कश्मीर: पैलेट गन से अब आंखें नहीं होंगी चोटिल, ये है नया नियम
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद रोधी किसी कार्रवाई में पैलेट गन का इस्तेमाल फिर से शुरू होगा। हालांकि अब उससे निकलने वाले छर्रे किसी की आंखों में न लगकर पैर के हिस्से में लगेंगे। पिछली बार सैकड़ों...
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद रोधी किसी कार्रवाई में पैलेट गन का इस्तेमाल फिर से शुरू होगा। हालांकि अब उससे निकलने वाले छर्रे किसी की आंखों में न लगकर पैर के हिस्से में लगेंगे। पिछली बार सैकड़ों प्रदर्शनकारियों की आंखों में गंभीर चोट लगने के मद्देनजर किसी प्रदर्शन पर नए बदलाव के साथ इस हथियार का इस्तेमाल किया जाएगा।
सीआरपीएफ महानिदेशक के़ दुर्गा प्रसाद ने कहा कि अर्द्धसैनिक बल ने चोट को कम करने के लिए नए बदलाव के साथ पैलेट गन का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। वह मंगलवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। गौरतलब है कि पैलेट गन से छर्रे दागे जाते हैं। नए बदलाव वाले पैलेट गन में एक डिफ्लेक्टर (मार्ग बदलने वाला उपकरण) होगा, जो बंदूक की नली के सिरे पर लगा होगा, ताकि छर्रों को ऊपर जाने से रोका जा सके। बल ने बीएसएफ की एक विशेष कार्यशाला को इन बंदूकों की नली के सिरे पर धातु के बने डिफ्लेक्टर लगाने का काम सौंपा है ताकि छर्रे शरीर पर पेट से ऊपर के हिस्से पर नहीं लगें।
कश्मीर घाटी में तैनात सीआरपीएफ के जवानों से अब प्रदर्शनकारियों के पैरों को निशाना बना कर छर्रे दागने को कहा गया है। जबकि निर्धारित कार्यप्रणाली पेट के हिस्से को निशाना बनाने की है।
उन्होंने एक सख्त संदेश देते हुए कहा कि अर्द्धर्सनिक बल सिर्फ कानून-व्यवस्था बहाल करने वाले बल के रूप में काम करने की बजाय अब आतंकवाद रोधी कार्रवाई करने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस के विशेष कार्र्रवाई समूह (एसओजी) और सेना के साथ सक्रियता से तालमेल बिठा रहा है। उन्होंने कहा कि हालात उतने संवदेनशील नहीं हैं जितना कि पिछले साल थे़ अब वैसा पथराव नहीं हो रहा] रक्षा बलों पर पथराव पहले की तरह नहीं हो रहा। पीएवीए (मिर्च से भरे गोले) काफी टिकाऊ हैं और वे कुछ खास स्थिति में अच्छे हैं। लेकिन हमने यह साफ कर दिया है कि सीआरपीएफ के कर्मी हालात के मुताबिक विकल्पों का इस्तेमाल करेंगे।
सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने बताया कि हमने अपने लोगों को अब पैरों पर छर्रे दागने को कहा है। डिफ्लेक्टर का इस्तेमाल करने से लक्ष्य से ऊपर निशाना लगने की सिर्फ दो फीसदी संभावना होगी जबकि पहले यह 40 फीसदी की दर थी। उन्होंने कहा कि पैलेट गन में बदलाव करने से चोट को कम किया जा सकता है लेकिन यह बिल्कुल नहीं रोका जा सकता।
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