30 लाख पैकेट आलू रखने को नहीं है शीतगृहों में जगह
जिले में भारी मात्रा में पैदा होने वाले आलू को रखने के लिए भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं। 30 लाख पैकेट आलू रखने के लिए जिले के शीतगृहों में जगह नहीं है। इसके चलते जहां एक ओर किसानों में आलू...
जिले में भारी मात्रा में पैदा होने वाले आलू को रखने के लिए भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं। 30 लाख पैकेट आलू रखने के लिए जिले के शीतगृहों में जगह नहीं है। इसके चलते जहां एक ओर किसानों में आलू शीतगृहों में रखने के लिए होड़ रहती है। वहीं दूसरी ओर शीतगृह संचालक भी किसानों की मजबूरी का फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं।जिले में औसतन एक करोड़ अस्सी लाख पैकेट का उत्पादन होता है। यह आलू लंबे समय तक सुरक्षित रहें और किसान इसे उचित कीमत मिलने पर बेच सकें इसके लिए जरूरी है कि आलू के भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था हो। राजनीति के मंच से आलू किसानों को फूड प्रोसेसिंग यूनिट, चिप्स फैक्ट्री जैसे सपने दिखाए जाते हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आलू के भंडारण के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। जिले में 95 शीतगृह संचालित होते हैं। इनमें आलू के एक करोड़ पचास लाख पैकेट रखने की व्यवस्था है। किसानों का कहना है कि उन्हें मालूम है कि जिले में शीतगृहों में यहां पैदा होने वाले सभी आलू रखने के लिए जगह नहीं है। ऐसे में वे भी मजबूरी में शीतगृह संचालकों से समझौता करते हुए आलू जल्द से जल्द उनके पास पहुंचाना चाहते हैं। एक बार अगर शीतगृह भर गए तो उन्हें आलू रखने के लिए जगह नहीं मिलेगी और उन्हें कम भाव में ही आलू बाजार में बेचना होगा। इस हालत में संभव है कि उन्हें लागत के बराबर भी मूल्य नहीं मिल सके।कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष गिरिराज गोदानी ने बताया कि कई बार आलू की अधिक पैदावार होने पर भाव बेहतर नहीं मिलता और किसान आलू नहीं उठाते। इसके चलते शीतगृह संचालकों को नुकसान उठाना पड़ता है। उनका कहना है कि अगर जिले में कोई प्रोसिसिंग यूनिट लगती है तो आलू की खपत बढ़ेगी। शीतगृह संचालन फायदे का सौदा हो जाएगा। ऐसा हुआ तो शीतगृह और खुलेंगे जिससे भंडारण में होने वाली समस्या का समाधान होगा और किसानों को भी आलू का उचित मूल्य मिल सकेगा।