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नितिन गडकरी Exclusive: अब दिल्ली ही मेरी नियति, महाराष्ट्र नहीं जाऊंगा

केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी न सिर्फ एक कुशल मंत्री के तौर पर देखे जाते हैं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के दक्ष राजनीतिक प्रबंधक के रूप में भी उनकी गिनती होती है। हाल...

नितिन गडकरी Exclusive:  अब दिल्ली ही मेरी नियति, महाराष्ट्र नहीं जाऊंगा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Mar 2017 09:28 PM
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केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी न सिर्फ एक कुशल मंत्री के तौर पर देखे जाते हैं, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के दक्ष राजनीतिक प्रबंधक के रूप में भी उनकी गिनती होती है। हाल के विधानसभा चुनाव में गोवा में सत्ता गंवा चुकी पार्टी को फिर से सत्ताधारी बनाने में गडकरी ने अपने जबर्दस्त राजनीतिक कौशल का परिचय दिया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भाजपा अध्यक्ष तक का सफर तय कर चुके गडकरी से राजनीति और उनके मंत्रालयों के लक्ष्यों पर हिन्दुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक ने विस्तृत बात की। प्रस्तुत है बातचीत के अंश:

- गोवा में आपने 13 विधायकों के साथ सरकार बना ली। कैसे किया यह चमत्कार?
जिस दिन परिणाम आए, मुझे करीब साढ़े छह बजे अमित भाई (भाजपा अध्यक्ष) का फोन आया। मैंने उनसे कहा कि हम सरकार नहीं बना पाएंगे। उन्होंने कहा, आप विशेष विमान लेकर गोवा जाइए, हमें कोशिश करनी चाहिए। मैं साढ़े बारह बजे वहां होटल पहुंचा। पहले भाजपा के स्थानीय लोगों से मिला, तो उन्होंने कहा कि पर्रिकर जी को दिल्ली से यहां मत लाइए। वह बड़े पद पर हैं और यहां हमारे पास बहुमत नहीं है। पर्रिकर जी से बात हुई, तो उन्होंने कहा कि जो पार्टी तय करेगी, वह उन्हें मान्य होगा। फिर मैंने एमजीपी से बात की। उनसे मेरे पुराने संबंध हैं। मैंने उन्हें कहा कि पुरानी बातें छोड़ो, अब हमें साथ में काम करना है। वे तैयार हो गए। इसके बाद गोवा फॉरवर्ड से बात की। एमजीपी और गोवा फॉरवर्ड ने शर्त रखी कि मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री बनेंगे, तो ही वे समर्थन देंगे। यह नई समस्या थी। मैंने सुबह करीब साढे़ पांच बजे अमित भाई को फोन किया। उनका आठ बजे के आस-पास फोन आया। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व संसदीय बोर्ड के दूसरे सदस्यों को पर्रिकर को मुख्यमंत्री बनाने में कोई आपत्ति नहीं है। एमजीपी ने समर्थन का पत्र पहले ही दे दिया था। जैसे ही शाम साढ़े चार बजे के करीब गोवा फॉरवर्ड का पत्र मिला, हमने राज्यपाल से समय लेकर दावा किया। अब हमारे पास 23 हो गए हैं।

- यह नैतिक तौर पर कितना सही है, जनादेश तो आपके खिलाफ था?
जब से हमारा संविधान बना है, तब से अनेक बार इस तरह की स्थिति बनी है। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। अगर कांग्रेस वहां सरकार बनाती, तो उसे भी किसी न किसी से  समर्थन लेना ही पड़ता। हम दोनों के सामने एक सी परिस्थिति थी। वह उस परिस्थिति का फायदा नहीं उठा पाई, यह उसकी असफलता है। वैसे भी एमजीपी को मिलाकर हमारे पास 17 विधायक थे। इतने ही कांग्रेस के पास थे। हमने अवसर का फायदा उठाया, तो नैतिकता की बात आ गई। हम क्या राजनीति में साधु संन्यासी हैं... और हमने कौन सा गलत काम किया है? पंचायत से लेकर लोकसभा तक ऐसे ही चलता है। आप बताइए, झारखंड में मधु कोड़ा की पार्टी का एक विधायक था, उसे समर्थन देकर कांगे्रस ने झारखंड में सरकार बनाई थी। वह क्या नैतिक तौर पर सही था? ऐसा पचासों बार हुआ है।

- कांग्रेस कह रही है कि वह सबसे बड़ी पार्टी थी, बावजूद इसके राज्यपाल ने उसे नहीं बुलाया।
अगर कांग्रेस के पास संख्या थी, तो वे लोग राज्यपाल के पास क्यों नहीं गए? सच्चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी अपना नेता ही नहीं चुन पाई। उनके यहां मुख्यमंत्री पद के पांच दावेदार थे। हाईकमान के रुख का कुछ पता नहीं था। दिग्विजय सिंह (प्रभारी महासचिव) उसी में उलझे रहे। इतनी देर में हमने सबसे बात करके अपने लिए समर्थन जुटाया और साबित भी कर दिया कि हमारे पास बहुमत है।

