परखनली शिशु में 30 प्रतिशत की वृद्धि
नोएडा। वरिष्ठ संवाददाता बदलती जीवनशैली, अधिक उम्र में शादी और बच्चे की चाह के कारण बांझपन की परेशानी बढ़ रही है। पांच साल पहले के मुकाबले वर्तमान में परखनली शिशु (आईवीएफ) की संख्या में 30 प्रतिशत की...
नोएडा। वरिष्ठ संवाददाता
बदलती जीवनशैली, अधिक उम्र में शादी और बच्चे की चाह के कारण बांझपन की परेशानी बढ़ रही है। पांच साल पहले के मुकाबले वर्तमान में परखनली शिशु (आईवीएफ) की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस माध्यम से गर्भधारण करने वाली 80 प्रतिशत शहरी कामकाजी महिलाएं हैं।
फोर्टिस अस्पताल के इन विटरो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) सेंटर पर एक महीने में करीब 30-35 महिलाएं बांझपन से संबंधित समस्याएं लेकर आती हैं। ऐसे में एक साल में करीब 350-400 महिलाएं यहां पर इलाज के लिए आईं। इसमें से कुछ की परेशानी दवा से ठीक हो जाती है, जबकि अधिकतर महिलाओं को परखनली शिशु प्रक्रिया के माध्यम से गर्भधारण करती हैं।
पांच साल पहले इस अस्पताल के अन्य केंद्रों पर यह संख्या प्रतिमाह 20-25 के बीच थी। बांझपन की शिकायत लेकर आईं 80 प्रतिशत शहरी कामकाजी महिलाएं थीं। वहीं एडम एंड इव आईवीएफ सेंटर में भी प्रतिमाह करीब 50 महिलाएं गर्भधारण के लिए परखनली शिशु प्रक्रिया की मदद ले रही हैं। यहां भी पांच साल के मुकाबले ऐसे मामलों का 30 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है। 10-20 प्रतिशत पुरुषों में भी प्रजनन क्षमता संबंधी परेशानी मिली है। पांच साल पहले नोएडा में आईवीएफ केंद्रों की संख्या महज दो थी। अब यह बढ़कर 9 हो गई हैं।
हमारी ओपीडी में आने वाली करीब 30 प्रतिशत महिलाओं में बांझपन जैसी परेशानी मिलती हैं, जो गर्भधारण के लिए आईवीएफ की मदद लेती हैं। इनमें से अधिकतर शहरी कामकाजी महिलाएं हैं।
डॉ़ मोनिका बधावन, स्त्री रोग विशेषज्ञ
आईवीएफ केंद्रों पर महिलाओं की संख्या बढ़ने का एक कारण जागरूकता भी है। पहले महिलाएं सालों-साल इलाज कराती थीं, लेकिन अब आईवीएफ के माध्यम से गर्भधारण कर मां बन रही हैं। यह एक सकारात्मक पहलू है।
डॉ़ नीना गुप्ता, प्रमुख, आईवीएफ केंद्र, फोर्टिस अस्पताल
बांझपन के कारण
अधिक उम्र में शादी और बच्चे की चाह
-पारिवारिक और करियर संबंधी तनाव
-जीवनशैली में बदलाव
-मिलावटी और जंकफूड का सेवन
-प्रदूषण-मोटापा, थायरॉयड-फेलोपियन ट्यूब में टीबी होना-अन्य बीमारियां
क्या है आईवीएफ
इन विटरो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) की प्रक्रिया के तहत महिला के अंडाणु को पुरुष के शुक्राणु से एक परखनली में निषेचित करते हैं। दो से छह दिनों की प्रक्रिया के बाद इसे गर्भधारण के लिए गर्भाधान किया जाता है। पहली बार इस प्रक्रिया को 1978 में किया गया था।