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नया नवाज

वो सी-ग्रेड फिल्में देख कर बड़ा हुआ, लेकिन अभिनय सीख कर जब वो एक ट्रेंड एक्टर का बिल्ला लेकर बॉलीवुड पहुंचा तो इनाम में उसे धक्के और झूठे वादे मिले। पर उसने हार नहीं मानी और अपने जैसे संघर्षरत...

नया नवाज
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Apr 2015 03:06 PM
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वो सी-ग्रेड फिल्में देख कर बड़ा हुआ, लेकिन अभिनय सीख कर जब वो एक ट्रेंड एक्टर का बिल्ला लेकर बॉलीवुड पहुंचा तो इनाम में उसे धक्के और झूठे वादे मिले। पर उसने हार नहीं मानी और अपने जैसे संघर्षरत कलाकारों के घर शरण पाने के वास्ते उनका पार्ट टाइम कुक बन गया। फिर एक दिन ऐसा आया, जब वो बॉलीवुड के किसी हीरो की तरह हिट हो गया। बुधना के हीरो नवाजुद्दीन सिद्दीकी की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

एक जमाना था, जब नवाजुद्दीन सिद्दीकी को निर्देशक से पहले गेटकीपर को ऑडिशन देना पड़ता था। ये समझाने के लिए कि उन्हें एक्टिंग आती है। वे किसी को भी छोटा-मोटा ऑडिशन देने को हमेशा तैयार रहते। जब वो कहते कि वे एनएसडी के एक ट्रेंड एक्टर हैं तो लोग बगलें झांकने लगते। उनकी शक्ल-सूरत देख कर कई बार लोग उन पर हंसते और यहां तक कह देते कि बेटा तू जिस फिल्म में होगा, वो तो समझो पिटी ही पिटी...

दस-बारह साल तक बस यही कुछ चलता रहा। फिर एक दिन ऐसा हुआ, जो अकसर हमारी हिन्दी फिल्मों के नायक के साथ होता है। फिल्म ‘दीवार’ के उस डायलॉग की तरह, जिसने विजय वर्मा (अमिताभ बच्चन) की जिंदगी बना दी थी। मैं फेंके हुए पैसे नहीं उठाता साहब... और मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता साहब।

इन दो पंक्तियों में केवल दो शब्दों का अंतर है, लेकिन इन दो शब्दों को अर्जित करने के लिए ‘दीवार’ के विजय वर्मा को न जाने कहां-कहां से गुजरना पड़ा था। बॉलीवुड में कड़े संघर्ष के बाद एक दिन नवाज की जिंदगी ने भी पलटा खाया और काले होठ, धंसी आंखों वाला बुधना (उत्तर प्रदेश में मुजफ्फर नगर के पास का एक गांव) का ये छोरा बॉलीवुड में छा गया। उसकी किस्मत स्क्रीन के उस विजय वर्मा की तरह रातोंरात बदल गयी, जो पैसा कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। नवाज भी कुछ बनने के लिए कैसा भी रोल पाने को तैयार था। कोई भी छोटा-मोटा रोल। बेशक भीड़ में खड़े होने वाला गुमनाम चेहरा, क्योंकि उसे विश्वास था कि भीड़ में से भी वो एक दिन बाहर निकल ही आएगा। अपने अंधेरी स्थित नए-नवेले ऑफिस में नवाजुद्दीन सिद्दीकी बहुत सारे लोगों से घिरे नजर आ रहे हैं। हालिया रिलीज फिल्म ‘बदलापुर’ और पिछली कुछ फिल्मों की सफलता के बाद कई सारे लोग उनसे बात करना चाहते हैं, लेकिन इससे पहले एक फोटोशूट होना है। इस शूट के लिए इस साधारण से इंसान की कोई खास तैयारी नहीं है। उनका ड्रेस-अप ऐसा है, जैसे कि उन्हें कहीं जाना ही नहीं है।

पास में रखी एक बांसुरी देख कर उन्होंने कहा- ‘मैं इसे बजाऊं तो कैसा रहेगा!’ एक स्वर में सब बोले, हां-हां ठीक रहेगा। बॉलीवुड में भेड़चाल है। हॉलीवुड का भूत इस कदर सवार है कि पूछो मत! नवाज का ऑफिस देख कर भी कुछ ऐसा ही लगा। खासतौर से वहां लगे अंग्रेजी फिल्मों और कलाकारों के पोस्टर देख कर। मर्लिन ब्रांडो, पीटर ओ’टूल और डेनियल-डे-लुईस आदि के बीच गुरुदत्त भी दिखाई दिये। यहां अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार आदि क्यों नहीं हैं? क्या नवाज की प्रेरणा में वो शामिल नहीं रहे? बकौल नवाज- ‘मैं बी और सी ग्रेड फिल्में देख कर बड़ा हुआ। हमारे गांव में सिनेमा तो था नहीं। सिनेमा के लिए गांव से कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। अकेले जा नहीं सकते थे। गांव में एक सब्जीवाला आता था, वही लेकर जाता था हमें। एक-डेढ़, दो रुपये लेता था। इसमें से वो चवन्नी-अठन्नी बचा लेता था, पर हमें फिल्म दिखा देता था। कांति शाह, महेन्द्र संधू और दादा कोंडके की फिल्में हमने खूब देखीं। इन फिल्मों के बीच में अंग्रेजी फिल्मों के एडल्ट सीन ठूंस दिये जाते थे। हमें बड़ा मजा आता था।’ लेकिन नवाज जिस ढंग का अभिनय करते हैं, वो तो इन फिल्मों से सीखा नहीं जा सकता। आखिर मर्लिन ब्रांडो और रॉबर्ट डी’नीरो जैसे अभिनेता उनकी सूची में आए कहां से? वो इसका जवाब भी देते हैं। कहते हैं-‘गांव छोड़ जब मैं खाने-कमाने के लिए दिल्ली आया तो मैंने अपने एक दोस्त के साथ एक नाटक देखा। बस वहीं से धुन लग गयी कि एक्टिंग करनी है। किसी तरह से एनएसडी में दाखिला लिया और फिर सीधे वर्ल्ड सिनेमा की बातें सीखने को मिलीं। वहां ऑरस वेलेस, क्लिंट ईस्टवुड और रॉबर्ट डी’नीरो की फिल्मों से वास्ता पड़ा। इस दौरान मैंने बॉलीवुड फिल्मों और दिग्गज कलाकारों को बहुत मिस किया।’ आप नवाज से वर्ल्ड सिनेमा के बारे में एनसाइक्लोपीडिया स्टाइल में बातें करेंगे तो वह हिचकिचाएंगे। हो सकता है कि वो बहुत सारी फिल्मों के नाम न जानते हों या कलाकारों के बारे में बयानगी न दे पाएं, लेकिन वो मशहूर फिल्म समीक्षक रॉजर ईबर्ट के बारे में आपको बहुत कुछ बता देंगे। नवाज आगे कहते हैं, ‘मुझे हिन्दी सिनेमा को देखने और उसे ठीक से समझने का वक्त ही नहीं मिला। गांव में था तो ऊल-जलूल फिल्में देखता था। फिर एनएसडी में एक्टिंग सीखने लगा। उस दौरान वर्ल्ड सिनेमा और सिर्फ थियेटर मेरे दिमाग में था।’ ‘कहानी’ और ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की सफलता के बाद लोगों को ये पता चला कि इस बंदे की पहली फिल्म 1999 में आयी ‘सरफरोश’ थी, तो नवाज के उस चंद सेकेंड का वीडियो, यू-ट्यूब पर आने में देर न लगी। उनकी एक लघु फिल्म ‘बाईपास’ को लोगों ने बड़े चाव से देखा, जिसमें वह इरफान खान के साथ दिखाई देते हैं।
निहित भावे (ब्रंच से)

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