- कांग्रेस का आरोप है कि पैसे का लेन देन हुआ।
झूठ है। अंगूर खाने को नहीं मिले, तो खट्टे हैं।

- फिर आपने विधायकों को क्या प्रॉमिस किया?
उन्हें मंत्री पद दिए हैं। एमजीपी को दो और गोवा फॉरवर्ड को तीन। उन्हें भरोसा दिया कि केंद्र में हमारी सरकार है और गोवा को विकास के लिए पूरा पैसा देंगे।

- क्या जोड़-तोड़ से बनी सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी?
आप चिंता मत कीजिए। सरकार एकदम मजबूत है और वह पूरे पांच साल चलेगी। जोड़-तोड़ से बनी, तो इसका मतलब असांविधानिक तो नहीं है। हमने वहां कोई असांविधानिक या अनैतिक काम नहीं किया है।

- धारणा यह बन रही है कि भाजपा वही सब कुछ कर रही है, जिसके लिए कांग्रेस बदनाम थी।
यह आज की बात नहीं है। जनसंघ के समय से हम यह देखते रहे हैं कि चुनाव में जीतकर आने की संभावना किसकी ज्यादा है? हर पार्टी यह कोशिश करती है कि उसकी संख्या ज्यादा से ज्यादा हो। इसमें गलत क्या है? क्या यह अलोकतांत्रिक है? क्या यह भ्रष्टाचार है? क्या अनैतिक है? अगर राजनीतिक दल चुनाव न जीते, तो आप ही लिखते हैं कि पार्टी पिट गई।

- भाजपा में बाहरी लोगों को महत्व मिलने से क्या कार्यकर्ताओं में गलत संदेश नहीं जाता?
आप एक बात बताइए, कोई भी संस्था, मसलन नगरपालिका है या कोई उद्योग है, अखबार है, वे हर बार बाहर से नए-नए लोग लेते हैं या नहीं लेते? अपना उत्पादन बढ़ाते हैं। ऐसे ही, कभी-कभी चुनाव में भी समाज के अलग-अलग वर्गों के लोग, अगर उन्हें लगता है कि भाजपा के साथ उनका भविष्य अच्छा हो सकता है, देश का भविष्य अच्छा हो सकता है, तो हमसे जुड़ते हैं। उनको साथ लेने या चुनाव में टिकट देने में गलत क्या है? ये बहुत ही स्वाभाविक है। हां, अगर हमने किसी विधायक को पैसे दिए हैं, कोई लालच दिया है, उसका आपके पास कोई सबूत है, तो जरूर हमें दोषी ठहराइए।

- शिवसेना और भाजपा का झगड़ा निपटने का नाम नहीं ले रहा। इससे सरकार की छवि पर कैसा असर पड़ता है?
देखिए झगड़े तो नहीं होने चाहिए। अभी जब महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव के नतीजे निकले, तब मैंने कहा था कि जनता ने जनादेश दिया है कि भाजपा और शिवसेना को मिलकर आगे बढ़ना चाहिए। दो में उनको बहुमत मिला और दस में हमको। मुंबई में दोनों दल मिलकर निगम चलाएंगे।

- शिवसेना केंद्र व राज्य सरकार में शामिल है, पर मुख्यमंत्री -प्रधानमंत्री के खिलाफ बयान देती है?
आपका यह सवाल एकदम सही है, पर आप गलत व्यक्ति से पूछ रहे हैं। यह शिवसेना के नेताओं से पूछा जाना चाहिए। हम अपनी तरफ से यह पूरी कोशिश करते रहे हैं कि हमारी राजनीति जोड़ने की हो।

- आप पार्टी के कोर ग्रुप में हैं। क्या शिवसेना से रिश्ते को लेकर शीर्ष स्तर पर कभी विचार हुआ?
विचार-विमर्श होता रहता है। मैं इन दिनों अपने विभाग के कार्यों में व्यस्त हूं। रात नौ बजे तक मंत्रालय में बैठता हूं। सरकार के काम के साथ पार्टी के काम के लिए समय निकाल पाना कठिन होता है। संगठन का मसला देखने के लिए और लोग हैं, यह बात निश्चित ही उनके ध्यान में होगी।

- मनोहर पर्रिकर के गोवा जाने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल होना है। यह कहा जा रहा है कि किसी मुख्यमंत्री को भी केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है। क्या आपके महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री बनने की कोई संभावना है?
एक सौ एक परसेंट नहीं। मैं किसी भी परिस्थिति में अब महाराष्ट्र नहीं जाना चाहता और जाऊंगा भी नहीं। मैं दिल्ली आया हूं और मेरी नियति अब दिल्ली है। मेरी ऐसी महत्वाकांक्षा भी नहीं रही। जब विधानसभा चुनाव हुए, तब मीडिया ने यह मसला उठाया था। वहां के बहुत से विधायकों की भी इच्छा थी कि मैं मुख्यमंत्री बनूं, पर मैंने साफ कहा था कि मैं दिल्ली आ गया हूं और अब मुझे गंगोत्री, केदारनाथ की सड़कें बनानी हैं। दिल्ली से जयपुर एक्सप्रेस वे बनाना है। मैं भावनात्मक कार्यकर्ता हूं। देश के लिए मैंने कुछ काम तय कर रखे हैं और वही करना चाहता हूं।

