दोतरफा उम्मीदों की दोस्ती
अपने चार दिनों के दौरे पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत पहुंच चुकी हैं। हमारे पड़ोसी देशों में बांग्लादेश का एक खास स्थान है। हमने उस मुक्ति आंदोलन में भी उसका साथ दिया था, जिसके बाद वह...
अपने चार दिनों के दौरे पर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत पहुंच चुकी हैं। हमारे पड़ोसी देशों में बांग्लादेश का एक खास स्थान है। हमने उस मुक्ति आंदोलन में भी उसका साथ दिया था, जिसके बाद वह आजाद मुल्क के तौर पर दुनिया के नक्शे पर उभरा। यही वजह है कि आज भी बांग्लादेश की हुकूमत भारत के योगदान का सम्मान करती है। प्रधानमंत्री शेख हसीना बांग्लादेश के एक सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी की अगली पीढ़ी हैं। और अच्छी बात यह भी है कि वह उस दौर के तमाम हलचलों से निजी तौर पर परिचित हैं।
बहरहाल, भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय रिश्ते में शुरुआती मधुरता के बाद कई ऐसे मौके भी आए, जब दोनों देशों की इस दोस्ती पर बांग्लादेश में वैचारिक मत-भिन्नता वाले झंडाबरदारों की बुरी नजर पड़ी और दूरी बढ़ाने की कोशिशें की गईं। मगर इनका कोई गहरा असर नहीं हो सका। दोनों देशों के बीच रिश्ता आमतौर पर दोस्ताना और परस्पर सहयोगात्मक बना रहा। दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़े, सांस्कृतिक आदान-प्रदान में तेजी आई और आर्थिक रिश्तों में भी संतोषजनक प्रगति हुई। बांग्लादेश एक सहिष्णु और उदार नीति पर चलने वाला मुल्क है, जिसके अच्छे नतीजे उसे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर मिले हैं।
जहां तक शेख हसीना की बात है, तो उनकी खूबी यही है कि उन्होंने अपने सौम्य, समझदार व रचनात्मक नेतृत्व के कारण एक खास प्रतिष्ठा हासिल की है। यह अलग बात है कि भारत के साथ समान व सहयोगात्मक संबंध बनाने के लिए उन्होंने अब तक जो कुछ भी किया है, उसे कम करके ही आंका गया या नकारा गया। मुश्किल यह है कि यह धारणा आज भी कायम है। मगर खुशहाल संबंध के लिहाज से शेख हसीना का नेतृत्व काफी महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने भारत-बांग्लादेश संबंध को प्रभावित करने वाले कट्टरपंथी तत्वों से लोहा लिया और उनकी जड़ें काटी। इस एक महत्वपूर्ण कदम ने वह बुनियाद तैयार की, जिस पर आगे चलकर दो करीबी पड़ोसियों के बीच टिकाऊ संबंध का मजबूत ढांचा खड़ा हुआ। शेख हसीना इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट रहीं कि उनके देश की जरूरतें क्या-क्या हैं? वह इस बात को लेकर हमेशा सतर्क रहीं कि कट्टरपंथी ताकतों को खेलने का कोई भी मौका न मिलने पाए। उनके इस नजरिये ने न सिर्फ बांग्लादेश को मजबूती दी, बल्कि भारत के साथ उसके रिश्ते भी बेहतर किए, जिसका फायदा दोनों मुल्कों को हुआ।
फिर भी, कई मसले ऐसे रहे, जिन पर गौर करने की जरूरत थी। ये मसले काफी लंबे समय से चले आ रहे थे। इनमें सबसे मुख्य था- गंगा के पानी का बंटवारा। यह तभी से विवाद का एक बड़ा मुद्दा रहा, जब बंगाल ब्रिटिश भारत का एक प्रांत था। बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान के अस्तित्व में आने और भारत के साथ उसके रिश्ते तेजी से बिगड़ने के बाद यह मुद्दा गरम हो उठा। उस वक्त तकनीकी और राजनीतिक समझौते में आगे की राह तलाशने की जरूरत महसूस हुई, जो जटिल घालमेल का कारण बना। इस पर कई दौर की बातचीत के बाद भी सहमति नहीं बन सकी। निराश वार्ताकारों ने तो कई बार इस विवाद की तुलना कश्मीर से भी कर डाली।
