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वर्ष 2016 में 3190 यक्ष्मा के रोगी चिह्नित

वर्ष 2016 में जिले में 3190 यक्ष्मा के रोगियों को चिह्नित किया गया है। जिसमें धनात्मक मरीजों की संख्या 487 और ऋणात्मक मरीजों की संख्या 225 है। वहीं 2015 में 393 धनात्‍मक मरीजो मे से 340 रोगियों को...

वर्ष 2016  में 3190  यक्ष्मा के रोगी  चिह्नित
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Mar 2017 12:13 AM
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वर्ष 2016 में जिले में 3190 यक्ष्मा के रोगियों को चिह्नित किया गया है। जिसमें धनात्मक मरीजों की संख्या 487 और ऋणात्मक मरीजों की संख्या 225 है। वहीं 2015 में 393 धनात्‍मक मरीजो मे से 340 रोगियों को रोगमुक्‍त किया गया है। डीटीओ डा. सीए खाखा ने बताया कि टीबी एक घातक संक्रामक बीमारी है। जो माइक्रो बैक्ट्रीयम ट्यूबर क्युलेसिस नामक वैक्टीरिया के कारण फैलता है।

यक्ष्मा शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। जब यह छाती को प्रभावित करता है, तो इसे फेफड़े की टीबी कहा जाता है। यक्ष्मा के कीटाणु हवा के माध्यम से फैलते हैं। यक्ष्मा के कीटाणु हवा में छोटे-छोटे वायुकणों के रूप में फैल जाते हैं। उन्होंने बताया कि भारत में प्रतिदिन 40,000 से अधिक व्यक्ति टीबी के कीटाणु से संक्रमित होते हैं। उन्होंने बताया कि बलगम के साथ तीन सप्ताह अथवा अधिक दिनों से लगातार खांसी का होना, छाती में दर्द, बलगम के साथ खून का आना, शाम के समय शरीर का तापमान बढ़ जाना, रात में पसीना, भूख में कमी, वजन में कमी होना यक्ष्मा के लक्षण है। इस पर रोकथाम के लिए आरएनटीसीपी कार्यक्रम 1997 में शुरू किया गया, जो 2005 तक पूरे भारत में लागू हो गया। डॉट्स पद्धति टीबी रोग के मुक्ति पाने का सर्वोत्तम तरीका है। 123 संदेहास्‍पद एमडीआर मरीज की जांच की गई जिसमें से 3 और 1 एक्‍सडीआर मरीज पाए गए।

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