- क्या भाजपा अगला चुनाव हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ने की तैयारी कर रही है?
पहली बात तो यह कि हिंदुत्व चुनाव का मुद्दा नहीं है। आप लोग (मीडिया) ही इस तरह की चर्चाएं शुरू करते हैं। हिंदुत्व विवाद का विषय नहीं है। भाजपा भारतीय संस्कृति, इतिहास और विरासत से प्रेरणा लेती है। और इसलिए मैं यह मानता हूं कि धर्म का संबंध कर्तव्य के साथ होता है। हमारा हिंदुत्व न संकुचित है, न किसी के विरोध में है।

- योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाने और उनके पुराने भाषणों को ध्यान में रखकर इस तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं।
योगी जी ने छुआछूत व जातिवाद को समाप्त करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किया है। उनका मठ किसी जात-पांत को नहीं मानता। विडंबना देखिए, उन्हें आप सांप्रदायिक और जातिवादी कहेंगे और जो एक जाति और एक संप्रदाय को आगे रखकर राजनीति कर रहे, उनको प्रगतिशील कहेंगे। उन्होंने भगवा कपड़े पहने हैं, महज इसलिए हमें अल्पसंख्यक विरोधी कहा जाए, यह उचित नहीं है। हमलोग सबका साथ सबका विकास पर चलेंगे। राष्ट्रवाद हमारी प्राथमिकता है और देश के हितों के साथ हम कोई समझौता नहीं करेंगे। हम बार-बार यही कह रहे हैं कि हमारा हिंदुत्व अल्पसंख्यक विरोधी नहीं।

- आपने 30 किमी प्रतिदिन सड़क बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया था, पर वास्तव में काम तो उससे काफी पीछे है?
देखिए टारगेट कभी पूरा नहीं होता। टारगेट सामने रखा जाता है। अभी यह 22-23 किमी तक जाएगा। अब मेरा टारगेट 40 किमी का है। इस साल भी हम पूरा नहीं कर सके, पर अगले साल मुझे लगता है कि हम यह 40 किमी का टारगेट पूरा कर लेंगे। टारगेट को वायदे के साथ जोड़ना ठीक नहीं है।

- क्या आपने आकलन किया है कि कितनी फीसदी घोषणाएं जमीन पर उतरी हैं?
मैं झूठ नहीं बोलता। जो मैंने बोला है, मैं पूरा करूंगा। मैं मीडिया से भी कह रहा हूं कि मुझे बताए, कौन सी घोषणा पूरी नहीं हुई?

- आपने सीमेंट की सड़क बनाने का फैसला किया था। अब तक कितनी ऐसी सड़कें बनी हैं?
अभी ईर्स्टन और वेर्स्टन पेरिफेरल बाईपास में एक लाख सीमेंट बोरी प्रतिदिन उपयोग कर रहे हैं। देश के सीमेंट और स्टील उद्योग को हमने नई जान दी है। अब सारी सड़कें सीमेंट की ही बना रहे हैं।

ये भी कहा

- दिल्ली-आगरा व बनारस-हल्दिया पोत परिवहन पर-
दिल्ली-आगरा का टेंडर निकला, पर ड्रेजिंग के लिए कोई आया नहीं। फिर से टेंडर में बदलाव किया है। इसके पीछे मैं लगा हुआ हूं। मुझे आशा है कि तीन-चार महीने में यह काम शुरू हो जाना चाहिए। वाराणसी से हल्दिया तक तीन मल्टी मॉडल हब बना रहे हैं। करीब 40 वाटर पोर्ट बन रहे हैं।

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- दिल्ली-आगरा, बनारस-हावड़ा जलमार्ग पर-
साल 2018 से पहले हो जाएगा। हमने 111 नदियों को जलमार्ग के रूप में डेवलेप करने का फैसला किया है।

- अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा से जुड़ी परियोजना पर-
इस परियोजना का डीपीआर बनाना शुरू हो गया है। मैं कोई भी घोषणा करूं, तो वह दूसरे ही दिन तो पूरा नहीं हो सकता। इसमें कुछ समय तो लगेगा। थोड़ा धैर्य तो रखना पड़ेगा।

- ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे के बारे में-
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे को आप स्वयं देखकर आइए। इस मार्ग पर रात-दिन काम चल रहा है। इसी तरह, दिल्ली-जयपुर और दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस-वे भी बन रहा है। आपको मैं बता दूं, पूरे देश भर में हम ऐसे ग्यारह एक्सप्रेस-वे बना रहे हैं।

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