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अबकी बार चांद पर रोबोट भेजेगा भारत, बनेगा अनोखा रिकॉर्ड

भारत चांद पर दो अंतरिक्षयान भेज चुका है। अबकी बार चांद पर रोबोट भेजकर रिकॉर्ड बनाएगा। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने इस पर काम शुरू कर दिया है। दो वर्षों के भीतर रोबोट को चांद में उतार दिया...

अबकी बार चांद पर रोबोट भेजेगा भारत, बनेगा अनोखा रिकॉर्ड
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Feb 2017 10:09 AM
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भारत चांद पर दो अंतरिक्षयान भेज चुका है। अबकी बार चांद पर रोबोट भेजकर रिकॉर्ड बनाएगा। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने इस पर काम शुरू कर दिया है। दो वर्षों के भीतर रोबोट को चांद में उतार दिया जाएगा। 

चंद्रयान और मंगलयान तैयार करने वाले राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक डॉक्टर जितेंद्र नाथ गोस्वामी ने बताया कि तकनीकी मिशन के रूप में चांद पर भेजने को तीसरे अंतरिक्षयान पर काम किया जा रहा है। ये देखने के लिए कि हम चांद के अंदर रोबोट को उतारने में सफल हो पाएंगे या नहीं। अगर, सफल हुए तो और रोबोट चांद पर मौजूद खनिज व अन्य सम्पत्ति पता लगाने को भेजे जाएंगे।

डॉ. गोस्वामी चंद्रयान-1 के मुख्य वैज्ञानिक हैं। चंद्रयान-2 और मंगलयान बनाने में उनका सहयोग रहा। डॉ. गोस्वामी ने बताया कि अब तक भेजे गए दोनों चंद्रयान चांद के अंदर नहीं गए थे। चांद के ईर्दगिर्द घूमते रहे। तैयार किए जा रहे तीसरे अंतरिक्ष यान को तीन हिस्सों में बनाया जाएगा। पहले हिस्सा लैंडर होगा, दूसरा हिस्सा रोबोट होगा। लैंडर रोबोट को चांद के अंदर लैंड कराएगा। 

तीसरा हिस्सा ऑर्बिटर होगा, जो चांद के ईर्दगिर्द घूमेगा। डॉ. गोस्वामी ने लोग चांद पर जाना चाहते हैं, लेकिन वहां जीवन नहीं है। सूरज निकलने के दौरान वहां भीषण गर्मी होती है, सूरज ढलने पर भयंकर सर्दी। उन्होंने ने बताया कि चांद का एक हिस्से ऐसा भी है, जहां सूरज की रोशनी नहीं जाती। वहां शोध करना सपना है।

अंतरिक्षयान की ऊर्जा मामले में पिछड़े

डॉ. गोस्वामी ने कहा कि अंतरिक्ष यान के लिए ऊर्जा मामले में अमेरिका और चीन की तुलना में भारत कमजोर है। भारत के अंतरिक्ष यान में सौर ऊर्जा का प्रयोग होता है। जबकि, अमेरिका और चीन न्यूक्लीयर रिएक्टर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल कर रहा है। जिससे उनके यानों में काम करने को ऊर्जा ज्यादा होती है। इसे छोड़ दिया जाए तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत देश की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। 

मंगल पर जीवन संभव

डॉ. जितेंद्र ने कहा कि मंगल पर जीवन संभव है। वहां पानी है, लेकिन जाकर घर बसा लिया जाए ऐसा भी नहीं है। जिस तरह ग्रीन हाउस बनाकर पेड़-पौधों का माकूल वातावरण देकर उपजाया जाता है। वैसे ही मंगल पर जीवन अनुकूल वातावरण बनाने के प्रयोग पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने कहा यह एक दिन संभव होगा। आने वाली पीढ़ियां इसकी साक्षी बनेंगी।

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