गरुड़ प्रजनन केंद्र के रूप में विकसित हो रहा बोकारो
बोकारो झारखंड का एकमात्र ऐसा जिला है जहां दुर्लभ पक्षी गरुड़ की प्रजाति विकसित हो रही है। पेटरवार के अंबाडीह में एकवर्ष के पूर्व छोटे गरुड़ों की संख्या 16 थी जो अब 42 के आसपास हो गई है। इस स्थान पर...
बोकारो झारखंड का एकमात्र ऐसा जिला है जहां दुर्लभ पक्षी गरुड़ की प्रजाति विकसित हो रही है। पेटरवार के अंबाडीह में एकवर्ष के पूर्व छोटे गरुड़ों की संख्या 16 थी जो अब 42 के आसपास हो गई है। इस स्थान पर गरुड़ की खोज कर उस पर शोध कर रहे पर्यावरणविद मिथलेश दत्त द्विवेद्वी पिछले एक साल से लगातार उनकी गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। श्री द्विवेद्वी बताते हैं कि पेटरवाड़ के अम्बाडीह की आबोहवा गरुड़ों के अनुकूल है। इसलिए यह लुप्तप्राय प्रजाति प्रजनन से अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं।
अम्बाडीह की जलवायु है गरुड़ों के अनुकूल
छोटा गरुड़ की यह प्रजाति लुप्त प्राय: है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पूरे विश्व में इनकी संख्या मात्र 8 हजार के आसपास है। भारत में इस प्रजाति के गरुड़ सिर्फ असम और पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सो में पाए जाते हैं। लेकिन पहली बार पेटरवार के अंबाडीह स्थित शेमल के पेड़ में इस प्रजाति के घोसले देखे गए हैं। बोकारो-रामगढ़ मुख्यपथ पर पेटरवार के समीप उत्तरसाड़ा और अंबाडीह गांव स्थित शेमल के ऊंचे वृक्षों पर घोसला बनाकर ये पक्षी निरंतर अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं। अगस्त से फरवरी माह तक इनका प्रजनन काल रहता है। इस दौरान वे आसपास के पेड़ों में घोसला बनाकर अपने अंडों को सिंचते हैं। पेटरवार के पास तेनु डैम के इलाके में इन्हें अपना पसंदीदा भोजन सांप व कीड़े- मकोड़े भी आसानी से मिल जाते हैं। इनके अनुकूल एक बात और जाती है कि ग्रामीण इन्हें भगवान विष्णु का अवतार मानते हैं। इसलिए इनकी सुरक्षा का भी ख्याल रखते हैं।
जरनल ऑफ द बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी पत्रिका में लेख प्रकाशित : अम्बाडीह में गरुड़ की खोज कर उस पर शोध कर रहे पर्यावरणविद मिथलेश दत्त द्विवेदी की रिपोर्ट का प्रकाशन जरनल ऑफ द बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी पत्रिका ने किया है। अम्बाडीह में छोटे गरुड़ की खोज कर श्री द्विवेदी लगातार एक वर्षो से उसकी गतिविधियों पर नजर बनाए हुए हैं। जिसके बाद इस स्थान पर गरुड़ प्रजनन केंद्र की संभावनाओं पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशनार्थ भेजी थी।
पेटरवार के अम्बाडीह और उत्तरसारागांव में गरुड़ की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। इसका मुख्य कारण ग्रामीणों का सहयोग व पर्याप्त मात्रा में भोजन मिलना है। गरुड़ की यह प्रजाति लुप्तप्राय है जिस कारण सरकार को इस ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि इस लुप्तप्राय: प्रजाति की संख्या को बढ़ाया जा सके। -मिथलेश दत्त द्विवेद्वी, पर्यावरणविद