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बदलाव की मशाल बन गईं ये बहादुर महिलाएं

इस साल महिला दिवस की थीम है ‘बी बोल्ड फॉर चेंज’ यानी बदलाव के लिए बहादुर बनो। देश में कई महिलाएं हैं जो बदलाव की मशाल बनकर दूसरों को रोशनी दिखा रही हैं। आइए जानते हैं ऐसी कुछ महिलाओं की...

बदलाव की मशाल बन गईं ये बहादुर महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 08 Mar 2017 01:17 AM
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इस साल महिला दिवस की थीम है ‘बी बोल्ड फॉर चेंज’ यानी बदलाव के लिए बहादुर बनो। देश में कई महिलाएं हैं जो बदलाव की मशाल बनकर दूसरों को रोशनी दिखा रही हैं। आइए जानते हैं ऐसी कुछ महिलाओं की कहानी।

उत्तर प्रदेश

ऊषा ने शराब भट्टी बंद कराने के लिए लाठी उठा ली
बरेली। लौंगपुर गांव में पुरुषों द्वारा शराब पीकर महिलाओं से मारपीट ने ऊषा देवी के रूप में एक ‘आंदोलन’ को जन्म दिया। वर्ष 2005 में ऊषा ने गांव में शराब भट्टी के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। उन्होंने महिलाओं की महापंचायत बुलाई। इसमें तय हुआ कि प्रशासन ने भट्टी नहीं हटाई तो महिलाएं इन्हें नेस्तनाबूद कर देंगी। प्रशासन ने इसे कोरी भभकी समझा। दबंगों ने भी धमकी दी। मगर ऊषा ठान चुकी थीं। उन्होंने अन्य महिलाओं के साथ लाठियां थाम लीं। महिलाएं भट्टी के पास खड़ी रहती, जो कोई शराब लेने आता, महिलाएं उसे लठियाकर भगा देतीं। एक महीने के आंदोलन के बाद आखिर प्रशासन को भट्टी पर ताला लगाना पड़ा।

बिहार

महिलाओं को खेतीबाड़ी सिखा रहीं ‘किसान चाची’
मुजफ्फरपुर। आनंदपुर गांव की राजकुमारी देवी ‘किसान चाची’ के नाम से जानी जाती हैं। वह आसपास के गांवों के लोगों खासकर महिलाओं को खेती के गुर सिखाती हैं। इसके लिए 55 वर्षीय राजकुमारी हर दिन 30 से 40 किलोमीटर साइकिल चलाकर गांवों में जाती हैं। उनसे प्रेरित होकर सैकड़ों महिलाओं ने खेती करनी शुरू कर दी है। राजकुमारी बताती हैं कि शादी के कुछ वर्षों बाद ससुर ने जब उनके पति को अलग कर दिया तो हिस्से में मिली ढाई एकड़ भूमि की उपज से परिवार चलाना कठिन था। तब राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय से उन्होंने उन्नत कृषि की जानकारी ली। यही ज्ञान अब वह दूसरी महिलाओं में बांटती हैं।

झारखंड

डायन कुप्रथा के खिलाफ दबंगों से लड़ गईं पूनम
रांची। डायन कुप्रथा झारखंड के लिए एक शर्मनाक पहलू है। गांव के दबंग अकेली, विधवा या ऐसी महिलाओं को निशाना बनाते हैं, जिन्हें पुत्र नहीं है। उन्हें सुनियोजित तरीके से ओझा-गुनियों की मदद से डायन साबित कर उनकी संपत्ति हड़पने का खेल खेलते हैं। महिलाओं पर होने वाली इस तरह की हिंसा के खिलाफ मुहिम छेड़ी खूंटी की महिला पूनम टोप्पो ने। पहले अकेले ही शुरुआत की। फिर वर्ष 2000 में ‘आशा’ संस्था की स्थापना कर डायन कुप्रथा के विरुद्ध काम करना शुरू किया। उनके प्रयास का ही नतीजा है कि रांची के नामकुम प्रखंड में लालखटंगा ऐसी पंचायत है, जहां डायन जैसी कोई कुप्रथा नहीं रह गई है।

 

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