FILM REVIEW : बिना भूत के डराती है एलियन कोवनेंट
बॉलीवुड में प्रीक्वल फिल्मों का चलन इस साल ‘नाम शबाना’ फिल्म के साथ शुरू हुआ है पर हॉलीवुड में यह चलन काफी पुराना है। फिल्म ‘एलियन कोवनेंट’ दरअसल एलियन शृंखला की छठीं और एलियन...
बॉलीवुड में प्रीक्वल फिल्मों का चलन इस साल ‘नाम शबाना’ फिल्म के साथ शुरू हुआ है पर हॉलीवुड में यह चलन काफी पुराना है। फिल्म ‘एलियन कोवनेंट’ दरअसल एलियन शृंखला की छठीं और एलियन की प्रीक्वल शृंखला की दूसरी फिल्म है। यह साल 2012 में रिलीज इस शृंखला की पिछली प्रीक्वल ‘प्रोमेथियस ’ के आगे की कहानी है। भारत में यह फिल्म लोगों को कैसी लगेगी, इसके दो जवाब हैं। पहला जवाब उन लोगों के लिए जिन्होंने इस सिरीज की पिछली फिल्में और इस तरह की दूसरी हॉलीवुड फिल्में पहले से देख रखी हैं। दूसरा जवाब उन लोगों के लिए है, जो पहली बार इस तरह की फिल्म देख रहे हैं। अगर आप पहली श्रेणी के दर्शक हैं, तो हो सकता है यह आपको यह फिल्म कई दूसरी हॉलीवुड फिल्मों का घालमेल लगे। पर अगर आप साइंस फिक्शन फिल्मों में रुचि रखते हैं और पहली बार यह फिल्म देखने जा रहे हैं, तो यह आपको पसंद आ सकती है। एक बात और, एलियंस से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका इस फिल्म में एंड्रॉइड रोबोट्स की है।
कुछेक हफ्ते पहले रिलीज फिल्म ‘गार्डियंस ऑफ गैलेक्सी’ भी अंतरिक्ष और एलियंस पर आधारित थी, पर उसमें और ‘एलियन कोवनेंट’ में जमीन-आसमान का फर्क है। जहां गार्डियंस ऑफ गैलेक्सी अंतरिक्ष और एलियंस पर आधारित एक हल्की-फुल्की फिल्म थी, वहीं एलियन कोवनेंट एक स्पेस हॉरर फिल्म है। जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे यह और निर्मम होती जाती है। इसके एलियंस कॉमेडी नहीं करते, बल्कि हर पल इंसानों की जान लेने पर आमादा रहते हैं। यह कहानी है कोवनेंट नामक एक स्पेसशिप में सफर कर रहे अंतरिक्ष यात्रियों की, जो ऑरिगेई-6 नामक धरती जैसे एक दूसरे ग्रह पर इंसानी बस्ती बसाने के मिशन पर निकले हैं। ये सभी गहरी नींद में सो रहे हैं और इन्हें कई सालों तक यूं ही सोते रहना है, जब तक कि वे उस ग्रह तक पहुंच न जाए। एक एंड्रॉइड रोबोट वॉल्टर (माइकल फैसबेंडर) स्पेसशिप की निगरानी और नियंत्रण कर रहा है। अचानक एक खास बिंदू पर कुछ तरंगों की वजह से कोनवेंट स्पेसशिप का संतुलन बिगड़ने लगता है। इस बड़े झटके की वजह से स्पेसशिप के कप्तान जेकब (जेक्स फ्रैंको) की मौत हो जाती है और बाकी सभी सदस्यों की लंबी नींद टूट जाती है। सदस्यों को पता लगता हैं कि वे एक ऐसे ग्रह के पास से गुजर रहे हैं, जिस पर किसी इंसान की मौजूदगी के आसार हैं।
स्पेसशिप का कैप्टन तय करता है कि कई साल और यात्रा करके ऑरिगेई-6 ग्रह पर जाने से बेहतर है इस पास के ग्रह पर तुरंत चले जाना। जेकब की पत्नी डैनियल (कैथरीन वॉटरसन) को इस तरह अचानक योजना बदलना गलत लगता है, पर सर्वसम्मति से बनाया गया नया कप्तान किस्टोफर (बिली ओरम) उसकी नहीं सुनता और तय करता है कि वह और शिप के कुछ अन्य सदस्यों के साथ तरंगों का पता लगाने के लिए जाता है। इस नए ग्रह पर जाकर वे पाते हं कि वहां पेड़-पौधे तो हैं, पर एक भी जीव-जंतु नहीं है। अचानक टीम के सदस्यों की हालत बिगड़ने लगती है और कुछ ही पलों बाद उनके शरीर को चीर कर कुछ खतरनाक दानव बाहर आने लगते हैं। इस ग्रह पर टीम के सदस्यों की मुलाकात एक दूसरे एंड्रॉइड रोबोट डेविड (वॉल्टर) से होती है, जो पिछले मिशन (प्रोमेथियस) का हिस्सा था। डेविड से मिलने के बाद टीम के सदस्यों को जिस राज का पता लगता है, उसे जानने के बाद वे समझ जाते हैं कि वे बहुत बड़ी मुसीबत में फंस चुके हैं। इसके बाद शुरू होती है जान बचाने की कवायद जिसमें चंद लोग ही सफल होते हैं।
फिल्म में काफी खून-खराबा और दिल दहला देने वाले दृश्य हैं। कुछ ऐसे दरिंदे हैं। जो इंसानों के कानों के जरिये धूल अंदर जाने से पनपते हैं और उनका सीना चीर कर बाहर आ जाते हैं। इस प्रक्रिया में उन बेचारे लोगों का खून ही नहीं बल्कि शरीर के अंदरूनी हिस्से तक बाहर आ जाते हैं। यानी अगर आप ऐसे दृश्यों को देखकर असहज नहीं होते हैं, तभी इसे देखने की हिम्मत जुटाइयेगा। बाकी अगर फिल्म के तकनीकी पहलू की बात करें, तो वह बेजोड़ है। अंतरिक्ष यान में कई साल गुजारने वालों की जिंदगी, उनका स्पेससूट पहन कर यान को सुधारने के लिए बाहर निकलना वगैरह बेहद सहज और प्रभावी लगा है। सिनेमैटोग्राफी और स्पेशल इफेक्ट्स अच्छे हैं। दोनो एंड्रॉइड रोबोट्स डेविड और वॉल्टर की भूमिका में माइकल ने जबर्दस्त काम किया है। एक दृश्य जिसमें डेविड, वॉल्टर को बांसुरी बजाना सिखा रहा है- इसमें दोनों के बीच एक अलग तरह की केमिस्ट्री नजर आती है। हैरत की बात यह है कि इस केमिस्ट्री में रोमांस भी है! बाकी कलाकारों की एक्टिंग सामान्य है। चलते-चलते एक बात और, अगर आप हैप्पी एंडिंग वाली फिल्मों के आदी हैं तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है।
स्टार- 2.5