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नक्सलियों ने किया आईईडी लगे तीर बम का इस्तेमाल

पहली बार नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में आईईडी लगे तीर बम का इस्तेमाल किया है। परंपरागत तीर-धनुष को विस्फोटक का शक्ल देकर नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के होश उड़ा दिए हैं। छत्तीसगढ़ के सुकमा में जिस तरह से...

नक्सलियों ने किया आईईडी लगे तीर बम का इस्तेमाल
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 17 Mar 2017 07:21 PM
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पहली बार नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में आईईडी लगे तीर बम का इस्तेमाल किया है। परंपरागत तीर-धनुष को विस्फोटक का शक्ल देकर नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के होश उड़ा दिए हैं। छत्तीसगढ़ के सुकमा में जिस तरह से सुरक्षाबलों को निशाना बनाया गया वह न सिर्फ हैरतअंगेज है, बल्कि एकदम नया है। इस घटना के बाद बिहार पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया है।

डेटोनेटर से तीर को बनाया घातक
सुकमा में नक्सलियों ने 11 मार्च को सीआरपीएफ जवानों पर हमला किया था। इस हमले में 12 जवान शहीद हो गए। हमले का तरीका चौंकानेवाला है। गश्त कर रहे जवानों को निशाना बनाने के लिए परंपरागत तीर-धनुष का इस्तेमाल किया गया। हालांकि तीर को इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) बनाकर हमले किए गए, जो कि ज्यादा घातक साबित हुआ।

यूं बनाया तीर बम
जानकारों के मुताबिक तीर के अगले हिस्से पर डेटोनेटर लगाकर उसे बम बनाया गया था। जैसे ही यह तीर किसी चीज से टकराएगा विस्फोट होगा। यदि यह किसी जवान के शरीर पर लगाता है तो विस्फोट से नुकसान तय है। ऐसा ही सुकमा में नक्सलियों ने किया। जानकार बताते हैं कि विस्फोटक वाले तीर का इस्तेमाल पहली बार जवानों पर किया गया। इससे पहले नक्सली जहर लगे तीर का इस्तेमाल करते थे।

जवानों पर दोतरफा हमला
सुकमा में जवानों पर दोतरफा हमला हुआ था। एक तो विस्फोटक लगे तीर बरसाए गए दूसरे लैंडमाइंस का विस्फोट कराया गया। हमला होते ही जवानों ने जैसे ही पेड़ या ऊंचे स्थान के पीछे छिपकर जवाबी कार्रवाई के लिए मोर्चा संभाला, लैंडमाइंस के धमाके कराए गए। लैंडमाइंस ऐसे जगहों पर लगाए गए थे जहां जवानों के मोर्चा संभालने का अंदेशा था। नक्सलियों की यह चाल भी सुकमा में सुरक्षाबलों पर भारी पड़ी।

इन हमलों से बचाना मुश्किल
आईईडी और विस्फोटक वाले तीर से बचना सुरक्षाबलों के लिए मुश्किल काम है। इसके लिए बचाव का एक मात्र तरीके सतर्कता ही है। यदि लैंडमाइंस विस्फोट होता है तो उसका असर होना तय है। सिर्फ एंटी लैंडमाइंस गाड़ी ही इसका प्रभाव कुछ हद तक कम कर सकती है। विस्फोट वाले तीर से बचाव का भी कोई रास्ता नहीं है, जंगलों में जवानों को पैदल ही चलना पड़ता है।

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