छोटे बदलाव बड़ा असर
दलाव की इच्छा को अकसर मजबूरी से जोड़ा जाता है। मानो कुछ गड़बड़ी है, जिसे ठीक करना है। कोई कमी है, जिसे दूर किया जाना है। ऐसे में बदलाव की इच्छा अभाव व हीनता के भाव से जन्म लेती है। पर यह भी हो सकता है...
दलाव की इच्छा को अकसर मजबूरी से जोड़ा जाता है। मानो कुछ गड़बड़ी है, जिसे ठीक करना है। कोई कमी है, जिसे दूर किया जाना है। ऐसे में बदलाव की इच्छा अभाव व हीनता के भाव से जन्म लेती है। पर यह भी हो सकता है कि आप नई भूमिका में हों, जहां कुछ अलग करना हो। यह भी कि आप पहले ही अच्छा काम कर रहे हों। ना ही किसी से कम और ना ही किसी के जैसा। ऐसे में बदलाव, हर कदम पर खुद को बेहतर बनाने की सहज इच्छा का नाम भी हो सकता है। वजह कोई भी हो, शुरुआत आपको ही करनी होती है।
कुछ बड़ा ही क्यों?
हम कुछ बड़ा होने और कुछ बड़ा करने पर ही जोर देते हैं। जबकि सच यह भी है कि सब कुछ भी अगर बदलना हो तो वह एक साथ नहीं, धीरे-धीरे होता है। सही दिशा में बढ़ाए छोटे-छोटे कई कदम ज्यादा बेहतर हंै, बजाय एक बड़ी छलांग के, जो वापस पीछे ही धकेल दें। आमतौर पर हम जोश में एक साथ सब ठीक करने की कोशिश करते हैं। नतीजा पहले ही दिन खप जाते हैं। चुक जाते हैं। हार्वर्ड साइकायट्री स्कूल में इंस्ट्रक्टर व लेखक जोसेफ ए. श्रेंड मानते हैं कि छोटे बदलाव असरदार होते हैं। एक साथ सब बदलने की जरूरत नहीं होती।
टालें नहीं, काम करें
मोटिवेशनल गुरु ‘चींटी की बुद्धि’ अपनाने पर जोर देते हैं। खासकर तब जब सब काम रुके हुए लगते हैं। धैर्य रखने का मतलब काम से बचना नहीं है। मोटिवेशनल स्पीकर बेरी डेवनपोर्ट कहती हैं,‘जब सब बिखरा हो, रुकावटें हों, तो चींटी की तरह लचीलापन व धैर्य रखें। थोड़ा सा अनुशासन, थोड़ी सी विनम्रता, गुस्से पर काबू और दूसरों को सुनना असरदार बदलाव लाता है।
एक साधे सब सधे
मनोविज्ञान मनुष्य जीवन के चार प्रमुख पक्ष मानता है-अंतरंग जीवन, पारिवारिक जीवन, प्रोफेशनल और सामाजिक जीवन। हम चारों पक्षों को जीते हैं। किसी भी एक पक्ष का अधूरापन चारों पर असर डालता है। इसी तरह किसी एक पक्ष को सुधारने की कोशिश दूसरे पक्षों को भी संतुलित कर देती है।
जीवन को संतुलन की ओर ले जाने के लिए प्रोफेसर जोसेफ ए. श्रेंड ‘आई-एम एप्रोच’ का सिद्धांत देते हैं। क्या है आई-एम एप्रोच? उनके अनुसार आई-एम, वर्तमान की अधिकतम क्षमता है। वह आई-एम को चार भाग में बांटते हैं- घर, समाज, तन-मन तथा स्वयं के बारे में राय। वह कहते हैं,‘कुछ सही नहीं होगा की भावना बदली जा सकती है। जब हम यह विश्वास करते हैं कि हम हर अगले क्षण बेहतरी की ओर बढ़ रहे हैं।’
हम जैसा सोचते हैं, वैसा महसूस भी करते हैं। दिमाग क्या सोच रहा है, उससे अधिक हमारा काबू इस पर हो सकता है कि हम क्या सोचें। क्या आप अपने दिमाग को सही निर्देश देने के लिए तैयार हैं?
पूनम जैन