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वेस्ट मैनेजमेंट: अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग

पिछले कुछ वर्षों से देश में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। सरकारी और व्यक्तिगत स्तर पर भी इस दिशा में काफी कार्य हुए हैं। यहां तक कि स्कूली और विश्वविद्यालयी स्तर पर भी पर्यावरण को एक...

वेस्ट मैनेजमेंट: अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 30 Mar 2015 03:40 PM
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पिछले कुछ वर्षों से देश में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है। सरकारी और व्यक्तिगत स्तर पर भी इस दिशा में काफी कार्य हुए हैं। यहां तक कि स्कूली और विश्वविद्यालयी स्तर पर भी पर्यावरण को एक विषय के रूप में शामिल कर लोगों को इसके महत्व और दुरुपयोग किए जाने पर होने वाले दुष्परिणाम के बारे में बताया जा रहा है। कंपनियों से निकलने वाले कूड़े और घर की बेकार चीजों को इधर-उधर फेंकने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। इसकी रोकथाम के लिए रीसाइकल करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि इसे दोबारा किसी दूसरे रूप में प्रयोग में लाया जा सके। इन अपशिष्ट पदार्थो को फिर से एक नया रूप देने की पूरी प्रक्रिया को ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ नाम दिया गया। वेस्ट मैनेजमेंट पर्यावरण प्रबंधन एवं संरक्षण का ही एक महत्वपूर्ण बिन्दु है। इसके तहत पर्यावरण विज्ञान अथवा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कुछ प्रमुख क्षेत्रों में काम किया जा सकता है अथवा सलाह दी जा सकती है। भारत में घरेलू अपशिष्ट का मात्र 30 फीसदी ही रीसाइकल करने की क्षमता है। अब तो ई-वेस्ट मैनेजमेंट का चलन जोरों पर है। इसमें ज्यादातर वेस्ट मैटीरियल इलेक्ट्रॉनिक व प्लास्टिक का होता है। मुरादाबाद, दिल्ली में मुंडका और मुंबई में धारावी इसके प्रमुख केंद्र हैं। देश में तेजी से खुल रही वेस्ट ट्रीटमेंट एजेंसियों ने रोजगार के व्यापक अवसर सामने ला दिए हैं।

बैचलर और मास्टर कोर्स
वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित अभी ज्यादा कोर्स प्रचलन में नहीं आ पाए हैं। इन्हें ज्यादातर एन्वायर्नमेंटल साइंस के कोर्स में एक विषय के रूप में शामिल किया गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें कोर्स बैचलर अथवा मास्टर लेवल के ही होते हैं। इसमें तीन साल के बैचलर कोर्स बीएससी/बीई इन एन्वायर्नमेंटल साइंस व दो साल के मास्टर कोर्स एमएससी/एमटेक इन एन्वायर्नमेंटल साइंस आयोजित किए जाते हैं। बीएससी व बीई में प्रवेश साइंस विषयों सहित 10+2 के बाद मिल पाता है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है, जबकि एमएससी व एमटेक में प्रवेश एन्वायर्नमेंटल साइंस में बीएससी अथवा बीटेक करने के बाद मिलता है। कुछ संस्थान एमफिल अथवा पीएचडी का कोर्स भी कराते हैं। इसमें मास्टर लेवल के कोर्स के बाद रजिस्ट्रेशन कराया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से कई इंस्टीट्यूट एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा कोर्स भी करा रहे हैं।

आवश्यक स्किल्स
वेस्ट मैनेजमेंट अपने अंदर कई तरह के अवयवों को समेटे हुए है। वो न सिर्फ अपशिष्ट पदार्थों के दोबारा प्रयोग में लाने के बारे में गहरा ज्ञान देता है, बल्कि प्रोफेशनल्स को उस फील्ड में स्थापित करने के लिए कई अन्य तरह के कौशल भी प्रदान करता है। यह एक टीम वर्क है, जिसे चुनौती के रूप में अंजाम दिया जाता है। साथ ही इसमें प्रकृति के प्रति  लगाव होना बेहद जरूरी है। शुरू-शुरू में छात्रों को ये सारी चीजें अटपटी लगेंगी, लेकिन जैसे-जैसे उनका मन इसमें रमता जाएगा, वो इस प्रोफेशन का भरपूर मजा उठा सकेंगे। इसमें प्रोफेशनल्स को प्रोजेक्ट के रूप में काम करना होता है।

रोजगार के अवसर
इस क्षेत्र में ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स के सामने रोजगार के कई अवसर सामने आते हैं। इस क्रम में वे विभिन्न सरकारी विभागों व एजेंसियों जैसे फॉरेस्ट एंड एन्वायर्नमेंटल, पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, अर्बन प्लानिंग, इंडस्ट्री, वॉटर रिसोर्सेज एवं एग्रीकल्चर आदि में रोजगार पा सकते हैं। इस समय इससे संबंधित प्रोफेशनल्स को पर्यावरण की सुरक्षा से संबंधित एनजीओ में काम करने के बेहतर अवसर मिल रहे हैं। प्राइवेट कंपनियां भी बडे़ रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आ रही हैं। वेस्ट ट्रीटमेंट इंडस्ट्री, रिफाइनरी, डिस्टिलरी, माइन्स, फर्टिलाइजर प्लांट्स, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री एवं टेक्सटाइल मिल्स में प्रोफेशनल्स के लिए कई अवसर निकलते हैं। कई सरकारी व प्राइवेट कंपनियां रिसर्च क्षेत्र में भी काम करती हैं। बतौर एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट उसमें भी अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।

