फोटो गैलरी

Hindi Newsतो इसलिए बीजेपी राज आने के बाद बंद हो गया ऐतिहासिक टुंडे कबाब

तो इसलिए बीजेपी राज आने के बाद बंद हो गया ऐतिहासिक टुंडे कबाब

चौक के 112 साल पुराने टुंडे के बीफ कबाब का सफर खत्म हो गया है। टुंडे के बीफ कबाब का जायका अब उसके चाहने वाले नहीं ले पाएंगे। बड़े का गोश्त बंद होने के बाद चौक व अमीनाबाद स्थित टुंडे कबाबी ने बीफ कबाब...

तो इसलिए बीजेपी राज आने के बाद बंद हो गया ऐतिहासिक टुंडे कबाब
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Mar 2017 01:01 PM
ऐप पर पढ़ें

चौक के 112 साल पुराने टुंडे के बीफ कबाब का सफर खत्म हो गया है। टुंडे के बीफ कबाब का जायका अब उसके चाहने वाले नहीं ले पाएंगे। बड़े का गोश्त बंद होने के बाद चौक व अमीनाबाद स्थित टुंडे कबाबी ने बीफ कबाब को बंद करके मटन और चिकन के कबाब बेचना शुरू कर दिए हैं। इसका असर भी पहले दिन ही नजर आ गया। रोज की तुलना में कबाब खाने वालों में भी कमी आ गई है।

पुराने लखनऊ में चौक की तहसीन की मस्जिद के नीचे टुंडे कबाबी की दुकान 1905 से चल रही है। फिल्म स्टार सलमान खान हो या फिर ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार जब भी वह लखनऊ आए उन्होंने इस पुरानी दुकान के कबाबों का जायका जरूर लिया है। योगी सरकार बनने के बाद बड़े का गोश्त मिलना बंद हो गया है। इसका सीधा असर टुंडे के कबाब, मुबीन, रहीम के यहां पर मिलने वाली बड़े की नहारी पर पड़ा।

अब यहां पर मटन की नहारी और कबाब बेची जा रही हैं। करीब 25 सालों से टुंडे के कबाब खा रहे जाफर बताते हैं कि लखनऊ में टुंडे से बेहतर बीफ के कबाब कोई नहीं बनाता है। टुंडे के कबाब ऐसे ही जायकेदार नहीं होते हैं, उनमें 160 मसालों से तैयार किया जाता है।

पुराने लखनऊ की मशहूर नहारी पर भी असर: टुंडे कबाबों के साथ पुराने लखनऊ के नहारी और कुलचे भी पूरे देश में मशहूर है। रहीम और मुबीन जैसे मशहूर होटलों पर बड़े के गोश्त और पाये की नहारी खाने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। बड़े का गोश्त न मिलने की वजह से होटलों पर नहारी भी नहीं मिल पा रही है। इसके अलावा शाहगंज और चावल वाली गली में स्थित खमीरी रोटी की दुकानों पर भी असर पड़ा है।

पैसे में मिल जाता था जायका : टुंडे कबाबी के मोहम्मद उस्मान बताते हैं कि बड़े का गोश्त न मिलने की वजह से मटन और चिकन के कबाब ही बेचे जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक तो बड़े के कबाब का जायका अलग ही होता था। दूसरा बड़े जानवर का गोश्त सस्ता होने की वजह से गरीब लोग आसानी से भर पेट खाना खा लेते थे। मटन के कबाब 80 रुपये के चार है जबकि बड़े के कबाब चालीस रुपये के चार होते हैं।

वहीं पुराने लखनऊ में बड़े के कबाब बीस रूपये के चार बिकते थे। इससे गरीब आदमी 40 से 50 रूपये में पेट भर कर खाना खा लेते था। उन्होंने बताया की अमीनाबाद स्थित होटल में रोजाना 40 किलो मटन और इतने ही बीफ के कबाब बनते थे। मुबीन होटल के शुएब बताते है कि 50 रुपये में बड़े की नहारी और कुलचे का जायका हर कोई ले लेता था।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें