नाम: डॉ. हरक सिंह रावत पार्टी नाम: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)
उत्तराखंड में डा. हरक सिंह रावत का राजनीतिक सफर कम दिलचस्प नहीं है। मूलरूप से श्रीकोट स्थित गंगनाली गांव निवासी डॉ हरक सिंह रावत ने 80 के दशक में श्रीनगर गढ़वाल विवि की छात्र सियासत से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। फिर प्रवक्ता बने और गढ़वाल विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए, लेकिन छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले रावत को प्रवक्ता की नौकरी ज्यादा दिनों तक नहीं भायी। उत्तर प्रदेश के समय 1984 में भाजपा से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े, तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1991 में भाजपा के टिकट पर पौड़ी से फिर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। तब तत्कालीन भाजपा की कल्याण सिंह सरकार में उन्हें पर्यटन मंत्री बनाया गया। वे उस कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री थे। वर्ष 1993 में एक बार फिर हरक सिंह रावत भाजपा के टिकट पर पौड़ी से ही चुनाव लड़े और दोबारा विधायक बने। तीसरी बार टिकट नहीं मिलने पर भाजपा को छोड़ दी और बसपा का दामन थाम लिया। कुछ समय बसपा में रहने के बाद कांग्रेस में शामिल हो गए। अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडौन सीट से विधायक चुने गए। 2007 में भी हरक सिंह लैंसडौन से दोबारा चुनाव लड़े और जीते। 2012 के विधानसभा चुनाव में हरक ने रुद्रप्रयाग का रुख किया और जीत दर्ज की। मार्च 2016 में कांग्रेस सरकार से बगावत कर उन्हें विधासनसभा सदस्यता गवानीं पड़ी। उन्हें विधायक पद से बर्खास्त कर दिया गया। वह अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। हरक सिंह रावत की पत्नी पौड़ी में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। हरक सिंह रावत का विवादों से पुराना नाता रहा है। एक महिला द्वारा उनपर यौनशोषण का आरोप भी लगाया गया था। हालांकि बाद में महिला ने केस वापस ले लिया था। इसबार वह रुद्रप्रयाग से दावेदारी नहीं जता रहे हैं।पार्टी खबर
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चुनावी समीक्षा
- अब भी मुख्यधारा से दूर हैं UP के दलितः वरुण गांधी छुआछूत का पारंपरिक दोष आज भी हमारे समाज में कायम है। अब भी इसकी जडे़ं गहरी हैं। अलग-अलग श्रेणियों व पायदानों के बहाने समाज के लाखों लोगों को उन कामों में रमने को मजबूर किया गया।
- वाम दलों के पास यूपी के मध्यम वर्ग लायक कोई ब्लू प्रिंट नहीं आजादी के बाद यूपी में पैदा हुए मध्यवर्ग की प्रकृति और उसकी राजनीतिक-बौद्धिक-पेशेवर क्षमताओं को समझने व उनके अनुकूल अपने क्रांतिकारी औजारों को निर्मित करने में वाम पूरी तरह असमर्थ रहा है।