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Hindi Newsबिना ऐतिहासिक चेतना के राष्ट्रीय गौरव प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता: डा. नंदलाल मेहता

बिना ऐतिहासिक चेतना के राष्ट्रीय गौरव प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता: डा. नंदलाल मेहता

डा. नंद लाल मेहता कहते हैं कि किसी भी राष्ट्र का भाषिक अधिष्ठान यदि संकट ग्रस्त हो जाता है तो राष्ट्र को धारण करने वाले विविध अधिष्ठान भी भरभरा कर ध्वस्त हो जाते हैं। शासन का यह दायित्व है कि...

बिना ऐतिहासिक चेतना के राष्ट्रीय गौरव प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता: डा. नंदलाल मेहता
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 21 Mar 2017 07:39 PM
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डा. नंद लाल मेहता कहते हैं कि किसी भी राष्ट्र का भाषिक अधिष्ठान यदि संकट ग्रस्त हो जाता है तो राष्ट्र को धारण करने वाले विविध अधिष्ठान भी भरभरा कर ध्वस्त हो जाते हैं। शासन का यह दायित्व है कि ‘वाक’ और ‘श्रुति’ संबंधी उसकी नीतियां बहुत सुस्पष्ट एवं राष्ट्र का उन्नयन करने वाली हों। यानी बिना ऐतिहासिक चेतना के राष्ट्रीय गौरव प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता है। 

यह विचार सेक्टर 4 स्थित शब्द-आलोक 1218 में निवास करने वाले 76 वर्षीय डा. नंदलाल मेहता ‘वागीश’ ने हिन्दुस्तान से बातचीत में वक्त किया। बीते शुक्रवार को हरियाणा साहित्य अकादमी ने उन्हें ‘महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान’ से सम्मानित किया है। हरियाणा स्वर्ण जयंती समारोह के क्रम में आयोजित हरियाणा साहित्य संगम में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने प्रदान किया। इस कार्यक्रम में देश भर से सैकड़ों की संख्या में साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। पुरस्कार में डा. नंदलाल मेहता वागीश को 5 लाख रुपये, अंगवस्त्रम, मानपत्र और स्मृति चिन्ह मिला। इस अवसर उनके साथ उनकी पत्नी श्रीमती विजय मेहता और उनकी बेटी श्रीमती एडवोकेट प्रीति तनेजा समेत परिवार के सदस्य भी उपस्थित थे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य एवं प्रांतीय परिषद के मार्गदर्शक डा. नंदलाल मेहता अवैतनिक अमेरिकन बायो ग्राफिकल इंस्टीच्यूट की शोध परामर्श परिषद के मानद सदस्य भी हैं।

डा. मेहता कहते हैं कि साहित्य मात्र अपने काल का दर्पण नहीं होता बल्कि वह परम्परा से चले आ रहे मानवीय मूल्यों, इतिहास चिंतन, दर्शन, संस्कृति,नैतिक चेतना और कला मानक प्रतिमानों के साथ आगे बढ़ता हैं। इसलिए साहित्य की भाषा त्रि पथगा होती है। साहित्य का शब्द ही अपने काल का उलंघन करते हुए भूत, वर्तमान और भविष्य का मार्ग दर्शन करते हुए मानवीय मूल्यों का स्थापना करता है। हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाओं की नेट पर बढ़ती उपलब्धता और लोकप्रियता की डा. मेहता सराहना करते हैं, लेकिन चिंता भी जताते हैं। उन्होंने कहा कि लिखित शब्द का संस्कार प्राप्त किए बिना केवल दृश्याभाषों से न तो साहित्य की अर्तवस्तु को समझा जा सकता है न ही कल्पना को समृद्ध किया जा सकता है। इस दौरान चिंतन के अभाव में मौलिक लेखन पिछड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मौलिक लेखन का अभिप्राय आपकी जीवन दृष्टि क्या है? आपका राष्ट्रीय एवं सामाजिक चिंतन क्या है? इतिहास की स्मृतियां आपके स्मृति कोषों में कितनी अंकित हैं? उन्होंने कहा कि साहित्या का मूल उद्देश्य स्वयं के स्वरूप को जानना है। अर्थात आत्मबोध संपंन होगा है, जिससे लिए स्वामी विवेकानंद ने कठ उपनिषद से कहा कि,‘उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान निबोधत’ अर्थात उठो जागो और श्रेष्ठ व्यक्तियों के चरणों में बैठ कर अपने स्वरूप को समझो।

डा. नंद लाल मेहता की प्रमुख कृतियां
26 साहित्यिक रचनाएं हैं जिनमें 16 रचनाएं मौलिक एवं अन्य संस्कृत एवं पंजाबी से अनुदित हैं। डा. नंदलाल मेहता की दो आध्यात्मिक पुस्तकों को अंग्रेजी में अनुवाद भी हो चुका है। इनमें एक शिवात्म चेतना के ज्योतिषचरण और दूसरी गुरुगीता एवं सतगुरु बाबा प्रकाशपुरी है। इसके अलावा उनकी 5 सम्मादित कृतियां भी हैं। उनकी लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित पुस्तकों में संस्कृति तत्व मिमांसा, शब्द परम्परा और राष्ट्रचेतना, भाषा दर्शन के विविध आयाम, उपनिषदों के आलोक में, व्यंग रचना सेक्यूलर होने का सुख एवं हास्य व्यंग काव्य संग्रह खामोश अदालत जारी है। इसके अलावा भाषा दाशर्निक चिंतन, संस्कृति तत्व चिंतन, शब्द चिंतन सरीखी पुस्तकें विधाओं के रूप में प्रतिष्ठित हैं। 

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