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उल्लास के भीतर से झांकती उदासी की गायिका 

शास्त्रीय संगीत की गरिमा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के साथ उसे जन-जन तक पहुंचाने वाले महान गायकों की लंबी परंपरा है। कुमार गंधर्व और किशोरी आमोणकर आजादी के बाद के दो ऐसे ही शिखर गायक हैं। कुमार गंधर्व...

उल्लास के भीतर से झांकती उदासी की गायिका 
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 05 Apr 2017 12:46 AM
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शास्त्रीय संगीत की गरिमा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के साथ उसे जन-जन तक पहुंचाने वाले महान गायकों की लंबी परंपरा है। कुमार गंधर्व और किशोरी आमोणकर आजादी के बाद के दो ऐसे ही शिखर गायक हैं। कुमार गंधर्व की आवाज में कबीरी तड़प थी। एक आध्यात्मिक, आस्तित्विक बेचैनी। किशोरी आमोणकर की आवाज में ‘प्रेम की पीर’ थी। गहरा इंसानी दर्द। महान प्रतिभाओं से भरे-पूरे अतरौली-जयपुर घराने की बेमिसाल लयकारी को कामना, वियोग और एकाकीपन के दुख से जोड़कर किशोरी आमोणकर ने ‘रस’ को एक नई पहचान दी। 

उनके सबसे प्रसिद्ध गीत सहेला रे  को सुनते हुए लगता है, जैसे किसी वियोगिनी की रेगिस्तान में भटकती कंपकंपाती गूंजती पुकार सुन रहे हों। इस गीत में वह राग भूप के पांच सुरों के व्यवस्थित आरोह-अवरोह का निर्वाह करते हुए भी विरही आवारगी की गहरी अनुगूंज पैदा कर लेती हैं। किशोरी जी को सबसे ज्यादा इसी योगदान के लिए याद किया जाता है। वह उन थोडे़ से गायकों में थीं, जो शास्त्रीयता की जमीन छोड़े बगैर नए से नए प्रयोग करने की हिम्मत रखते हैं, और सहजता से उसे निभा भी ले जाते हैं। सहजता किशोरी आमोणकर की गायकी की जान है। वह आपको अनायास ही सुरों की ऊंची चोटियों पर और गहरी घाटियों में ले जाती हैं। इस अनायासता के पीछे जीवन भर की साधना है। सुनते हुए आपको लगेगा ही नहीं कि गायिका कोई विशेष प्रयत्न कर रही हैं। प्रयत्न अगर दिखने लगे, तो गायकी को गलेबाजी में बदलते देर नहीं लगती। श्रोता गायन के साथ एकाकार नहीं हो पाता। 

उनके शिष्य रघुनंदन पणशिकर ने ठीक कहा है कि वह अपने गायन में ऋषियों के चिंतन को व्यक्त करने की कोशिश करती थीं। जब वह भक्ति गीत गातीं, तो हर शब्द और हर पंक्ति में बसी हुई अनुभूति और उससे संबद्ध जीवन-दृष्टि को व्यक्त करने की कोशिश करतीं। जब वह मीराबाई का प्रसिद्ध भजन पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे  गाती हैं, तब एकांत भक्ति भाव के साथ मीरा के विद्रोहिणी स्वभाव की गूंज भी सुनाई देती है। जहर का प्याला राणा ने भेजा  वाली पंक्ति एक अपशकुन की तरह देर तक मंडराती रहती है। फिर हल्के से पीबत मीरा हांसी रे   सत्ता के छल और अहंकार की हंसी उड़ाती निकल जाती है। 

वर्षा के संगीत को महसूस करना हो, तो फिल्म दृष्टि में गाया किशोरी जी का गीत मेहा झरझर बरसत रे  सुनना चाहिए। ‘मेहा’ का संक्षिप्त आलाप घिरते हुए बादलों की घनगरज की याद दिलाता उठता है, फिर धीरे से झर-झर बरसत रे  के उतरते हुए स्वर में खो जाता है। घनगरज पीछे छूट जाती है और गिरती हुई बूंदों की गुनगुनाहट छा जाती है। ठीक इसके बाद की पंक्तियों में किसी विरहिणी की बेचैनी गाने लगती है। और फिर मेहा का गंभीर आलाप उठता है। स्वरों के साथ भावनाओं के इस आरोह-अवरोह को सहजता के साथ जोड़ पाना सिर्फ कठिन रियाज के साथ गहन चिंतन-मनन को जोड़े बिना संभव नहीं। 

सिनेमा संगीत के साथ किशोरी आमोणकर का छोटा-सा साथ रहा। दृष्टि  के अलावा गीत गाया पत्थरों ने  में भी उनका एक गीत है। सांसों के तार पर, धड़कन की ताल पर, दिल की पुकार का, रंग भरे प्यार का, गीत गाया पत्थरों ने।  इस गीत में उल्लास के साथ जो हल्की सी उदासी जुड़ जाती है, वह इसे बहुत खास बना देती है। केवल उल्लास या सिर्फ गम का गीत तो अनेक कलाकार गा लेते हैं, पर खुशी के भीतर से झांकती हुई उदासी दिखा पाना सबके बस की बात नहीं है।

‘हिन्दुस्तानी’ शास्त्रीय संगीत में भारत की संगीत साधना का फारसी सूफी संगीत परंपरा के साथ संयोग हुआ है। इस कारण हिन्दुस्तानी गायकी में भावात्मक उदारता और वैचारिक खुलेपन के साथ विरह की वेदना और रहस्य के साक्षात्कार का अद्भुत संयोग मिलता है। यहां हिंदू गायक सूफियों के स्वर में स्वर मिलाते पाए जाते हैं, तो ऐसे मुसलमान गायकों की भी बड़ी संख्या है, जो हिंदू देवी-देवताओं के लिए डूबकर भजन गाते हैं। किशोरी जी कहा करती थीं कि संगीत उनके लिए केवल कला-साधना नहीं, असीम तक पहुंचने का एक माध्यम है। उनकी गायकी में सूक्ष्म भावनाओं की बहुविध छटा देखते हुए लगता है कि  मनुष्य के सीमित जीवन की संवेदनात्मक असीमता को ही वह अपने ईश्वर के रूप में पाना चाहती थीं।   
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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