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दुश्मनों के लिए मैं भी तलवार हूं ..हां मैं रूखसार हूं

मुल्क से प्यार करना भी ईमान है...मुल्क पर जान देना मेरी शान है...मुल्क का जो भी दुश्मन है शैतान है...दुश्मनों के लिए मैं भी तलवार हूं...हां मैं रूखसार हूं ....एसके मेमोरियल हॉल में लगातार दूसरे दिन...

दुश्मनों के लिए मैं  भी तलवार हूं ..हां मैं रूखसार हूं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Mar 2017 01:22 AM
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मुल्क से प्यार करना भी ईमान है...मुल्क पर जान देना मेरी शान है...मुल्क का जो भी दुश्मन है शैतान है...दुश्मनों के लिए मैं भी तलवार हूं...हां मैं रूखसार हूं ....एसके मेमोरियल हॉल में लगातार दूसरे दिन शनिवार को भी शेरो-शायरी की महफिल सजी थी। देश के चुनिंदा शायर मंच की शोभा बढ़ा रहे थे।

बलरामपुर की युवा शायरा रूखसार बलरामपुरी अपनी शेरो-शायरी से लगातार महफिल लूट रहीं थीं। खासकर प्यार और मोहब्बतों की उनकी गजलें और नज्में युवाओं की खूब दाद और तालियां बटोर रही थीं। खासकर उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को लेकर रूखसार की बातों पर खूब ठहाके लगे। देर रात तक पूरा सभागार वाह-वाह और मुकर्रर के साथ तालियों से सराबोर होता रहा।

नाव कागज की छोड़ दी हैं मैंने....जश्न-ए-उर्दू के दो दिवसीय आयोजन के पहले दिन शनिवार को एसके मेमोरियल हॉल में कुल हिन्द मुशायरा में रूखसार के साथ गुलजार देहलवी, शबीना अदीब,कासिम खुर्शीद, सुल्तान अख्तर, नुजहत अंजुम, अभय कुमार बेबाक,सुनील कुमार तंग, शफी मशहदी, शंकर कैमूरी,आलम खुर्शीद ने भी मुशायरा का मंच साझा किया। सबने एक से बढ़कर एक शेर पढ़े,गजलें सुनायीं। इनको सुनने पूरा सभागार खचाखच भरा था। ढेरों लोग तो खड़े -खड़े ही मुशायरा के मजे लूटते रहे।

मंसूर उस्मानी ने मुशायरा का संचालन करते हुए शेरो-शायरी के पिच पर अपने सलामी बल्लेबाज पटना आकाशवाणी के शंकर कैमूरी को कुछ इस तरह पेश किया...नाव कागज की छोड़ दी मैंने अब समंदर की जिम्मेवारी है डूबो दे या पार लगाएं।बद से बदतर कभी हालात न होने देंगे...शंकर कैमूरी ने बड़े ही जोश-खरोश के साथ मुशायरे का आगाज किया...बद से बदतर कभी हालात नहीं होने देंगे ,भाईचारा-मोहब्बत का सहारा लेकर हम किसी शहर को गुजरात न होने देंगे...। अगली लाइन देखिए..पहले हम हैं आदमी फिर हिन्दू या मुसलमान...आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए...। आखिर में तो वे छा ही गए जब कहा...चोटी वाले हो तो दाढ़ी वाले से मोहब्बत करना ,दाढ़ी वाले हो तो चोटी वाले की हिफाजत करना....फिर क्या था पूरा हॉल तालियों में डूब गया। कैमूरी ने रंग जमाया तो पटना के ही जानेमान शायर कासिम खुर्शीद साहब ने मंच संभाला कुछ इस तरह...हमारे इश्क का अब तक निशान रोशन है...जरा सी दूरी है और दरम्यान रोशन है..तुम्हारी याद के जुगनू हैं मेरी आंखों में तुम्हारी याद से सारा मकान रोशन है...। आखिर में जब कहा कि कहीं भी जाऊं पर मेरे लहू में हिन्दुस्तान रोशन है ...हमारे घर में बड़े-बूढ़े अभी जिंदा हैं हमारे घर में अभी पायदान रोशन है...।

प्यार के सागर में डूबो...गम का दरिया छोड़ दोयुवा शायर रूखसार बलरामपुरी ने मंच पर यह कहते हुए इंट्री ली कि प्यार दिल में बसा लिया मैंने सारी दुनिया से रिश्ता तोड़कर तुझको बना लिया अपना मैंने...। फिर युवाओं से मुखातिब होते हुए सुनाने लगीं...तमन्ना है मेरे दिल की मेरी सनम एक बार हो जाए कि जाते-जाते दुनिया से तेरा दीदार हो जाए....मोहब्बत मैं भी करती हूं तुम भी करते जमाने से क्या डरना चलो इजहार हो जाए...। उनकी शायरी की कुछ और बानगी देखे...जमानेभर की नैमतें हो लेकिन घर में बेटी न हो तो घर अच्छा नहीं लगता है...प्यार के सागर में डूबो गम का दरिया छोड़ दो मैं भी दुनिया छोड़ दूं तुम भी जमाना छोड़ दो...बूढ़ी आंखें पूछती है रात-दिन बेटों से ये किन किताबों में लिखा है मां को तन्हा छोड़ दो...खौफ है दुनिया की तो मेरी तमन्ना छोड़ दो...मेरे दिल में रहोगो संवर जाओगे गर दूर गए मुझसे तो बिखर जाओगे..।अमीर लोग हमें घास नहीं डालते...सीवान के शायर सुनील कुमार तंग ने अपनी मजाहिया शायरी से पूरे महफिल को हंसी में डूबो दिया। कुछ बानगी देखी जाए...गरीब लोगों को दिल में पालते नहीं और अमीर लोग हमें घास नहीं डालते....उसे हिन्दी से क्या मतलब..उसे उर्दू से क्या मतलब ...वह तो हिन्दी -उर्दू में सियासी भेद करता है...हम भूख से मर जाएंगे और तुम भी मर जाओगे इस मुल्क को खाते-खाते...।

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