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Hindi Newsनिर्भयाकांड पर एक दरोगा का खुला खत, पुलिसवाले हों संवेदनशील

निर्भयाकांड पर एक दरोगा का खुला खत, पुलिसवाले हों संवेदनशील

निर्भयाकांड का करीब से देखने और अध्ययन करने वाले दिल्ली पुलिस के एक जवान ने अपने साथियों यानी पुलिसवालों के लिए खुला खत लिखा है। इस खत में उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया है कि रेप पीडि़ताएं पु

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 17 Dec 2016 09:05 PM

निर्भयाकांड का करीब से देखने और अध्ययन करने वाले दिल्ली पुलिस के एक जवान ने अपने साथियों यानी पुलिसवालों के लिए खुला खत लिखा है। इस खत में उन्होंने अपने सहयोगियों को बताया है कि रेप पीडि़ताएं पुलिस के बारे में क्या सोचती हैं और पुलिसवालों को पीडि़ताओं से कैसे व्यवहार की अपेक्षा है।

पुलिसवालों के लिए खुला खत लिखने वाले दिल्ली पुलिस के जवान का नाम राजेंद्र कलकल है जो अभी दिल्ली पुलिस के म्यूजियम (रिसर्च) में बतौर इंस्पेक्टर तैनात हैं।

पढे़ं, राजेंद्र कलकल के खुले खत के कुछ महत्वपूर्ण अंश-

मेरे प्रिय सहयोगियों,

16 दिसंबर 2012 की रात को भुला देना आसान नहीं है। एक युवा और पढ़ी लिखी लड़की जिसके आखों में बड़े बड़े ख्वाब थे, वह हमारे, आपके किसी के भी बहन या बेटी हो सकती है सिर्फ इसलिए अपनी जान गवां दी कि उस रात छह इंसानों के सिर पर हैवानियत सवार हो गई थी।

इस घटना के बाद नए नियम कानून बनाए गए। देशव्यापी हड़ताल के बाद कानून में संशोधन भी किया गया, लेकिन मुझे लगता है कि ये सारे प्रयास बेकार हैं जब तक कि हम महिलाओं को लेकर अपनी मानसिकता में बदलाव में नहीं लाएंगे।

जैसा कि दिल्ली के इतिहास पर शोध करना मेरा काम है जिसके तहत मैं थानों में जाता हूं और वहां के थानेदार से मिलता हूं। ज्यादातर लोग मुझे मेरे बैच के सब इंस्पेक्टर या सिपाही मिलते हैं। मैं सभी को ठीकठाक हाल में संवेदनशील पाता हूं लेकिन फिर भी मुझे जो अनुभव हुआ है, मेरे पास जो विचार हैं उन्हें आप सब से शेयर करना चाहता हूं। आगे पढ़ें दरोगा का अनुभव

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निर्भयाकांड पर एक दरोगा का खुला खत, पुलिसवाले हों संवेदनशील

कानून के रखवाले हम पुलिसवालों को रेप मामलों में बहुत ही संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है। खासकर जब रेप पीडि़ताओं से बात करते हैं। हमारा कर्तव्य है कि रेप पीडि़ताएं या शिकायत करने वाली महिलाओं को सुनिश्चित किया जाए कि वह हम पर भरोसा करें। बहुत सी पीडि़ताएं थाने नहीं आतीं, वो इसलिए नहीं कि वो पुलिस से डरती हैं बल्कि उन्हें पुलिस की संवदेनशीलता पर भरोसा नहीं होता। वह शिकायत नहीं करतीं।

एक जांचकर्ता के नाते हमें पीडि़ताओं पर एक विश्वास का भरोसा पैदा करना चाहिए। हमें पीडि़ताओं को बताना चाहिए कि हम उनकी हर बात को सुनेंगे और उनकी मदद के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इस पर यह बात कोई मायने नहीं रखती कि पीडि़ता कौन है, कैसी है और कैसे कपड़े पहने है।

जो भी महिला थाने पहुंचती है उसे पुलिस पर भरोसा होता है कि उसकी मदद की जाएगी। महिला के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा कि हम अपने लोगों के साथ करते हैं। हमारी चुनौती है कि हम पीडि़ताओं के इस भरोसे को कायम रखें। हमें उसे ऐसा महसूस नहीं कराना चाहिए कि उसने थाने आकर गलती की। हम से बहुत से लोगों को लगता है कि एक और केस आ गया लेकिन हमारा यह व्यवहार पीडि़ता के लिए सबसे भयानक व्यवहार हो सकता है।

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