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Hindi Newsपहली बार घुड़सवारी में हिस्सा लेंगी चार मुस्लिम बेटियां

पहली बार घुड़सवारी में हिस्सा लेंगी चार मुस्लिम बेटियां

ग्रेटर नोएडा का गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय (जीबीयू) एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने जा रहा है। शुक्रवार को शुरू होने वाले राष्ट्रीय घुड़सवारी प्रतियोगिता में पहली बार अलीगढ़ की चार मुस्लिम बेटियां शामिल...

पहली बार घुड़सवारी में हिस्सा लेंगी चार मुस्लिम बेटियां
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 26 Feb 2015 03:19 PM
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ग्रेटर नोएडा का गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय (जीबीयू) एक ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने जा रहा है। शुक्रवार को शुरू होने वाले राष्ट्रीय घुड़सवारी प्रतियोगिता में पहली बार अलीगढ़ की चार मुस्लिम बेटियां शामिल हो रही हैं। इनमें दो सगी बहने हैं।

खास बात यह है कि ये लड़कियां ओपन चैलेंज का सामना करेंगी। जीबीयू में आयोजित अंतरराष्ट्रीय घुड़सवारी प्रतियोगिता में भारत समेत 17 मुल्कों की टीमें हिस्सा ले रही हैं। इनमें क्लब, सेना, पुलिस और अर्ध सैनिक बलों की टीम शामिल हैं। प्रतियोगिता दो हिस्सों में होगी। पहले राष्ट्रीय और फिर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता होगी। राष्ट्रीय घुड़सवारी में पहली मर्तबा लड़कियों की हिस्सेदारी हो रही है। भारतीय टीम में अलीगढ़ की चार लड़कियां लबीबा शेरवानी, हीरा मिर्जा, सूफिया खालिद और तबस्सुम खालिद को चयनित किया गया है। लबीबा और हीरा इंटरमीडिएट की छात्राएं हैं। सूफिया इंजीनियरिंग और तबस्सुम प्रबंधन की पढ़ाई कर चुकी हैं। चारों रॉयल क्लब अलीगढ़ में घुड़सवारी का प्रशिक्षण ले रही हैं।
लबीबा इस टीम में सबसे कम उम्र की सदस्य हैं। कहती हैं कि ‘यह साल लड़कियों के लिए बहुत कुछ लेकर आया है। गणतंत्र दिवस की परेड में सेना में कार्यरत लड़कियों ने नेतृत्व किया। टीम की सीनियर तबस्सुम खालिद का कहना है कि ‘वर्ष 2011 में कश्मीर घूमने के दौरान मैंने घुड़सवारी की।

मोदी जी की अपील कर गई काम: हीरा मिर्जा कहती हैं ‘परिवार के लोग संकोच करते थे, लेकिन जब मोदी जी ने ‘बेटी पढ़ाओ’ की अपील की, अखबारों और टीवी चैनलों पर लड़कियों के एक से बढ़कर एक कारनामे दिखाए गए तो ठीक होता चला गया।’ हीरा कहती हैं ‘अगर हम चारों को देखकर कुछ और लड़कियां आगे आ र्गई तो हमें लगेगा कि चैंपियनशिप जीत ली है।’

ताउम्र चाहिए परिवार का साथ: चारों लड़कियों की एक ख्वाहिश है कि पूरी उम्र परिवार वाले ऐसे ही साथ देते रहें। तबस्सुम खालिद कहती हैं कि ‘हमारे समाज में लड़कियों को लेकर थोड़ा संकोच है। परदा, कम उम्र में शादी और पढ़ाई-लिखाई का अभाव आड़े आता है। ऐसे में हमारे परिवारों ने जो हौसला दिखाया है, वह हमारी सबसे बड़ी ताकत है।’

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