ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News झारखंडसिंह मेंशन के रामधीर सिंह हजारीबाग सेंट्रल जेल भेजे गए

सिंह मेंशन के रामधीर सिंह हजारीबाग सेंट्रल जेल भेजे गए

सिंह मेंशन के स्तंभ माने जाने वाले रामधीर सिंह को गुरुवार की सुबह धनबाद जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। जेल आईजी सुमन गुप्ता के निर्देश के बाद रामधीर सिंह को कड़ी सुरक्षा के बीच हजारीबाग सेंट्रल...

सिंह मेंशन के रामधीर सिंह हजारीबाग सेंट्रल जेल भेजे गए
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Feb 2017 01:33 PM
ऐप पर पढ़ें

सिंह मेंशन के स्तंभ माने जाने वाले रामधीर सिंह को गुरुवार की सुबह धनबाद जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। जेल आईजी सुमन गुप्ता के निर्देश के बाद रामधीर सिंह को कड़ी सुरक्षा के बीच हजारीबाग सेंट्रल जेल में शिफ्ट किया गया। गत 20 फरवरी को रामधीर के सरेंडर के बाद उन्हें धनबाद जेल में रखा गया था, लेकिन जेल आईजी ने सुरक्षा को लेकर आशंका जताई थी।

साढ़े चार साल बाद फिर रामधीर का ठिकाना बना जेल

साढ़े चार साल बाद एक बार रामधीर सिंह का ठिकाना जेल बना है। इससे पहले 18 सितंबर 2012 को कोयला भवन में डीओ धारकों से रंगदारी मांगने के मामले में बेल बांड कैंसिल होने के कारण रामधीर सिंह को जेल जाना पड़ा था। सात दिन बाद 24 सितंबर 2012 को केस में रिहाई मिलने के बाद रामधीर धनबाद जेल से बाहर आए थी। रिहाई से पूर्व हथकड़ी पहना कर रामधीर को कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया जा रहा था। इस बात को लेकर जेल गेट पर समर्थकों ने हंगामा भी किया था। 24 सितंबर को जेल से बाहर आने के बाद यह पहला मौका है जब रामधीर सिंह जेल गए हैं।

एके 47 से विनोद पर चली थी ताबड़तोड़ गोलियां

15 जुलाई 1998 को कतरास हटिया शहीद भगत सिंह चौक के पास ताबड़तोड़ गोलियों से हमला कर विनोद सिंह और उनके चालक मन्नु अंसारी को मौत के घाट उतार दिया गया था। ताबड़तोड़ गोलियों से विनोद सिंह का एम्बेस्डर कार छलनी हो गया था। कार के दाहिने ओर से 17, बाई ओर से पांच और शीशे से 13 गोलियां घुसी थी। कार के अंदर 23 गोलियां मिली थीं। घटना स्थल से पुलिस ने 30 खोखे जब्त किए थे। दोनों के मांस का लोथड़ा और खून से कार का फर्स लाल हो गया था। पुलिस ने विनोद के भाई दून बहादुर के बयान और अनुसंधान के अधार पर इस मामले में रामधीर सिंह, बच्चा सिंह, राजीव रंजन सिंह, शेर बहादुर सिंह और चालक अनिल यादव के खिलाफ मामला दर्ज किया था। बच्चा और रामधीर को छोड़ बाकी तीनों आरोपियों के खिलाफ फरार रहने के कारण ट्रायल अभी भी लंबित है। हत्याकांड में अभियोजन की ओर से चार चश्मदीद गवाहों के अलावा 19 गवाहों का बयान दर्ज कराया गया था।