प्रमुख कार्यक्षेत्र
एक हालिया सर्वेक्षण की मानें तो विश्व के करीब 132 देश प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह त्रस्त हैं। भारत भी उनमें से एक है। भारत के करीब 19-20 शहर भीषण प्रदूषण की जद में हैं। ऐसे में प्रोफेशनल्स की डिमांड और बढ़ जाती है। वेस्ट मैनेजमेंट का पूरा कार्यक्षेत्र एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट व उसके आसपास घूमता है। पर्यावरण सुरक्षा संबंधी कार्य साइंस एवं इंजीनियरिंग के विभिन्न सिद्धांतों के प्रयोग से आगे बढ़ते हैं। वातावरण में व्याप्त प्रदूषण को दूर करने के लिए साइंटिस्ट कई तरह की रिसर्च थ्योरी व विधियों को अपनाते हैं यानी वेस्ट मैनेजमेंट प्रोसेस में एन्वायर्नमेंटल साइंटिस्ट का कार्य रिसर्च ओरिएंटेड ही होता है, जिसमें एडमिनिस्ट्रेटिव, एडवाइजरी व प्रोटेक्टिव तीनों स्तर पर काम करना होता है।

मिलने वाली सेलरी
इसमें शुरुआती चरण में प्रोफेशनल्स को 17,000-20,000 रुपए प्रतिमाह की सेलरी मिलती है। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, प्रोफेशनल्स की सेलरी भी उसी अनुपात में बढ़ती जाती है। दो-तीन साल के अनुभव के बाद यह सेलरी 30,000-35,000 प्रतिमाह के करीब पहुंच जाती है। टीचिंग के क्षेत्र में जाने पर 40,000-45,000 रुपए प्रतिमाह सेलरी मिलती है। विदेश में काम करने पर काफी आकर्षक सेलरी मिलती है।

नई विधा है ई-वेस्ट मैनेजमेंट
विकासशील देश होने के कारण भारत में ई-वेस्टेज की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। उसी अनुपात में उसे दोबारा प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है। ई-वेस्ट के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक कचरे जैसे कम्प्यूटर, टीवी, डिस्प्ले डिवाइस, सेलुलर फोन, प्रिंटर, फैक्स मशीन, एलसीडी, सीडी, मिल्रिटी इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट, सेंसर, अलार्म, सायरन आदि शामिल किए जाते हैं।

एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए  देश के कई राष्ट्रीयकृत बैंक अधिकतम 10 लाख व विदेशों में अध्ययन के लिए 20 लाख तक का लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी जरूरी है।

एक्सपर्ट व्यू
लोगों को जागरूक करना बड़ी चुनौती
घरों, शहरों व फैक्टरियों से निकलने वाले कूड़े का सही तरीके से प्रबंधन न हो पाना एक बड़ी समस्या है। हर देश इसकी समस्या से ग्रसित है। लाख प्रयास के बाद भी इस क्षेत्र में उतना काम नहीं हो पा रहा, जितनी जरूरत है। केंद्र सरकार के स्वच्छता अभियान कार्यक्रम सहित कई एनजीओ इस समस्या से निजात पाने में लगे हैं। इसके लिए वे घर-घर जाकर कूड़ा एकत्र कर रहे हैं। इस कूड़े में जो कुछ ज्वलनशील है उससे एनर्जी तथा जो सड़ने वाला है, उससे वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। आज भी लोग जागरूकता के अभाव में कूडम अथवा अपशिष्ट जहां-तहां फेंक देते हैं। इससे उनका प्रबंधन नहीं हो पाता, जबकि कई एनजीओ उन्हें इस कूडे़ के एवज में पैसा भी दे रहे हैं। इसमें कोर्स के दौरान छात्रों को बताया जाता है कि वेस्ट क्या है, ये कितने प्रकार का होता है तथा इसका किस प्रकार से प्रबंधन किया जा सकता है। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाता है कि किस तरह से नई तकनीक विकसित कर कम पैसे में उसका प्रबंधन किया जा सकता है । लड़कियों के लिए भी यह क्षेत्र काफी मुफीद साबित हो सकता है। मैनेजमेंट में दक्षता के अलावा वे ग्रुप बना कर या किसी एनजीओ से जुड़ कर घर-घर से कूड़ा एकत्र कराकर उसका प्रबंधन कराने में सहायक हो सकती हैं।
- डॉ. यशवंत सिंह, कोऑर्डिनेटर,
पर्यावरण विज्ञान, डॉ. राम मनोहर लोहिया
अवध विवि, फैजाबाद

प्रमुख संस्थान
ऐसे कई संस्थान हैं, जहां से वेस्ट मैनेजमेंट से संबंधित कोर्स किया जा सकता है-

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वॉयर्नमेंटल मैनेजमेंट, मुंबई
वेबसाइट
- www.siesiiem.net

डॉ़ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद
वेबसाइट-
www.rmlau.ac.in

गुरू जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार
वेबसाइट-
www.gjust.ac.in

यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर
वेबसाइट-
www.uniraj.ac.in

गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली, वेबसाइट- www.ipu.ac.in

इंटरनेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट, मध्यप्रदेश, वेबसाइट- www.iiwm.in

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