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क्या डोनाल्ड ट्रंप खत्म कर देंगे अमेरिका के पुस्तकालय

अमेरिका में नौ अप्रैल को ‘नेशनल लाइब्रेरी वीक’ शुरू ही हुआ था कि ट्रंप प्रशासन ने इंस्टीट्यूट फॉर लाइब्रेरी ऐंड म्यूजियम सर्विसेज यानी ‘आईएलएमएस’ का बजट ही खत्म करने का...

क्या डोनाल्ड ट्रंप खत्म कर देंगे अमेरिका के पुस्तकालय
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Apr 2017 01:20 AM
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अमेरिका में नौ अप्रैल को ‘नेशनल लाइब्रेरी वीक’ शुरू ही हुआ था कि ट्रंप प्रशासन ने इंस्टीट्यूट फॉर लाइब्रेरी ऐंड म्यूजियम सर्विसेज यानी ‘आईएलएमएस’ का बजट ही खत्म करने का प्रस्ताव रख दिया। आईएलएमएस के 230 मिलियन अनुदान का 214 मिलियन हिस्सा सीधा स्टेट और सार्वजनिक पुस्तकालयों को जाता है। इस प्रस्ताव से वहां के पुस्तकालयों की चिंता स्वाभाविक है। सौ से अधिक पुस्तकालयों के साथ ही अन्य संस्थाओं ने भी इस प्रस्ताव को वापस लेने की अपील की है।

जीवन में पुस्तकालयों का महत्व समझने के लिए पश्चिमी अफ्रीका के माली में विश्व के प्राचीनतम पुस्तकालय में जाना होगा। वहां 800 वषार्ें से भी अधिक समय से गाओ जैसे शहर के सोंघोय लोगों ने हजारों हस्तलिखित ग्रंथ सुरक्षित कर रखे हैं। सन 1300 में दुनिया भर के विश्वविद्यालयों का ध्यान गाओ, टिम्बकटू और जेने संग्रहालयों की ओर गया था। बामाको विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हाशिमी मेगा इन ग्रंथों के साथ ही उनकी भाषा की सुरक्षा के लिए प्रयासरत हैं। अमेरिका में ऐसी दुर्लभ सामग्री की सुरक्षा के लिए पुस्तकालयों को आईएलएमएस से आर्थिक सहायता मिलती रही है।

सिकंदरिया का प्राचीन पुस्तकालय दुनिया में मशहूर है। कहते हैं, उस समय सिकंदरिया बंदरगाह उतरने वाले हर व्यक्ति के सामान की जांच होती थी और पुस्तकालय के उपयुक्त कोई पुस्तक मिलती, तो उसे ले लिया जाता था। उस समय भी वहां पांच लाख से अधिक पुस्तकें थीं। 896 ई. में मिस्र पर अरबों के आक्रमण में यह पूरी तरह नष्ट हो गया। इधर 1990 के शुरू में यूनेस्को के प्रयास से पुस्तकालय का कायाकल्प हुआ और आज यह अरब जगत का सबसे बड़ा पुस्तकालय है।

पुस्तकालय इंसान की चेतना बढ़ाने का काम करते हैं। बदले हुए समय में जब ऐसी जागरूकता सरकारों और शासनों के लिए खतरा बनकर खड़ी हो जाए, तो स्वाभाविक है कि पहला खतरा लिखने-पढ़ने की चीज यानी पुस्तकालय पर ही आएगा। कहना गलत न होगा कि डोनाल्ड ट्रंप पुस्तकालयों को बंद करने के पीछे सिर्फ इसलिए पड़े हैं कि लोग उनकी धोखाधड़ी, उनके झूठ और उनके घृणा फैलाने वाले प्रशासन के बारे में न जान पाएं।

आज लोग कौतुक से पूछते हैं, क्या पुस्तकालयों की जरूरत अब भी है? क्या गूगल पर्याप्त नहीं है? ऐसे सवाल करने वालों को समझना होगा कि पुस्तकालयों का महत्व अब और बढ़ रहा है। उन्हें समझना होगा कि गूगल पुस्तकालय का प्रतियोगी नहीं, बल्कि सहायक है। सच तो यह है कि लोग अब पुस्तकों और पुस्तकालयों की आवश्यकता अधिक महसूस करने लगे हैं। 

पिछले वर्ष लाखों डॉलर का बजट मिलने के बाद भी आईएलएमएस को अमेरिका के राष्ट्रीय बजट का केवल 0.00006 प्रतिशत हिस्सा मिला था। फिर भी इस नगण्य-सी राशि की तुलना में पुस्तकालयों से लोगों को जो सेवाएं मिलीं, उसके संबंध में कहा गया कि पुस्तकालयों को मिले प्रत्येक डॉलर के बदले लोगों को जो प्राप्त हुआ, वह पांच डॉलर से भी अधिक था। सच है कि पुस्तकालय हमें जितना कुछ देते हैं, उतना किसी अन्य स्रोत से संभव नहीं। दरअसल गूगल जहां अपने को असमर्थ पाता है, पुस्तकालय हमें वहां से आगे ले जाता है। 

अपने प्रशासन के 100 दिन पूरे होने से पहले ही ट्रंप ने पुस्तकालयों को सरकार से मिलने वाली सहायता बंद कर देने का प्रस्ताव रख दिया, जिस पर अब अमेरिकी कांग्रेस की रजामंदी ली जाएगी। अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन तो इसके विरोध में है ही, पूरा देश ट्रंप की इस सोच की आलोचना कर रहा है। यहां प्रश्न केवल बजट में कटौती का नहीं, सर्वसत्तावाद की ओर बढ़ने का भी है। पुस्तकालयों की मजबूती से हमारे समाज न केवल सुरक्षित रहेंगे, वरन लोग अधिक होशियार भी बनेंगे। सच है कि ट्रंप जैसे प्रशासकों को समझदार लोग या समाज नहीं चाहिए। यही वजह है कि पुस्तकालय इनके निशाने पर हैं। ट्रंप के इस प्रस्ताव के पीछे वस्तुत: आईएलएमएस को पूरी तरह समाप्त करना है। आशंका है कि यह प्रस्ताव पास हो गया, तो इसके बाद नेशनल एनडाउमेंट फॉर आर्ट्स और नेशनल एनडाउमेंट फॉर ह्यूमेनिटीज जैसी संस्थाओं को भी बंद किए जाने की बारी आएगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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