संभवत: यह समस्या दोनों मुल्कों में नए नेतृत्व के आने की राह देख रही थी। वहां ढाका में इस मामले का हल निकालने के दृढ़ संकल्प के साथ शेख हसीना सत्तासीन हुईं और इधर पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु की सरकार आई, जो यह चुनौती स्वीकार करने को तैयार थी। तब केंद्र में इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री थे। समान विचारधाराओं वाले इन नेताओं ने मिलकर इस मुद्दे को एक सफल अंजाम तक पहुंचाया। और आज आलम यह है कि कभी दोनों देशों के बीच वर्चस्व का विषय बना रहा यह मसला शायद ही किसी की जुबां पर हो।
हालांकि तीस्ता नदी इतनी सौभाग्यशाली नहीं रही। उसके पानी के बंटवारे का मसला आज भी कायम है, और अपेक्षाएं यही हैं कि शेख हसीना के इस दौरे में इस पर शायद कुछ संतोषजनक समझौता हो जाए। हालांकि इस दिशा में पहले ही काफी कुछ काम हो चुका है और समझौते की रूपरेखा भी वर्षों पहले तभी तैयार हो गई थी, जब देश की बागडोर मनमोहन सिंह के हाथों में थी। लेकिन ढाका के उनके दौरे से ऐन पहले पश्चिम बंगाल की तत्कालीन (और आज की भी) मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा ऐतराज जताया कि इस समझौते के बाद तीस्ता के पानी में जो कमी आएगी, उससे राज्य को अनावश्यक नुकसान पहुंचेगा। चूंकि पश्चिम बंगाल के मौजूदा नेतृत्व को अब तक इस पर मंथन को काफी वक्त मिल चुका है, इसलिए उम्मीद है कि इस बार पहले की तरह विफलता हाथ नहीं लगेगी।
अगर तीस्ता पर अंतिम समझौता नहीं हो पाता है, तब भी शेख हसीना के इस दौरे में रक्षा सहयोग आदि क्षेत्रों में समझौते होने से भारत-बांग्लादेश संबंध में निर्णायक रूप से तेजी आएगी। हालांकि रक्षा क्षेत्र में समझौते को लेकर बांग्लादेश के अंदर उन तत्वों की तरफ से विरोध के स्वर उभरे हैं, जो भारत के साथ संबंध को हमेशा संदेह की नजरों से देखते रहे हैं। मगर सच यही है कि आखिरकार ऐसे समझौते दोनों मुल्कों को और करीब लाने में मददगार ही होंगे। इसके अलावा, कई अन्य समझौतों पर भी हस्ताक्षर होने हैं।
प्रधानमंत्री मोदी उन फैसलों के साथ खड़े दिखते हैं, जिनमें बांग्लादेश को विभिन्न विकास परियोजनाओं में आर्थिक मदद देने का भरोसा दिया गया था। दोनों मुल्कों के बीच में संचार व यातायात के सुगम साधन की दरकार है, जिसमें जल यातायात का पुनरुद्धार भी शामिल है। लिहाजा भारत की तरफ से मिलने वाली आर्थिक मदद का पूरा सदुपयोग होने की संभावना है। वैसे एक चुनौती सीमा-पार आवाजाही के प्रबंधन का मसला भी है, जिस पर गौर किए जाने की जरूरत है।
यह महत्वपूर्ण है कि भारत शेख हसीना को इस उपमहाद्वीप के सफल नेताओं में से एक मानता है। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर उल्लेखनीय प्रगति भी की है। निश्चय ही, बांग्लादेश और उसके नेता बधाई के पात्र हैं, क्योंकि वे न सिर्फ भारत के बेहतर भविष्य के, बल्कि दक्षिण एशिया के भविष्य के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण साझीदार हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)