हर्पीज जॉस्टर : है संक्रामक बीमारी

किसी की त्वचा पर मामूली दानों से शुरू होने वाली इस बीमारी में शरीर के एक हिस्से पर कई दाने एक साथ निकल आते हैं, जो पानी से भरे होते हैं और जिनमें दर्द, जलन और सूजन रहती है। रिसर्च में पाया गया है कि...

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हर्पीज जॉस्टर : है संक्रामक बीमारी
Satya ज्योति सोही , नई दिल्ली
Thu, 15 Feb 2018 5:41 PM

किसी की त्वचा पर मामूली दानों से शुरू होने वाली इस बीमारी में शरीर के एक हिस्से पर कई दाने एक साथ निकल आते हैं, जो पानी से भरे होते हैं और जिनमें दर्द, जलन और सूजन रहती है। रिसर्च में पाया गया है कि 40 की उम्र पार करने के बाद हर्पीज होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है और महिलाओं में ये रोग होने की आशंका अधिक होती है। उम्रदराज वयस्कों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में नजर आने वाला ये रोग हाईजीन के अभाव, तनाव, चोट, दवाओं या फिर अन्य किसी कारण से भी हो सकता है। इस बीमारी में रोगी को बहुत ज्यादा दर्द होता है तो दर्द से बचने के लिए जॉस्टावैक्स नामक वैक्सीन दी जाती है। एहतियात के तौर पर अमेरिका में 55 साल की उम्र के बाद हर व्यक्ति को यह वैक्सीन दी जाती है, ताकि इस बीमारी से बचा जा सके। इस वैक्सीन के लेने से बीमारी होने की आशंका कम हो जाती है। आमतौर पर हर्पीज जॉस्टर 2 से 3 सप्ताह में ठीक हो जाती है और फिर शायद ही कभी लौटकर आती है।

हर्पीज जॉस्टर है क्या
आमतौर पर इसे शिंगल्स के नाम से जाना जाता है। यह वायरस द्वारा उत्पन्न रोग है, जो त्वचा पर दर्दयुक्त घाव उत्पन्न करता है। आमतौर पर शिंगल्स शरीर या चेहरे के किसी एक तरफ पतली पट्टी, एक बंध या छोटे क्षेत्र के रूप में दिखाई पड़ता है। यह आंखों के पास भी हो सकता है, जिसे हर्पीज जॉस्टर ओफ्थेल्मिकस कहते हैं। इस बीमारी के होने पर रोगी के शरीर के एक तरफ की त्वचा पर पानी वाले दाने निकलते हैं। इस वजह से रोगी को त्वचा में खुजली या दर्द या जलन या सुन्नपन या झनझनाहट की परेशानी होती है। इतना ही नहीं, जिस जगह ये दाने निकलते हैं, वहां की त्वचा बेहद संवेदनशील हो जाती है और उसे छूने पर दर्द होता है। इन दानों के निकलने से पहले रोगी को दर्द होना शुरू हो जाता है। दर्द होने के कुछ दिनों के बाद उस जगह की त्वचा पर लाल-लाल फुंसियां निकलनी शुरू हो जाती हैं। धीरे-धीरे इन दानों में पानी भर जाता है। इसके अलावा बुखार, जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, थकान आदि की शिकायत भी कई रोगियों को होने लग जाती हैं।

