समय ही नहीं मिलता
दोस्त की आवाज थी दूसरी तरफ। ‘कब तक हम फोन पर ही बात करते रहेंगे भाई। कभी इधर भी आ जाओ।’ वह अचकचाए से बोले, ‘क्या करूं यार, समय ही नहीं मिलता।’ समय तो समय है, वह तो सबके पास...
दोस्त की आवाज थी दूसरी तरफ। ‘कब तक हम फोन पर ही बात करते रहेंगे भाई। कभी इधर भी आ जाओ।’ वह अचकचाए से बोले, ‘क्या करूं यार, समय ही नहीं मिलता।’
समय तो समय है, वह तो सबके पास उतना ही होता है। डॉ. शेरी पोगोटो मानती हैं, ‘सवाल समय का है ही नहीं। सवाल तो हमारी प्राथमिकताओं का है।’ वह मशहूर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाच्युसेट्स मेडिकल स्कूल में मेडिसीन की प्रोफेसर हैं। उनकी चर्चित किताब है, साइकोलॉजिकल को-मोर्बिडिटीज ऑफ फिजिकल इलनेस।’
हम जब समय न होने की बात करते हैं, तो खुद को ठग रहे होते हैं। हम जानते हैं कि यह एक खूबसूरत बहाना है। कुछ इस तरह का एहसास देता हुआ कि सांप भी मर गया, लाठी भी न टूटी। लेकिन इस तरह का बहाना बनाते-बनाते एक दिन सचमुच लगने लगता है कि हमारे पास समय नहीं है। और हम एक गलतफहमी में जीने लगते हैं।
यह सही है कि समय की एक सीमा है। लेकिन वह तो सबके लिए है। हमें अपने समय को अलग-अलग कामों में बांटना होता है। कुछ हमारी प्राथमिकताएं होती हैं। उनके लिए हमारे पास समय ही समय होता है। कुछ के लिए हमें लगता है कि उनके बिना भी काम चल जाएगा। बस यहीं से समय हमारे लिए बहाना हो जाता है। शुरुआत अक्सर दूसरे को टरकाने से होती है। फिर हम खुद को भी टरकाने लगते हैं। यहीं आकर संभल जाने की जरूरत होती है। जिंदगी एक संतुलन की मांग करती है। हम जब उसका ख्याल करते हैं, तो फिर समय की दिक्कत नहीं आती। हम आराम से समय को साध लेते हैं।
राजीव कटारा