यूपी-उत्तराखंड हार के बाद उठेंगे कांग्रेस में सवाल, बदलेगा बहुत कुछ
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हार के बाद कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठने लाजिमी है। क्योंकि, पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के खिलाफ जाकर यूपी में सपा संग समझौता करना हो या उत्तराखंड में...
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हार के बाद कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व पर सवाल उठने लाजिमी है। क्योंकि, पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं के खिलाफ जाकर यूपी में सपा संग समझौता करना हो या उत्तराखंड में तमाम नेताओं को नजरअंदाज कर हरीश रावत को फ्री हैंड देना। इन सभी फैसलों में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका अहम रही है। ऐसे में पार्टी में बड़े बदलाव करने का दबाव बढ़ेगा।
यूपी में राहुल की किसान यात्रा के बाद ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता अकेले चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे थे, पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी को मोल लेते हुए पार्टी ने सिर्फ 105 सीट पर सपा से समझौता किया। पार्टी महासचिव गुलाम नबी आजाद, प्रदेश कांग्रेस के कई नेता और उम्मीदवार इसके पक्ष में थे।
पार्टी में एक बड़ा तबका इस गठबंधन के खिलाफ था। इन नेताओं की राय थी कि यूपी और बिहार में अपने दम पर मजबूत हुए बगैर कांग्रेस के लिए 2019 के चुनाव आसान नहीं है। पर पार्टी ने पहले बिहार में खुद को बीस प्रतिशत सीट तक सीमित कर लिया। इसके बाद यूपी में 25 प्रतिशत सीटों पर संतोष कर लिया। करीब तीन सौ सीट पर पार्टी का कोई झंडा नहीं था। इस तरह समझौता कर अगला लोकसभा चुनाव नहीं जीता जा सकता।