आंखों-देखी

हत्या के आधे घंटे बाद मृतक के भाई दून बहादुर सिंह ने पुलिस को बयान दिया था कि विनोद कोल डंप जाने के लिए अपनी नई एम्बेस्डर कार से निकले थे। कार मन्नु अंसारी चला रहा था। पीछे-पीछे वे भी अपनी महिंद्रा जीप से निकले थे। पंचगढ़ी बाजार में दोनों गाड़ियां जाम में थोड़ी देर फंसी रही। करीब 8.40 बजे वे लोग कतरास हटिया भगत सिंह चौक के पास जैसे ही पहुंचे। एक सादे रंग की मारुति कार दोनों गाड़ियों को ओवरटेक कर आगे रुक गई। मारुति से तीन लोग उतरे और विनोद सिंह की गाड़ी पर अत्याधुनिक हथियार से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। मेरी गाड़ी करीब 50 गज दूर थी। मैं डर से वहीं रुक गया। फयारिंग के बाद तीनों मारुति में बैठे और राजगंज की ओर भाग गए। हमलोग दौड़कर एम्बेस्डर के पास पहुंचे। विनोद और मन्नु खून से लथपथ गिरे हुए थे। भागते हुए तिलाटांड़ सेंट्रल अस्पताल गए और डा उमा शंकर को लेकर पुन: घटना स्थल पर लौटे। डा उमा शंकर ने दोनों को मृत घोषित कर दिया।

रामधीर पर गोली चलाने का आरोप हुआ था सिद्ध

दून बहादुर ने अपने बयान में बताया था कि मैंने गोली चलाने वालों को अच्छी तरह से देखा था और पहचानता हूं। उनमें से एक रामधीर सिंह और दूसरा राजीव रंजन सिंह थे। तीसरा साधारण कद का छोटी दाढ़ी रखे हुए था। देखकर पहचान लूंगा। ताबड़तोड़ गोली चलाने के बाद रामधीर सिंह ने कहा था कि भागो काम हो गया। हत्यारों ने मुझे नहीं देखा इसलिए मेरी जान बच गई। हत्या का कारण पुरानी दुश्मनी है। न्यायालय में आरोप सिद्ध हो गया था।

फैसले में क्या कहा था जज ने

228 तारीखों की सुनवाई के बाद जज ने इस केस में 22 पन्नों का जजमेंट लिखा था। 17 साल की लंबी सुनवाई के दौरान कोर्ट में कुल 228 तारीखें पड़ीं थी। जज ने अपने फैसले में लिखा था कि कोई भी घोड़े को तालाब तक ले जा सकता है, लेकिन उसे पानी पीने को विवश नहीं कर सकता। जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का हवाला भी दिया गया था। कहा गया था कि इस केस में दून बहादुर सिंह, देवाशीष घोषाल और सुधीर कुमार सिंह की गवाही को नाकारा नहीं जा सकता। उनके बयान से स्पष्ट है कि हत्या में रामधीर सिंह दोषी हैं।

फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण में रामधीर सिंह

- सजा होने से पहले रामधीर सिंह दो बार हाईकोर्ट और दो बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं

- 18 अक्तूबर 2012 से चार दिसंबर 2012 तक सेशन कोर्ट में अभियोजन की ओर से कोर्ट में बहस हुई

- 14 दिसंबर 2012 को रामधीर और बच्चा ने कोर्ट की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए याचिका दाखिल कर कहा था कि चार्ज में मन्नु की हत्या की बात नहीं आई थी जबकि सफाई बयान में मन्नु का भी नाम जोड़ा जा रहा है। इसलिए फिर से गवाहों को परीक्षण किया जाय।

- 13 फरवरी 2013 को सेशन ने इस याचिका को खारिज कर दिया था, बचाव पक्ष हाईकोर्ट गया वहां सात मार्च 2013 को यह याचिका खारिज हो गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 12 अगस्त 2014 को इसे खारिज कर दिया।

- 14 नवंबर 2014 को फिर बचाव पक्ष ने डीएसपी को बतौर गवाह बुलाने की मांग की। इस याचिका को भी पहले हाईकोर्ट और फिर 2015 के फरवरी माह में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

- 12 मार्च 2015 को रामधीर के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया था कि रामधीर डिमेंशिया रोग से पीड़ित हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें