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नाटक पारो में गांव की महिलाओं की त्रासदी हुई जीवंत

पारो एक आम ग्रामीण महिला है। घर-परिवार व समाज में उसे कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। रूढ़िवादी सोच के कारण उसे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। आखिरकार दो पाटों के बीच पिसते-पिसते वह दम तोड़ देती...

नाटक पारो में गांव की महिलाओं की त्रासदी हुई जीवंत
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Mar 2017 01:33 AM
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पारो एक आम ग्रामीण महिला है। घर-परिवार व समाज में उसे कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। रूढ़िवादी सोच के कारण उसे काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। आखिरकार दो पाटों के बीच पिसते-पिसते वह दम तोड़ देती है। महान साहित्यकार बाबा नागार्जुन की चर्चित कहानी पर आधारित नाटक पारो के कालिदास रंगालय में मंचन के साथ शनिवार को तीन दिवस कोरस नाट्योत्सव का समापन हो गया।

वर्ष 1945 में प्रकाशित पारो को साहित्य की दुनिया में ग्रामीण महिलाओं की त्रासद स्थिति का दस्तावेज माना जाता है। इस कहानी में गांवों में चल रही दो समानान्तर दुनिया का चित्रण है। एक दुनिया महिलाओं की तो दूसरी पुरुषों की है। पुरुषों की दुनिया महिलाओं के दुखों को लेकर काफी क्रूर, निर्मम व ठंडे भाव को दिखाता है। उसकी सहानुभूति भी खोखली जान पड़ती है। नाटक के निर्देशक ने पारो के बहाने यह कहने की कोशिश की है कि आज भी पारो जैसी ढेरों महिलाएं हैं। युवा रंगकर्मी समता राय के निर्देशन में मात्सी शरण, सोवित श्रीमन, समता राय, प्रशांत ठाकुर, मो. यूसुफ अली, रवि कुमार, नीतीश कुमार ने पारो के मुख्य पात्रों को मंच पर जीवंत किया। कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया।

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