पश्चिमी सभ्यता, रहन-सहन से पर्यावरण पर संकट : स्वांत रंजन
व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और प्रविष्टि एकात्मक है। पश्चिमी सभ्यता और रहन-सहन ने पर्यावरण का संकट खड़ा कर दिया है जबकि भारतीय दर्शन कहता है कि एक वृक्ष काटने से पहले 10 वृक्ष लगाओ। पीजी राजनीति विज्ञान...
व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और प्रविष्टि एकात्मक है। पश्चिमी सभ्यता और रहन-सहन ने पर्यावरण का संकट खड़ा कर दिया है जबकि भारतीय दर्शन कहता है कि एक वृक्ष काटने से पहले 10 वृक्ष लगाओ। पीजी राजनीति विज्ञान विभाग में बुधवार को एकात्म मानव दर्शन की समसामयिक प्रासंगिकता विषय पर आयोजित गोष्ठी में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक मंच के राष्ट्रीय संयोजक स्वांत रंजन ने ये बातें कहीं।
गोष्ठी तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के बहुद्देशीय प्रशाल में आयोजित हुई। कुलपति प्रो. नलिनी कांत झा ने कहा कि भारतीय दर्शन समन्वय और मोक्ष का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति की जड़ें वेद में हैं। मानवता का कल्याण भारतीय दर्शन में निहित है। इसे अपनाकर ही प्रकृति और पर्यावरण को संतुलित रखा जा सकता है। पं. दीनदयाल उपाध्याय की चर्चा करते हुए कुलपति ने कहा कि उन्होंने भारतीय संस्कृति की परंपरा को आगे बढ़ाया।
आरएसएस के राष्ट्रीय संयोजक ने गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन के अनुसार चिंतन एकात्म है। भारतीय दर्शन कहता है कि शरीर, मन, बुद्धि के बाद भी कुछ है। हमें किसी भी संसाधन का त्याग पूर्वक उपयोग करना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी का भी पोषण हो।
आईसीएसएसआर के राष्ट्रीय आचार्य अशोक मोदक ने सोवियत संघ के विघटन, ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थेचर और भारतीय राजदूत कुलदीप नैयर के बीच संवाद का उदाहरण देकर बताया कि पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि जिस समाज के प्राण राज्य पर न्योछावर कर दिए जाएं उस समाज का अवसान तय होता है। थेचर ने नैयर से कहा था कि आप मिखाइल गोरवाचेव तक उनका संदेश पहुंचाएं कि अपने राष्ट्र को बचाएं। नैयर ने उनसे पूछा कि वह यह संदेश क्यों दें तब थेचर ने कहा था कि इसलिए कि आप भारतीय हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारत का निर्माण किसी विरोध के रूप में नहीं हुआ है बल्कि रचनात्मकता के लिए हुआ है।