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'गुस्सैल मासूमों' की तादाद 5 साल में 70% बढ़ी, जानिए क्या है वजह?

तीन से 7 वर्ष की उम्र के बच्चों में छोटी सी बात पर एक-दूसरे को धक्का देने या चीजों पर गुस्सा उतारने जैसी आदतें हैं तो वे आगे 'अटेंशन डेफिसिएंसिसी हाईपर एक्टिव डिसऑर्डर' का शिकार बन सकते हैं।...

'गुस्सैल मासूमों' की तादाद 5 साल में 70% बढ़ी, जानिए क्या है वजह?
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Mar 2017 08:11 AM
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तीन से 7 वर्ष की उम्र के बच्चों में छोटी सी बात पर एक-दूसरे को धक्का देने या चीजों पर गुस्सा उतारने जैसी आदतें हैं तो वे आगे 'अटेंशन डेफिसिएंसिसी हाईपर एक्टिव डिसऑर्डर' का शिकार बन सकते हैं। एम्स के पीडियाट्रिक विभाग के जेनेटिक क्लीनिक में आने वाले ऐसे बच्चों की संख्या 5 वर्षो में 70 फीसदी बढ़ी है। 

एम्स में बाल मस्तिष्क रोग विभाग की प्रमुख डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिएंसिसी हाईपर एक्टिव डिसऑर्डर) के शिकार बच्चे छोटी सी बात पर नाराज हो जाते हैं। यह समस्या उच्च आय वर्ग के हर 10वें बच्चे में देखी जा रही है। बच्चे में ऐसा व्यवहार सप्ताह में तीन बार से ज्यादा हो तो उसे मनोचिकित्सक को दिखाएं। 

जेनेटिक क्लीनिक में हुए अध्ययन में 1000 से अधिक बच्चों में से 60 प्रतिशत का व्यवहार सामान्य नहीं पाया गया। हालांकि, 99 प्रतिशत माता-पिता खुद इस व्यवहार के प्रति सचेत नहीं रहते। भाई-बहन, सहपाठी या फिर टीचर को ऊंची आवाज में जवाब देना भी सीबीसीएल (चाइल्ड बिहेव्यिर चेक लिस्ट) में असामान्य माना गया है, जिसको वह टीवी, वीडियो और मोबाइल गेम से हासिल कर रहे हैं। 

4 से 8 वर्ष के बच्चों की संख्या सबसे अधिक है, जो जिद करके अपनी बात मनवाते हैं। 10 से 15 वर्ष की उम्र के 40 फीसदी बच्चे खुद अभिभावकों के जरिए गुस्से की आदत का शिकार हो रहे हैं। 

काउंसलिंग के तीन चरणों में बच्चों के व्यवहार को परखा गया। अध्ययन में यह भी देखा गया कि माता-पिता बच्चे के साथ कम समय बिताते हैं। इसका विकल्प पीसी, वीडियो गेम और टीवी के कार्यक्रम आसानी से बन गए हैं।

पैरेंट्स इन बातों का हमेशा ध्यान रखें

- बच्चों को कम ही सही, मगर बेहतर समय दें 
- बच्चों से हमेशा आंख से आंख मिलाकर बात करें 
- बच्चे की हर जिद को पूरा न करें, उन्हें शांति से समझाने का प्रयास करें 
- 4 से 10 वर्ष की उम्र के बच्चों के सामने माता-पिता अपने आपसी झगड़े न सुलझाएं - क्रेच को परवरिश का बेहतर माध्यम नहीं माना गया है 
- नियमित रूप से 6 घंटे का समय बच्चों के साथ जरूर बिताएं
- बच्चों से हमेशा संयमित व्यवहार करें

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