क्या हैं कारण
घटती रोग प्रतिरोधक क्षमता :
डॉक्टरों के मुताबिक जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने लगती है तो इस बीमारी का वायरस नर्वस पाथवे से होता हुआ हमारी त्वचा तक पहुंच जाता है। इस बीमारी में रोगी को त्वचा में खुजली, जलन, दर्द और सुन्नपन या झनझनाहट की परेशानी रहती है। इस बीमारी की खास बात ये है कि दाने निकलने के कुछ दिन पहले से ही उस विशेष जगह पर दर्द महसूस होने लगता है।
वायरल संक्रमण : हर्पीज एक संक्रामक बीमारी है, जो हर्पीज सिंफ्लेक्स वायरस यानी एच. एस. वी. के कारण होती है। इस संक्रमण की खास बात ये है कि ये न केवल त्वचा, बल्कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित करता है, इसलिए सावधानी बरतना काफी जरूरी है। 
चिकन पॉक्स एक्सपोजर : आमतौर पर यह बीमारी उसी व्यक्ति को होती है, जिसे पहले चिकन पॉक्स हो चुका होता है या फिर चिकन पॉक्स का एक्सपोजर हुआ हो। यह बीमारी चिकन पॉक्स के वायरस वेरिसेला जॉस्टर के कारण होती है। दरअसल चिकन पॉक्स ठीक होने के बाद यह वायरस नर्वस सिस्टम में चला जाता है और वषार्ें तक वहीं सुप्तावस्था में पड़ा रहता है।
हाईजीन का रखें ख्याल : यह बीमारी ज्यादातर सीधे सम्पर्क के माध्यम से फैलती है। संक्रमित व्यक्ति के साथ सम्पर्क करने के दो दिन से दो हफ्तों के बीच इस बीमारी के लक्षण नजर आने लगते हैं। इस बीमारी से बचने के लिए साफ-सफाई का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।

क्या हैं लक्षण
घाव :
इस संक्रमण से व्यक्ति के चेहरे के कुछ हिस्सों पर दाने होने लगते हैं। खासतौर पर होठ या आंखों के आसपास या फिर मुंह के अंदर भी घाव बनने का खतरा रहता है। कई बार इससे संक्रमित व्यक्ति की आंखों को भी नुकसान होने लगता है। चेहरे के किसी एक हिस्से पर होने वाले इन पानी वाले दानों में मवाद भरने लगता है। इसे ठीक होने में कम से कम दो से तीन हफ्ते का वक्त लगता है। 
बुखार : चेहरे पर घाव के कारण अकसर मांसपेशियों और सिर में दर्द रहता है। साथ ही बुखार भी होता है। ये हर्पीज के आम लक्षण हैं।
खुजली और जलन : घाव और फफोले बनने से पहले रोगी को संक्रमित हिस्से पर खुजली और जलन का अनुभव होता है।
लिम्फ ग्लैंड का बढ़ना  :  इस संक्रमण से लसिका ग्रंथि बढ़ जाती है। इससे गर्दन की लसिका गं्रथि में सूजन हो सकती है, जो दर्द और बेचैनी का कारण बन सकती है। 

इलाज
इस बीमारी के इलाज के लिए एंटीवायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर रोगी को दी जाती है, ताकि उसके शरीर में उपस्थित वायरस नष्ट हो जाएं। इसके अलावा फैमसाइक्लोविर और वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं। 
इन दवाइयों के साथ रोगी को दानों पर लगाने के लिए लोशन या मलहम आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीमारी के ठीक होने में दो से तीन सप्ताह यानी 10 से 20 दिन लगते हैं। 

इन बातों का रखें ख्याल
0 ठंडे पानी से नहाएं।
0 घाव बार-बार न धोएं और सुखाकर रखें।
0 ज्यादा तरल पदाथोंर् का सेवन करें।
0 ढीले कपड़े पहनें।
0 घाव छूने से पहले हाथों को ठीक से धो लें।
0 बर्फ से सिकाई करें।
0 घाव पर क्रीम या लोशन लगाते रहें।

आहार
आहार में अंकुरित भोजन और फूल गोभी लें। दरअसल इसमें इन्डोल-3 कार्बिनोल होता है, जो हर्पीज वायरस को रोकने में उपयोगी पाया जाता है। 

परहेज
लायसिन से भरपूर आहार न लें, खासकर मूंगफली, चॉकलेटस और बादाम ज्यादा न खाएं। रिफांइड शक्कर से बचें।

(राजौरी गार्डन स्थित हांडा नर्सिंग होम के फिजिशियन डॉ. मानस चक्रवर्ती व कार्डिएक इलैक्ट्रोफिजियोलॉजी लैब एंड एरीथीमिया सर्विसेज की डायरेक्टर डॉ. विनीता अरोड़ा से की गई बातचीत पर आधारित) 

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