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जानिए क्यों आलू की पैदावार अच्छी होने के बावजूद किसान परेशान

नोटबंदी के समय आलू की फसल पर ग्रहण लग गया था। तब कोल्ड स्टोरेज से लगभग 1000 करोड़ रुपये का आलू फिक गया था। इस बार खेती का रकवा बढ़ा तो पैदावार कम हो गई। किसान परेशान है। अन्य प्रदेशों में आलू की बंपर...

जानिए क्यों आलू की पैदावार अच्छी होने के बावजूद किसान परेशान
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 26 Feb 2017 11:35 AM
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नोटबंदी के समय आलू की फसल पर ग्रहण लग गया था। तब कोल्ड स्टोरेज से लगभग 1000 करोड़ रुपये का आलू फिक गया था। इस बार खेती का रकवा बढ़ा तो पैदावार कम हो गई। किसान परेशान है। अन्य प्रदेशों में आलू की बंपर पैदावार होने से यहां के आलू को व्यापारी लेने को तैयार नहीं है।

कोल्ड स्टोरेज वालों ने किसानों को लोन फाइनेंस नहीं किया है। खेतों से आलू नहीं उठवाया जा रहा है। किसान पर चौतरफा मार पड़ रही है। मजदूरों को रोज की दिहाड़ी देने के लिए पैसे नहीं हैं। चेक से बैंक से निकालकर दो-दो दिन के पेमेंट देना पड़ रहा है। किसान और खेतों में काम करने वाले मजदूरों की व्यथा की पड़ताल करती रिपोर्ट।

पिछले साल जैसे ही 500 और एक हजार के नोट बंद किए जाने का एलान हुआ। किसान संकट में आ गया। किसानों का कोल्ड स्टोरेज में रखा था। लोगों के पास पैसे थे नहीं। लिहाजा आलू कोल्ड स्टोरेज से बाहर नहीं निकल पाया। मजबूरन जिले से एक हजार करोड़ रुपये का आलू फेंकना पड़ा।

अब आलू की खुदाई चल रही है। बारिश सही समय पर पड़ी नहीं। बीच में पाला पड़ गया। आलू फूलने से रह गया। इतना छोटा आलू निकल रहा है कि उसका दाम भी न के बराबर ही मिलेगा। एसे में तो किसान बर्बाद हो जाएगा। खंदौली और एत्मादपुर जिले में सबसे बड़ी आलू की बेल्ट मानी जाती है। कोई किसान ऐसा नहीं हो जो आलू की फसल न करता हो।

लेकिन इस बार आलू के नाम पर पाने के लिए कुछ भी नहीं है। लागत निकलनी भी मुश्किल दिख रही है। कागारौल के कप्तान सिंह चाहर उन्नतशील किसान हैं। आलू के साथ-साथ मूंग भी करते हैं। इस बार उनके खेतों में आलू की 40 से 45 फीसदी कम पैदावार हुई है। वे भी परेशान हैं। खेती के दौरान सारा पैसा खर्च करना पड़ा। अब व्यापारी आलू खरीदने को तैयार नहीं हैं।

आलू किसानों की व्यथा ऐसे ही नहीं है। उनका कहना है कि इंदौर आलू पैदा करने वाला देश का सबसे बड़ा राज्य माना जाता है। यहां इस बार बंपर पैदावार हुई है। मुंबई, दिल्ली, गुजरात, पश्चिम बंगाल, दिल्ली में आगरा से आलू जाता था। लेकिन वहां भी बंपर पैदावार हुई है। अब व्यापारी ने भी आलू खरीदने से मुहं मोड़ लिया है। पहले कोल्ड स्टोरेज वाले भी खेतों से आलू मंगा लेते थे। लोन भी फाइनेंस कर देते थे। इस बार ऐसा नहीं हुआ है। किसान परेशान हो रहा है। मजदूरों तक को पैसे देने के लिए नहीं हैं। किसी तरह मजबूरन काम कराना पड़ रहा है।

इनका कहना है

इस बार हालात काफी खराब हैं। बिना कोल्ड में रखे एक बोरा आलू की कीमत 300 रुपये आती है। लगता है कि इस बार 150 से 175 रुपये में ही एक बोरा बिक पाएगा। इससे तो बर्बादी के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा। सब तरफ से नुकसान किसान का ही होना है।

कप्तान सिंह चाहर (उन्नतशील किसान कागारौल)

आलू की खुदाई चल रही है। पिछले साल व्यापारियों ने खूब चक्कर लगाए थे। खेतों से 400-450 रुपये प्रति बोरा खरीदा गया था। व्यापारी आ नहीं रहा है। मजबूरी में आलू को शीतगृह ले जाना पड़ेगा या सस्ती दर में बेचेंगे। ऋण के लिए कहते हैं तो शीतगृह संचालक 50 रुपये देने की बात करते हैं।

लाखन सिंह

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