हो हो होलक रे, बजे मंजीरा ढोलक रे
हम अभी से पीनक में हैं। सीबीआई हमारा क्या कर लेगी? उसे तो होली मनाने तक की फुर्सत नहीं। होली हो, तो भइया केजरीवाल जैसी। पूरी दिल्ली मथुरा-वृंदावन है। कांग्रेस कंस की तरह लग रही है। भाजपा पूतना...
हम अभी से पीनक में हैं। सीबीआई हमारा क्या कर लेगी? उसे तो होली मनाने तक की फुर्सत नहीं। होली हो, तो भइया केजरीवाल जैसी। पूरी दिल्ली मथुरा-वृंदावन है। कांग्रेस कंस की तरह लग रही है। भाजपा पूतना की तरह मुंह लटकाए है। जिनके पास बादशाही सूट था, नीलामी के नाम पर बेचकर गंगा में डुबो दिया। आशुतोष और कुमार विश्वास जैसे हुल्लड़बाज रंग लगाकर बिगाड़ देते, तो बादशाह ओबामा को क्या मुंह दिखाते? दिल्ली का दिल सोनिया जैसा उदास है। किरण बेदी पुलिसिया गुस्से में अपनी बालकनी से हवाई फायर करने में लगी हैं। भाजपा दफ्तर में घुसकर गोविंदाचार्य माठा किए हैं कि-मन की किवड़िया खोल, सैंयाजी तेरे द्वारे खड़े। उमा भारती भागकर गंगा शरण में हैं, उधर जेटली की केटली अब तक खदबदा रही है। ये नशीली होली है ही ऐसी कि घर में कूदती-फांदती, छत पर अंगड़ाई लेकर पापड़ सुखाती लड़कियों के मन पेट्रोलियम मंत्रालय जैसी जासूसी करने लगते हैं। काले धन की तरह पकड़ में ही नहीं आते। मुहल्ले में होड़ रहती है कि कौन चॉकलेटी लड़का छिछोरेपन और लफंगई का वर्ल्ड कप जीते।
सोचा चलो लड़कियों के दुपट्टों पर कंटिया फंसाए। मगर मुहल्ले की लड़कियां दुपट्टे पहनें तब तो? जिस पड़ोसी से बदला लेना हो, उसे होली में कानपुर भिजवा दो। गोबर-कीचड़ से सना ऐसे लौटेगा, जैसे नगर निगम का कूड़ा आ रहा हो। मोदी के स्वच्छता अभियान की ऐसी कम तैसी। हम से पंगा न लेना गुरु। अपना लखनऊ सबसे अच्छा। होली पर यहां लोग अपने गाल को दूसरों का गाल समझकर सहलाने लगते हैं। रंग कम, सहलाना ज्यादा। ‘पहले आप’ कहते हुए दिल्ली जिता गए। अपने आप मलमल के कुरते पर छींट लाल-लाल करके खटिया पर लेटे हैं कि- ऐसी होली खेलें जनाबे अली, जैसे कत्थक नाचे कली कली। कानी महबूबा से तो बीवी भली। कहते हैं कि बजा नगाड़ा लखनऊ में और धमक पड़े भोपाल। पांच साल केजरीवाल, उसके बाद थपलियाल। एक चेतावनी- बजट बुरा हो, तो जेबें सिलवा लेना। अच्छा हो, तो बाल-बच्चों तक की जेबें फाड़ देना। होली की एडवांस मुबारक।