उत्तराखंड में 67 फीसदी तक रहेगा मतदान
उत्तराखंड विधान सभा चुनावों में मतदान 67 प्रतिशत तक ही रहने की संभावना है। लगभग डेढ़ हजार पोलिंग पार्टियों की वापसी होना अभी बाकी है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी राधा रतूड़ी ने बुधवार को मतदान 68 से 69...
उत्तराखंड विधान सभा चुनावों में मतदान 67 प्रतिशत तक ही रहने की संभावना है। लगभग डेढ़ हजार पोलिंग पार्टियों की वापसी होना अभी बाकी है।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी राधा रतूड़ी ने बुधवार को मतदान 68 से 69 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया था, लेकिन अब जैसे-जैसे पोलिंग पार्टियां पहुंच रही हैं, उससे तस्वीर साफ होने लगी है। राज्य में अब 67 फीसदी तक ही मतदान प्रतिशत रहने की पूरी संभावना है। पिछले विधान सभा के चुनावों में राज्य में 67.22 फीसदी मतदान हुआ था। लगभग यही स्थिति इस बार की भी दिखाई दे रही है।
सीईओ रतूड़ी ने बताया कि सभी पोलिंग पार्टियों और पोस्टल बैलेट मिलने के बाद ही मतदान प्रतिशत की तस्वीर साफ हो पाएगा। उन्होंने बताया कि गुरुवार रात तक सभी पोलिंग पार्टियां जिला मुख्यालय तक पहुंच जाएंगी।
52 हजार पोस्टल बैलेट मिले
निर्वाचन ड्यूटी में लगे लगभग 76,000 कार्मिकों ने ही पोस्टल बैलेट लिए थे। इनमें से अब तक 52 हजार कार्मिकों के बैलेट रिटर्निंग अफसरों को मिल चुके हैं। इसके अलावा निर्वाचन ने 97,567 सर्विस (फौजी) वोटरों को भी पोस्टल बैलेट भेजे हैं। ये बैलेट भी लौटने लगे हैं। फौजी वोटरों में से यदि 55,000 तक भी मतगणना शुरू होने से पहले रिटर्निंग अफसरों को मिलते हैं तो तब भी वोटिंग प्रतिशत 67 से ऊपर जाने की उम्मीद नहीं है।
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बीएलओ पर्ची न मिलने से घटा ग्राफ
निर्वाचन आयोग ने वोटरों के सहूलियत को राज्य में लगभग 580 बूथ नए बनाए थे। इन नए बूथों पर जो वोटर शिफ्ट किए गए, उनमें से 60 फीसदी से ज्यादा वोटरों को बीएलओ से पर्चियां ही मिली। मतदान के दिन वोटर अपने पुराने बूथों पर गए, जहां मतदाता सूची में उन्हें नाम नहीं मिला। इन बूथों से भी उन्हें सही बूथों की लोकेशन नहीं दी गई, जिससे ऐसे मतदाता भटकते भी मिले। दरअसल, आयोग ने 6 से 11 फरवरी तक ही पर्चियां बंटवाए। सीईओ कार्यालय से 14 फरवरी तक पर्चियां बंटवाने का आग्रह भी किया, लेकिन आयोग ने अनुमति नहीं दी।
पहाड़ में वोटर तो हैं पर रहते नहीं
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत न बढ़ने के पीछे की एक बड़ी वजह सामने आई है। पहाड़ में 20 से 25 फीसदी तक ऐसे लोग हैं, जिनके मतदाता सूची में तो नाम हैं, पर वे वोट देने नहीं जा पाते। ऐसे लोग प्रदेश से बाहर नौकरी कर रहे हैं या फिर नौकरी के तलाश में हैं। अपने पहचान के लिए उन्होंने मतदाता पहचान पत्र तो बनवा रखें पर विस व लोकसभा चुनावों के मतदान को तरजीह नहीं देते। अलबत्ता, पंचायत चुनावों में मतदान को वे प्राथमिकता देते हैं। पौड़ी, टिहरी,चमोली, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जनपद में ऐसे मतदाता ज्यादा हैं।