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आदिवासी सेंगेल अभियान ने झारखंड को मणिपुर बनाने की चेतावनी

आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राज्य सरकार को एक माह का अल्टीमेटम देते हुए शुक्रवार को कहा कि छोटानागपुर काश्तकारी एवं संताल परगना काश्तकारी कानून...

आदिवासी सेंगेल अभियान ने झारखंड को मणिपुर बनाने की चेतावनी
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 07 Apr 2017 10:11 PM
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आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने राज्य सरकार को एक माह का अल्टीमेटम देते हुए शुक्रवार को कहा कि छोटानागपुर काश्तकारी एवं संताल परगना काश्तकारी कानून (सीएनटी-एसपीटी एक्ट) में संशोधन सरकार वापस ले। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष घोषित स्थानीयता नीति को भी सरकार रद करे, अन्यथा यहां के आदिवासी मणिपुर की घटना झारखंड में भी दोहरा सकते हैं। मुर्मू शुक्रवार को धुर्वा के शहीद मैदान में आयोजित महारैली को संबोधित कर रहे थे।

मुर्मू ने कहा कि मणिपुर में स्थानीय लोगों की मांग के लिए विधायकों द्वारा कुछ नहीं किये जाने के विरोध में 18 जून 2001 को विधानसभा को जला दिया गया था। विधायकों के घर फूंक दिए गए थे। विधायकों को भी जलाने का प्रयास हुआ। झारखंड में भी ऐसा हो सकता है।

मुर्मू ने कहा कि सीएनटी-एसपीटी में संशोधन का श्रीगणेश झारखंड जनजातीय परामर्शदातृ पर्षद से हुआ। उसमें 15 आदिवासी विधायक हैं। उन्होंने भी विरोध नहीं किया। घुटने टेक दिये। राज्य में 28 आदिवासी विधायक हैं। उनका सामाजिक दायित्व पहले बनता है कि वे इस संशोधन और स्थानीय नीति का विरोध करें। मंच के माध्यम से सभी आदिवासी विधायकों को चेतावनी दी जाती है कि वे एक महीने में सीएनटी- एसपीटी संशोधन विधेयक और स्थानीयता नीति को वापस करायें। अन्यथा एक महीने तक काला झंडा दिखायेंगे। एक महीने में वापस नहीं हुआ तो विधायक इस्तीफा दें।

उन्होंने मंच से नारा दिया कि बाहरी सरकार झारखंड छोड़ो, बाहरी लोग झारखंड छोड़ो। आज से महायुद्ध की शुरुआत हो गई है। राज्य सरकार सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन कर आदिवासियों की जमीन, नौकरी, गांव और आबादी लूट रही है। सात अप्रैल 2016 को स्थानीयता नीति लाई गई थी, इसलिए सात अप्रैल 2017 को ही उलगुलान एवं सेंगेल शुरू किया जा रहा है। संशोधन से कृषि योग्य भूमि व्यापारिक भूमि में तब्दील हो जाएगी। गरीब आदिवासियों को एक डिसमिल जमीन की मालगुजारी पांच रुपये की जगह 5000 रुपये देनी होगी। अभियान के प्रदेश संयोजक अरुण उरांव ने कहा कि कितनी सरकारें आईं और गईं, स्थानीयता नीति नहीं बना पाई। 1932 की जगह 1985 के खतियान की सीमा निर्धारित कर दी गयी। सीएनटी- एसपीटी एक्ट में सरलीकरण आदिवासियों के लिए नहीं उद्योगपतियों और पूंजीपतियों के लिए किया गया है। राज्य के 28 आदिवासी विधायक आदिवासी हितों की रक्षा करने की बजाए बिक गये। हम अल्टीमेटम दे रहे हैं कि एक माह में संशोधन विधेयक वापस लें । सरकार सकारात्मक फैसला ले, नहीं तो 2019 के आम चुनाव की जगह 2017 पार नहीं करने देंगे।

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