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अच्छी खबर: कैंसर पीड़ित महिलाएं भी अब बन पाएंगी मां

कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी न सिर्फ बाल झड़ने या भूख घटने की वजह बनती है, बल्कि गर्भधारण की संभावनाओं पर भी बुरा असर डालती है। हालांकि ब्रिटेन में हाल ही में कैंसर से उबरने वाली एक...

अच्छी खबर: कैंसर पीड़ित महिलाएं भी अब बन पाएंगी मां
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 16 Jul 2016 05:37 PM
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कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी न सिर्फ बाल झड़ने या भूख घटने की वजह बनती है, बल्कि गर्भधारण की संभावनाओं पर भी बुरा असर डालती है। हालांकि ब्रिटेन में हाल ही में कैंसर से उबरने वाली एक महिला इलाज से पहले संरक्षित किए गए अंडाणुओं से मां बनने में कामयाब हुई है। इससे कैंसर पीड़ित महिलाओं को विज्ञान की मदद से मातृत्व सुख की सौगात देने की नई उम्मीदें जगी हैं।

ब्रिटिश महिला को मिला मातृत्व सुख
31 वर्षीय ब्रिटिश महिला दस साल पहले किडनी के कैंसर का शिकार हुई थी। डॉक्टरों ने कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले सर्जरी के जरिए महिला के अंडाशय का कुछ हिस्सा निकालकर फ्रीज कर दिया था, ताकि कैंसर से उबरने के बाद उसके मां बनने की संभावना बरकरार रहे। 2015 में कैंसर के सफल इलाज के दो साल बाद एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने संरक्षित अंडाशय को महिला के गर्भ में दोबारा प्रतिरोपित कर दिया। साल के अंत में वह अंडाशय में मौजूद स्वस्थ अंडाणुओं की मदद से प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में कामयाब हुई। जून 2016 के अंत में महिला ने एक स्वस्थ शिशु को जन्म भी दिया।

कीमोथेरेपी मातृत्व के लिए खतरनाक
कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवाएं न सिर्फ अंडाशय में मौजूद अंडाणुओं को नष्ट करती हैं, बल्कि नए अंडाणुओं का उत्पादन भी रोक देती हैं। दवाएं ज्यादा कड़ी हों या इनका अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना पड़े तो महिलाओं में समयपूर्व रजोनिवृत्ति और बांझपन का भी खतरा रहता है। ऐसे में कैंसर पीड़ित महिलाओं के लिए कीमोथेरेपी से पहले अंडाशय का कुछ हिस्सा संरक्षित करवाना बेहतर है। डॉक्टर महिलाओं के शरीर से निकाले गए अंडाशय को अमूमन तरल नाइट्रोजन में -170 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर फ्रीज करते हैं, ताकि उसमें मौजूद स्वस्थ अंडाणु सालों-साल सुरक्षित रहें।

इसलिए बड़ी कामयाबी मान रहे वैज्ञानिक

फिलहाल दुनिया भर में केवल 30 महिलाएं फ्रीज किए गए अंडाशय के प्रतिरोपण से मातृत्व सुख की प्राप्ति कर पाई हैं। इनमें से भी ज्यादातर को गर्भधारण के लिए इन-विट्रो फर्टीलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक का सहारा लेना पड़ा है। आईवीएफ कृत्रिम गर्भधारण की वह पद्धति है, जिसमें लैब में उचित तापमान पर विभिन्न पोषक तत्वों के घोल की मदद से शुक्राणुओं और अंडाणुओं के बीच निषेचन की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाता है। इसके बाद तैयार भ्रूण को महिला के गर्भ में प्रतिरोपित कर दिया जाता है, ताकि वह गर्भधारण कर सके। ब्रिटिश महिला का संरक्षित अंडाशय से मां बनना इसलिए बड़ी उपलब्धि है क्योंकि अव्वल तो वह कैंसर से पीड़ित थी और दूसरा उसने प्राकृतिक रूप से गर्भधारण किया।

ताकि सरोगेसी ही न बचे विकल्प
कैंसर पीड़ित महिलाओं के लिए किराए की कोख ही संतान सुख पाने का एकमात्र विकल्प न रहे, इसके लिए दुनिया भर में कई प्रयोग चल रहे हैं। स्वीडन में कुछ साल पहले दो महिलाओं में उनकी मां की ओर डोनेट किया गया गर्भाशय प्रतिरोपित किया गया था। 18 महीने पहले दोनों महिलाओं ने स्वस्थ शिशुओं को जन्म दिया।

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