ग्रहों के राजा सूर्यदेव, कन्या राशि में पहुंच रहे हैं। सूर्यदेव जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे संक्रांति कहा जाता है। कन्या राशि में सूर्यदेव का प्रवेश कन्या संक्रांति या आश्विन संक्रांति नाम से भी जाना जाता है। कन्या संक्रांति के दौरान भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार जिस दिन देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की भगवान ब्रह्मा ने उत्पत्ति की, उस दिन कन्या संक्रांति थी। इसी दिन भगवान विश्वकर्मा की जयंती मनाई जाती है।
हिंदू मान्यता के अनुसार 12 राशियां हैं और जब भी सूर्यदेव एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं तो उस राशि की संक्रांति आरंभ हो जाती है। भगवान विश्वकर्मा ने भगवान ब्रह्मा के कहने पर यह दुनिया बनाई। माना जाता है कि अगर कन्या संक्रांति के दिन विधि विधान से पूजा अर्चना की जाए तो सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। घर में धन संपदा का आगमन होता है। कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा की आराधना का विधान है। भगवान विश्वकर्मा अपने भक्तों को उच्च गुणवत्ता के साथ काम करने की क्षमता प्रदान करते हैं। संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। कन्या संक्रांति पर पूर्वजों के लिए दान, श्राद्ध पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। कन्या संक्रांति के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना कर उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित कर धूप और दीप जलाएं। औजारों को धूप लगाएं और तिलक करें। भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से कारोबार में कभी घाटा नहीं होता है। व्यापार बढ़ता जाता है और नौकरी में मान सम्मान की प्राप्ति होती है। धन संपदा में वृद्धि होती है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।
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