोगों का काम छीन रहे हैं। हाल के वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने यह नियम बना दिया है कि विदेशों से प्रति वर्ष केवल एक लाख छात्र ही ब्रिटेन आ सकते हैं। उसने वीजा की शर्तें बहुत कठोर कर दीं। लगभग इसी समय अमेरिका ने उदार शर्तों पर स्कॉलरशिप देकर भारतीय छात्रों को आकर्षित किया। वहां पार्ट-टाइम काम करके शिक्षा का खर्च जुटाना भी आसान था। अनेक भारतीय छात्र, जिन्होंने अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की थी, वे वहीं बस गए। अमेरिकी संपन्न जनता को भी सस्ती दरों पर प्रशिक्षित भारतीय छात्र मिल जाते थे, जो अच्छी अंग्रेजी बोल लेते थे और कठिन परिश्रम करने से नहीं चूकते थे। मगर अब अमेरिका में भी यह भावना फैलने लगी कि विदेशी छात्र स्थानीय आबादी का रोजगार खा रहे हैं। ट्रंप लोगों की इसी सोच का फायदा उठाकर सत्ता में पहुंचे हैं। 

अब इन छात्रों का नया ठिकाना है कनाडा। अमेरिका और कनाडा में उच्च शिक्षा का स्तर एक जैसा ही है। यदि किसी ने अमेरिका के विश्वविद्यालय या कॉलेज में पढ़ाई की है और कनाडा चला गया है, तो कनाडा के विश्वविद्यालय और कॉलेज वहां की पढ़ाई का ‘क्रेडिट’ भी उसकी शिक्षा में जोड़ देते हैं। कनाडा में पाबंदियां नहीं हैं और विदेशियों को लेकर दुराग्रह भी नहीं है। वहां बड़ी संख्या में भारतीय हैं, खासकर पंजाब और गुजरात से गए लोग, जो समाज और राजनीति में बड़ी हैसियत रखते हैं। 

कनाडा के अलावा पिछले कुछ समय से भारतीय छात्र तेजी से ऑस्ट्रेलिया की ओर रुख कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया में पहले भी भारतीय छात्रों का स्वागत था। मगर 2009 और 2012 के बीच भारतीय छात्रों का जाना एक तरह से रुक गया था, क्योंकि इस दौरान कई भारतीय छात्रों पर नस्ली हमलों की खबरें आई थीं। फिर ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय भारतीय छात्रों को आसानी से स्कॉलरशिप नहीं देते थे और न उन्हें पार्ट-टाइम काम करने की इजाजत थी। लेकिन अब ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने अपनी नीति को बदला है, क्योंकि उसकी नजर विदेशी छात्रों से होने वाली आमदनी पर है। ऑस्ट्रेलिया में कहा जाता है कि वहां की सरकार को खनिज पदार्थों के निर्यात से सबसे अधिक आमदनी होती है, उसके बाद विदेशी छात्रों से। अब ऑस्ट्रेलिया सरकार ने वीजा नियमों को उदार बनाना शुरू कर दिया है। अब कोई भी भारतीय छात्र ऑस्टे्रलिया आकर पढ़ाई कर सकता है और पार्ट-टाईम नौकरी करके पढ़ाई का खर्च जुटा सकता है। इसके अलावा, ऑस्टे्रलिया की सरकार नस्लभेद के मामलों में भी काफी सख्ती बरत रही है। अच्छी बात यह है कि ऑस्टे्रलियाई विश्वविद्यालयों की डिग्री को भारत में पूरी मान्यता है और यदि किसी ने ऑस्ट्रेलिया के किसी विश्वविद्यालय से डॉक्टरी, इंजीनियरिंग में बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री प्राप्त की है, तो उसे संसार के किसी देश या भारत में नौकरी प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। इसके अतिरिक्त, आज की तारीख में ऑस्ट्रेलिया में लाखों भारतीय बसे हुए हैं। वे किसी भी भारतीय छात्र का ऑस्ट्रेलिया में हृदय खोलकर स्वागत करते हैं और उन्हें पार्ट-टाईम नौकरी दिलाने में मदद करते हैं। यह दुर्भाग्य की बात है कि अमेरिका में अब भारतीय छात्रों का प्रवेश धीरे-धीरे रुक रहा है, पर इससे अंतत: नुकसान अमेरिका का ही होगा। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को अमेरिका के रुख से सीधा लाभ मिलेगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें