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टीबी की जांच व इलाज का तरीका बदला

-इलाज खत्म होने के दो साल बाद तक होगी मरीजों की निगरानी-विश्व टीबी जागरूकता दिवस आज-टीबी पर काबू पाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने उठाया कदमलखनऊ। कार्यालय संवाददाता रजनीश रस्तोगीटीबी मरीजों पर काबू...

टीबी की जांच व इलाज का तरीका बदला
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 23 Mar 2017 09:22 PM
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-इलाज खत्म होने के दो साल बाद तक होगी मरीजों की निगरानी

-विश्व टीबी जागरूकता दिवस आज

-टीबी पर काबू पाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने उठाया कदम

लखनऊ। कार्यालय संवाददाता रजनीश रस्तोगी

टीबी मरीजों पर काबू पाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने अहम कदम उठाया है। टीबी की जांच व इलाज के तरीके में तब्दीली की है। इलाज की नई गाइड लाइन लागू कर दी है। डॉक्टरों का कहना है कि नई व्यवस्था से मरीजों की आसानी से पहचान होगी। गंभीर मरीजों की पहचान अलग से की जाएगी। मरीजों को दोबारा टीबी की जद में आने से बचाने के लिए निगरानी तंत्र में भी बदलाव किया गया है। शुक्रवार को विश्व टीबी जागरुकता दिवस मनाया जाएगा।

बेहतर इलाज के लिए उठाए गए ये कदम

-जिला टीबी ऑफिसर डॉ. सुशील चतुर्वेदी ने बताया कि अभी तक टीबी मरीजों को शुरुआत में दो दवाएं ही दी जाती थी। इलाज के बावजूद कई मरीजों में परेशानी आ जाती थी। अब तीन दवाएं मरीजों को खिलाई जा रही हैं। इथमबिटॉल नाम की दवा बढ़ाई गई है। इससे मरीजों में दवा के प्रति रजिस्टेंस से बचाना सरल हो गया है।

-डॉ. सुशील चतुर्वेदी ने बताया कि एचआईवी, दिल, डायबिटीज समेत दूसरे मरीजों में रोगों से लड़ने की ताकत कमजोर होती है। इन मरीजों को प्राथमिकता के आधार पर जांच होनी चाहिए। अभी तक इन मरीजों में टीबी की पहचान के लिए बलगम की जांच माइक्रोस्कोप से की जाती थी। अब सीधे सीबी नैट मशीन से बलगम की जांच होगी। इससे मर्ज की सटीक व जल्द ही पहचान हो सकेगी।

-स्टेट टीबी ऑफिसर डॉ. आलोक रंजन ने बताया कि अभी तक टीबी मरीज की निगरानी सिर्फ इलाज तक की जाती थी। सामान्य टीबी मरीजों की छह महीने दवा चलती है वहीं एमडीआर मरीजों को दो साल दवा खिलाई जाती है। उन्होंने बताया कि इलाज पूरा होने के बाद मरीज की निगरानी नहीं की जाती थी। अब इलाज खत्म होने के दो साल बाद तक मरीज की सेहत की जानकारी जुटाई जाएगी। ताकि मरीज में दोबारा टीबी न पनपे। छह-छह महीने पर कर्मचारी मरीज का हाल लेंगे।

-एचआईवी मरीज में टीबी होने का खतरा 70 फीसदी अधिक होता है। अभी तक एचआईवी मरीजों की टीबी होने पर एक दिन छोड़कर दवा खिलाई जाती थी। अब रोज दवा खिलाई जा रही है।

-नशे के आदी मरीजों को भी दवा प्राथमिकता के आधार पर जांच व इलाज करने के निर्देश हैं।

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पूरे इलाज से खत्म हो सकती है टीबी

केजीएमयू पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि प्रदेश में छह लाख टीबी के मरीज हैं। हर साल टीबी के लगभग 60 हजार मरीज दम तोड़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि टीबी का मरीज के एक बार खांसने से 3500 कीटाणु निकलते हैं। इनके संपर्क में आने से स्वास्थ्य व्यक्ति भी टीबी की गिरफ्त में आ सकती है। यही वजह है कि टीबी मरीजों को मुंह पर रूमाल रखकर खांसने की सलाह दी जाती है। ताकि दूसरे लोगों को संक्रमण से बचाया जा सके।

भारी पड़ रही मनमानी

सरकारी अस्पतालों में टीबी का मुफ्त इलाज व जांच की सुविधा है। बावजूद इसके लोग सरकारी अस्पताल में इलाज कराने से बचते हैं। यही वजह है कि करीब 50 प्रतिशत टीबी के मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। यहां पूरा इलाज कराने पर जोर नहीं दिया जाता है। नतीजतन मरीज बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। जबकि सरकारी में मरीज की निगरानी होती है। नियमों को ताक पर रखकर प्राइवेट अस्पताल मरीजों की जानकारी स्टेट टीबी सेल को नहीं दे रहे हैं।

कम हुई मरीजों की मौत

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक व चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष दुबे ने बताया कि पहले हर मिनट पर एक टीबी के मरीज की मौत हो रही थी। सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज की वजह से टीबी मरीजों की मौत में कमी आई है। अब हर डेढ़ मिनट में एक मरीज दम तोड़ रहा है। इसमें और कमी लाने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है।

कारगर है इलाज

केजीएमयू पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र कुमार के मुताबिक टीबी का पुख्ता इलाज है। छह से आठ माह तक इलाज कराकर बीमारी से पूरी तरह से निजात पा सकते हैं। बीच में इलाज छोड़ने से एमडीआर टीबी हो सकता है। इसका इलाज कम से कम दो साल चलता है। लंबे इलाज से बचना है तो सामान्य टीबी का पूरा इलाज कराएं।

सहयोग करें मरीज का

टीबी सामाजिक बीमारी भी है। क्योंकि टीबी का पता चलते ही उसका सामाजिक बहिष्कार होने लगता है। इससे बचना चाहिए। इलाज के साथ मरीज को परिवार व दोस्तों के सहयोग की भी जरुरत होती है। इससे मरीज को बीमारी से लड़ने की ताकत मिलती है।

डॉ. देवाशीष शुक्ला, मानसिक रोग विशेषज्ञ, लोहिया अस्पताल

लक्षण

-दो हफ्ते से अधिक खांसी

-शरीर में थकान

-वजन कम होना

-भूख कम लगना

-लगातार खांसी आना

-शाम को बुखाराआना

-सांस लेने में तकलीफ

-कफ की वजह से छाती में दर्द

-रात में पसीना आने जैसी समस्या

-खांसी के साथ बलगम से खून आना।

फैक्ट फाइल

-यूपी में टीबी के दो लाख 61 हजार मरीज पंजीकृत हैं।

-करीब एक लाख की आबादी में 257 टीबी के मरीज हैं।

-2000 जांच सेंटर हैं

-40 हजार डॉट्स प्रोवाइडर हैं।

-भारत में हर साल 19 लाख लोग टीबी की गिरफ्त में आ रहे हैं।

-तीन लाख 22 हजार मरीजों की मौत हो रही है।

-हर डेढ़ मिनट एक टीबी मरीज की सांसें थम रही हैं।

-टीबी की चपेट में आने वाली एक लाख महिलाओं को घर से निकाल दिया जाता है।

-देश में हर साल तीन लाख बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं।

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