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यूपी चुनाव: परदेसी वोटरों की याद में उम्मीदवारों को आ रही हिचकी

परदेस में रह रहे स्थानीय वोटरों की याद में उम्मीदवारों को अब हिचकी आने लगी है। मतदान के दिन उन्हें गांव तक वापस लाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। इसके लिए किराया-भाड़ा से लेकर बाकी और सभी तरह का

लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Feb 2017 03:51 PM

परदेस में रह रहे स्थानीय वोटरों की याद में उम्मीदवारों को अब हिचकी आने लगी है। मतदान के दिन उन्हें गांव तक वापस लाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। इसके लिए किराया-भाड़ा से लेकर बाकी और सभी तरह का खर्च देने को भी तैयार हैं। प्रत्याशियों के करीबियों ने बाहर रह रहे मतदाताओं की सूची बनाना शुरू कर दिया है।

हर एक वोट कीमती

उद्योगविहीन कौशाम्बी जिले के हजारों युवा रोजी-रोटी का जुगाड़ करने के लिए परदेस में रहते हैं। कुछ तो अपने बाल-बच्चों के साथ वहीं शिफ्ट हो गए हैं। इनका वोट कीमती है। इसलिए उम्मीदवार इनको वोट  करने के लिए बुलाना चाहते हैं। प्रत्याशी अपने कारखासों से एक-एक गांव के परदेसी वोटर की सूची तैयार करवा रहे हैं। जिनके बारे में जानकारी होती जा रही है। उनके परिवारीजनों से संपर्क साधा जा रहा है।

बाहर रहने वालों को वोट डालने के लिए आने का सारा खर्चा देने का वादा किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि किसी को कोई खास नुकसान होता है और उसके पास कई वोट हैं तो घाटे की भरपाई भी की जाएगी। कुछ परदेसी वोटर उम्मीदवारों के खर्च पर गांव आ भी चुके हैं। माना जा रहा है कि चुनाव से पहले-पहले बड़ी संख्या में परदेसी यहां आ जाएंगे। हालांकि वोटर गांव आकर किसको वोट देंगे, ये तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे।

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मतदान प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद

उम्मीदवारों के इस कदम से मतदान का प्रतिशत बढ़ने की पूरी संभावना है। माना जा रहा है कि जिले के जितने लोग बाहर रह रहे हैं, उनमें से आधे भी आ गए तो इसका वोटिंग प्रतिशत पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ेगा। यही वजह है कि प्रशासनिक अफसर प्रत्याशियों को ऐसा करने से रोक नहीं रहे हैं। अफसरों को भी लग रहा है कि जितनी बढ़कर वोटिंग हो जाए, उतना अच्छा है।
 
भट्ठा मजदूरों की बल्ले-बल्ले

दोआबा में उद्योगों की कमी के साथ शिक्षा का भी अभाव है। यही वजह है कि परदेस में रह रहे यहां के अधिकतर लोग वहां कोई बड़ी नौकरी नहीं करते। वे मजदूरी करके किसी तरह परिवार चलाते हैं। इन श्रमिकों में भट्ठा मजदूरों की संख्या  सबसे ज्यादा है। कुछ गांव ऐसे हैं जहां के दर्जनों लोग एक साथ एक भट्ठे पर बिहार या अन्य किसी प्रांत में रहकर काम करते हैं। इन मजदूरों की बल्ले-बल्ले है। उम्मीदवार इनको किराए के साथ दिहाड़ी तक देने के  लिए राजी हैं।

 

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