फोटो गैलरी

Hindi Newsतंत्र की नाकामी

तंत्र की नाकामी

छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों के हाथों सीआरपीएफ के दो दर्जन के अधिक जवान शहीद हो गए, जबकि कुछ गंभीर रूप से घायल हैं और अस्पताल में मृत्यु पर विजय पाने के लिए संघर्षरत हैं। नेताओं ने कड़े शब्दों में...

तंत्र की नाकामी
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Apr 2017 10:33 PM
ऐप पर पढ़ें

छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों के हाथों सीआरपीएफ के दो दर्जन के अधिक जवान शहीद हो गए, जबकि कुछ गंभीर रूप से घायल हैं और अस्पताल में मृत्यु पर विजय पाने के लिए संघर्षरत हैं। नेताओं ने कड़े शब्दों में इस कांड की निंदा की है। छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने आपात बैठक करके नक्सलियों के खिलाफ जारी जंग से पीछे न हटने का संकल्प दोहराया है। केंद्र सरकार ने भी अपनी चिंता अलग से व्यक्त की है। सीआरपीएफ ने भी जवानों के लिए पर्याप्त मात्रा में बुलेट प्रूफ हेलमेट, बुलेट प्रूफ जैकेट, एमपीवी वाहन इत्यादि उपलब्ध न होने का रोना रोया है। मगर सभी सूचना तंत्र (खुफिया विभाग) की विफलता पर मौन हैं, जो आश्चर्यजनक है। सेना कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, यदि उसका खुफिया तंत्र शिथिल है, तो उसका सफल होना मुश्किल होता है। अगर कुछ सफलता मिले भी, तो वह जवानों की जान की भारी कीमत चुकाने पर ही मिल पाती है। हमें समझना होगा कि युद्ध में आधी विजय खुफिया तंत्र की सफलता ही दिलाती है। इसलिए हमें अपने खुफिया तंत्र को मजबूत करना होगा।
इंद्रजीत शर्मा जगदेव, दिल्ली- 31

प्रदूषित होती नदियां
हमारी जीवनदायिनी नदियों का दूषित होना दुखद है। इनके प्रदूषण की कई वजहें हैं। मसलन, नदियों में पूजन सामग्री के विसर्जन, खेतों में रासायनिक कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग, मल-मूत्र जैसी तमाम गंदगी को नदियों में बहाना, फैक्टरियों द्वारा अपने अपशिष्ट पदार्थ बगैर संशोधित किए नदियों में गिराना। इन समस्याओं का हल निकाले बगैर नदियों को साफ नहीं किया जा सकता। जरूरत यह भी है कि जिस तरह यूरोपीय देशों में नदियों को गंदा करने पर भारी-भरकम जुर्माना वसूला जाता है, ठीक उसी तरह के नियम हमारे यहां भी लागू किए जाएं। कहने को तो ऐसे नियम अपने यहां भी हैं, पर उसे सख्ती से लागू नहीं किया जाता, इसलिए सरकार इन नियम-कानूनों को लेकर सख्त बने। अगर ईमानदारी से इन सभी कारकों पर काम होता है, तो हमारी मां तुल्य नदियां जरूर प्रदूषण से मुक्त हो जाएंगी।
निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद

फिर नक्सली हमला
डेढ़ माह के भीतर हमारे सुरक्षा बलों पर एक ही स्थान पर दो बड़े हमले हुए और 40 से अधिक जवान शहीद हो गए। देश की जनता व सरकार की सहानुभूति जवानों के साथ है। मगर यह वक्त कुछ सख्त कदम उठाने का भी है। भारतीय सेना अभी कई मोर्चों पर लोहा ले रही है। एक तरफ कश्मीर के पत्थरबाज उन पर पत्थरबाजी कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वे नक्सलियों के निशाने पर हैं। लगातार बढ़ती ऐसी घटनाएं जवानों के हौसले को कम करती हैं। सवाल यह भी है कि क्या हमारे प्रशिक्षण में कमी है या फिर हमारा नेतृत्व कमजोर है? कारणों का शीघ्र तलाश करके हमें उसका निराकरण करना ही होगा, तभी ऐसी घटनाओं को फिर से घटने से रोका जा सकेगा।
संजय स्वामी, शाहदरा, दिल्ली

बढ़ती गरमी
रोजाना जिस तरीके से गरमी के रिकॉर्ड टूटते नजर आ रहे हैं, वे चिंतित करते हैं। आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से पीड़ित है। इसका विशुद्ध कारण प्रकृति के साथ मानवीय दुर्व्यवहार है। अपने देश में भी हालत कोई बहुत बेहतर नहीं हैं। बढ़ती गरमी के कारण यहां पीने के पानी की अनुपलब्धता बढ़ने लगी है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी जल के प्राकृतिक स्रोत विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसके अलावा, बदलते मौसम और पर्यावरण के कारण देश भर में वायरल बीमारियां, डेंगू, चिकनगुनिया व त्वचा रोग आदि तेजी से फैलने लगे हैं। इससे मानव जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। इस परिस्थिति से पार पाने के लिए सरकार को चाहिए कि वह ठोस रणनीति बनाए, ताकि हमारी आबो-हवा सुरक्षित रहे। आखिर कब तक हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे?
अनिरुद्ध पुरोहित, देहरादून, उत्तराखंड

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें