इतनी गंभीरता भी ठीक नहीं
तनाव के साथ हमारा अजीबोगरीब रिश्ता है। कभी तनाव हम तक चला आता है। और कभी तनाव को हम बुला लाते हैं। तनाव बाहर से ही नहीं, भीतर से भी आता है। आखिर हमारे भीतर तनाव कैसे पनपता है? यों उसकी कई वजह हो सकती...
तनाव के साथ हमारा अजीबोगरीब रिश्ता है। कभी तनाव हम तक चला आता है। और कभी तनाव को हम बुला लाते हैं। तनाव बाहर से ही नहीं, भीतर से भी आता है। आखिर हमारे भीतर तनाव कैसे पनपता है? यों उसकी कई वजह हो सकती हैं लेकिन डॉ. ग्रेगरी एल जैन्ज मानते हैं कि उसकी खास वजह अपने को गंभीरता से लेना है। इसीलिए उनका कहना है, ‘अपने को इतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। वह अपने आप में तनाव की वजह है।’ वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। ‘द सेंटर: अ प्लेस ऑफ होप’ के कर्ताधर्ता हैं। उनकी बेहद चर्चित किताब है, टर्निग योर डाउन इन्टु अप: अ रियलिस्टिक प्लान फॉर हीलिंग फ्रॉम डिप्रेशन। तनाव हम तक खुद चल कर आए, यह तो ठीक है। हम क्यों उसे न्योता दे देते हैं? दरअसल, उसके लिए हम खुद जिम्मेदार होते हैं। हालांकि इस सच को मानने के लिए हम आसानी से तैयार नहीं होते।
हमें लगता ही नहीं कि हम भी उसके लिए जिम्मेदार हैं। जहां तक तनाव को न्योतने का सवाल है, उसमें हमारी शख्सियत की अच्छी-खासी भूमिका है। हम अपनी एक छवि बना लेते हैं। और फिर उससे हटना नहीं चाहते। हालात हमसे कुछ मांग करते हैं। हम अपनी शख्सियत के हिसाब से कुछ और कर रहे होते हैं। ठीक यहीं से हम पर दबाव बनना शुरू होता है। और धीरे-धीरे वह तनाव में बदल जाता है। हमें हालात के मुताबिक काम करना चाहिए। हम अपनी शख्सियत के मुताबिक काम करते हैं। जब हम हालात के मद्देनजर काम करते हैं, तब हम पर दबाव हो सकता है। लेकिन तनाव को हम धकेल ले जाते हैं। तनाव को धकेलते रहने की ही जरूरत होती है। अब हम यह तो कह नहीं सकते कि हमें तनाव होगा ही नहीं। कम से कम उसके लिए हम तो जिम्मेदार न हों। यह कोशिश तो हमें करनी ही चाहिए।