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नई दिल्ली का पहला सिनेमाघर था रीगल

नई दिल्ली के देश की नई राजधानी बनने के बाद यह 1931 का दशक था जब देश में सिनेमाघरों ने अपनी जगह बनानी शुरू की और 40 का दशक आते आते लोग फिल्मों के दीवाने हो...

नई दिल्ली का पहला सिनेमाघर था रीगल
Sun, 13 Nov 2011 07:17 PM
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नई दिल्ली के देश की नई राजधानी बनने के बाद यह 1931 का दशक था जब देश में सिनेमाघरों ने अपनी जगह बनानी शुरू की और 40 का दशक आते आते लोग फिल्मों के दीवाने हो गए। इसी दौर में नई दिल्ली के कनाट प्लेस में पहले सिनेमाघर रीगल ने अपना अस्तित्व बनाया।

1940 के दशक में कनाट प्लेस में प्लाजा, रीगल, रिवोली, ओडियन जैसे सिनेमाघर स्थापित किए गए जो आज भी अपनी लोकप्रियता बरकरार रखे हुए हैं। इसी दौरान इंडियन टाकी हाउस भी बनाया गया था लेकिन यह थोड़े समय बाद ही बंद हो गया। इन सिनेमाघरों की बदौलत ही कनाट प्लेस मनोरंजन का केन्द्र बन गया और इन्होंने सिनेमाघरों की चहल पहल में चार चांद लगा दिए।

रीगल सिनेमाघर में पिछले 34 साल से प्रबंधन का कामकाज देख रहे पी वर्मा ने इस ऐतिहासिक सिनेमाघर के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए भाषा को बताया कि 1932 में खुला रीगल सिनेमाघर कनाट प्लेस का पहला सिनेमाघर था जिसे सर सोभा सिंह ने खोला था और वास्तुशिल्पी वाल्टर स्काइज जार्ज ने इसका डिजाइन तैयार किया था।

शुरूआत में इसकी स्थापना मंचीय कार्यक्रमों के लिए की गयी थी। समय बीतते बीतते रीगल में पश्चिमी शास्त्रीय संगीतकारों ने अपनी प्रस्तुतियां यहां देनी शुरू की और रीगल रशियन बैले तथा ब्रिटिश नाटकों के मंचन को लेकर लोकप्रिय हो गया।

उन्होंने बताया कि यह वह दौर था जब रीगल में बड़े-बड़े नेता और राजे-रजवाड़ों के लोग अपनी अपनी शाही बग्घियों और महंगी आयातित गाड़ियों में आते थे और यहां सजने वाली महफिल कनाट प्लेस की शान को और बढ़ा देती थी।

काफी समय बाद जाकर रीगल में सुबह के शो और मैटिनी शो में फिल्में दिखायी जाने लगीं। रीगल सिनेमाघर में संभ्रांत लोगों के लिए लॉबी में एक बार होता था तथा महिलाओं के लिए विशेष मैटिनी शो संचालित किया जाता था।

उस जमाने में गॉन विद दी विंड ने कई आस्कर पुरस्कार जीते थे और एक साल बाद ही अमेरिका के बाद भारत में इसका प्रीमियर 1940 में रीगल थियेटर में हुआ था और दुनिया के अन्य थियेटरों की तरह यहां भी इसने सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे। शाही परिवारों के लोग और ब्रिटिश अधिकारी तथा जानी मानी हस्तियां इस फिल्म को देखने के उमड़ पड़ी थीं।

इतिहासकार आर वी स्मिथ ने बताया कि उस जमाने में कनाट प्लेस के सिनेमाघरों में ब्रिटिश अधिकारियों और राजघरानों के लोगों के लिए हालीवुड की फिल्में ही लगायी जाती थीं। उन्हें 1960 से पहले खुद याद नहीं कि कभी कनाट प्लेस के सिनेमाघरों में कोई हिंदी फिल्म लगी हो।

स्मिथ ने बताया कि रीगल के बाद दूसरे नंबर पर कनाट प्लेस में प्लाजा सिनेमाघर 1940 में खुला जिसे खुद कनाट प्लेस के शिल्पकार सर राबर्ट रसेल ने डिजाइन किया था। आज शायद ही कोई इस बात को जानता हो कि प्लाजा सिनेमाघर के मालिक और कोई नहीं बल्कि अपने जमाने के प्रतिष्ठित और लोकप्रिय अभिनेता निर्देशक सोहराब मोदी थे। 1950 के दशक के शुरूआत तक वह इसके मालिक रहे।

रिवोली उस समय रीगल के बगल में इलाके का सबसे छोटा सिनेमाघर होता था। आधी सदी बीत जाने के बावजूद ये सिनेमाघर आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। हालांकि इनका रंगरूप और मालिकाना हक जरूर बदल गए हैं।

प्लाजा और रिवोली को मल्टीप्लेक्स सिनेमा संस्कति के जनक पीवीआर सिनेमाज ने खरीद लिया है तो ओडियन रिलायंस बिग पिक्चर का संयुक्त उद्यम है, लेकिन रीगल का अभी कारपोरेटिकरण नहीं हुआ है। इसके मुख्य हाल में आज भी यहां कभी सिनेमा देखने आने वाले नामचीन लोगों की तस्वीरें और बीते जमाने की ब्लाकबस्टर फिल्मों के पोस्टर गुजरे जमाने की याद दिलाते हैं।

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